आज उड़ गया वो
जो कल तक हमारी खुशियों के लिए
तोड़कर घमंडी रेत का घमंड
एक महल बनाने के लिए था तैयार।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
तोड़कर घमंडी रेत का घमंड
एक महल बनाने के लिए था तैयार।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
हमारी छोटी से छोटी जरूरतों के साथ
बड़ी से बड़ी जरूरतों के लिए
रहता था अपने कम संसाधनों के साथ तैयार।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
कांधे पर बैठाकर
ये खेत से लेकर उस खेत
उस से खेत से लेकर बिसाता की दुकान तक
रहता था हर पल रहता था तैयार।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
आज भी अच्छे से याद हैं वो दिन
ज़ब भी लगता था गांव मे कहीं मेला
नजर नही आता था कोई उनके सिवा
अठन्नी हो या चवन्नी या रुपया पाँच
तुरंत जेब से देने को रहते थे तैयार।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
देखो कैसे पड़ा हैं नितांत अकेला
न बोल रहा है न सुन रहा हैं
साथ देखो तो लीला प्रभु की
ज़ब उसके पास कुछ नही था
फिर भी देने को था हमे तैयार
आज हमारे पास सबकुछ होकर भी,
ज़ब उसे आयी हमारी देने की बारी
वो ही नही रहा अब हमारे पास।
आज उड़ गया वो
अपने ही बनाये घोंसले से पंक्षी बनकर।
-BLOGGER अjay नायक
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