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Friday 8 March 2024

8 मार्च महिला दिवस विशेष:–जो चाह रही हैं उसे पाने के लिए पीछे नहीं हट रही है

8 मार्च महिला दिवस विशेष :- जो चाह रही हैं उसे पाने के लिए पीछे नहीं हट रही है 

समय बदल रहा है, 
वे भी बदल रहे हैं,
फिर भी नहीं बदल रहा है, तो
उनके प्रति लोगों की सोच !

बहुतांश तो अभी भी हारे बैठे हैं
उन्हें भरोसा है कभी तो भाग बदलेंगे हमारे, लेकिन 
उनमें से ही कुछ तो ऐसे भी हैं 
जो नही बैठे हैं भविष्य के भरोसे
वे तो तन मन से अपने
वर्तमान को ही ठीक करने मे हैं लगे।

                             आज 8 मार्च है। आज पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है। कहने को भारत समेत पूरी दुनिया की यह आधी आबादी हैं, लेकिन इनके अधिकार भारत समेत पूरी दुनिया में आधे की तो छोडो एक तिहाई भी इन्हे प्राप्त नहीं हैं। कुछ देशों में इनके प्रति पूर्ण रूप से मानसिकता बदली है फिर भी अभी भी लगभग 80 % देशों में इनके प्रति वैसी ही मानसिकता है जैसी मानसिकता 100 वर्ष पहले थी। 
                             फिर भी कुछ ऐसी हैं जो इन बातों पर ध्यान न देते हुए अपना कार्य कर रही हैं जो कार्य सिर्फ पुरुषों के नाम ही पेटेंट कर दिए गए थे। महिलाएं पढ़े लिखे काम भी करें लेकिन वह वही करें जो उन्हें शूट करता हो। बहुत से कामों से उन्हें अभी भी दूर ही रहना चाहिए ऐसी सोच वाले अभी भी बहुतांश मिल जाएंगे। लेकिन कुछ हैं जो जिद्दी किस्म की हैं, उन्हें पता है कि अगर कोई चीज करने की ठान लिया जाये तो उसे पूरा करने के लिए जरुरी नहीं है कि इसके लिए कोई विशेष ही हो। 
                              आज हम जिन महिलाओं की बात करने जा रहे हैं ये भी हैं तो नाजुक ही लेकिन अपनी जिद्द और कुछ अलग करने की चाह ने उन्हें फौलाद से भी ज्यादा मजबूत बना दिया है। और अपनी मेहनत के बल पर नित नए आयाम को धीरे धीरे ही सही उसे छूती जा रही हैं। और अपने आस पास की महिलाओं के लिए लिए ही नही पुरुषों के लिए भी एक मिसाल तैयार कर रही हैं। आज उन्ही तीन महिलाओं के बारे में बात करेंगे जिन्होंने अपने बल पर एक उच्च स्थान को ही नहीं प्राप्त किया है। अपने बल पर आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ सन्देश भी छोड़ रही हैं। उन्ही में से एक हैं 

शीतल निकम :- 






             जिनका पूरा नाम है शीतल सतीश निकम यह मूलतः महाराष्ट्र के रत्नगिरि जिले के राजपुर तहशील की हैं। लेकिन इनका जन्म और पूरी शिक्षा मुंबई के सांताक्रुज में और अलग अलग जगहों पर हुआ है। इन्होने यहीं से एमएससी किया और उसके बाद बी एड करके मुम्बई के निजी विद्यालय में शिक्षिका के तौर पर अपनी एक नई शुरुआत की। 
            घर के काम और उन्हें अपने जीवन में कुछ अलग करने चाह की वजह से इस कार्य में आनंद बिल्कुल ही नही आ रहा था। ऐसा नहीं है कि वे शिक्षा क्षेत्र से भाग रही थी लेकिन उन्हें इसके आगे जाकर कुछ करना था जो कि यहां से बिल्कुल ही नही हो सकता था। क्योंकि नोकरी की कुछ सीमाएं होती हैं और उन सीमाओं में रहकर बहुत कुछ नही कर सकते हैं।
                कुछ दिन घर पर रहने के बाद संस्कृति संवर्धन नाम के संगठन से जुड़ कर संस्कृति संवर्धन में काम करने लगी और संस्कृति को संवर्धन करने के लिए जगह जगह कार्यक्रमों में भाग लेकर लोगों को जागरूक करने लगी। उन्होंने अबतक लवजिहाद के शिकार में फसी 48 लड़कियों से मुलाकात किया और बहुत सी लड़कियों को फिर से घर वापसी करवाया है। इसके साथ ही उन्होंने अबतक कुल 6000 लड़कियों को खुद की सुरक्षा कैसे करते हैं इसकी ट्रेनिंग करवाई है। वे कहती हैं कि हमारे घर की औरतों के पास रात 8 बजे से रात 10 बजे तक सीरियल देखने के लिए और उसपर बात करने के लिए समय तो रहता है लेकिन अपने बच्चों को अपने धर्म और संस्कृति के बारे में बताने के लिए बिल्कुल ही समय नही रहता है। और उसी वजह से लवजिहाद, धर्म के प्रति पूरी जानकारी न होने की वजह से उसके प्रति अज्ञानता बढ़ रही है। वे अपने जीवन पर्यंत तक ऐसे ही परिवारों को जगाना चाहती हैं। साथ में वे एक विद्यालय खोलना चाहती हैं जहां आनंददाई शिक्षा मिले। स्ट्रेस कोसों दूर रहें। 
                



अपर्णा वोबलेकर :- 









                अपर्णा रमाकांत वोबलेकर यह इनका पूरा नाम है। जोकि एक 49 वर्षीय महिला बाइकर हैं। है ना थोड़ा अजीब लेकिन इससे भी अजीब बात यह है कि इस उम्र वह वो bike चलाती है जिसे चलाने में मर्दों को भी पसीना  आ जाता है।  वह बाइक है पुराणी वाली बुलेट। है ना एकदम अजीब। लेकिन आजकल की अपर्णा जैसी महिलाओं को जिस उम्र में भी मौका मिल रहा है वे उस मौके का भरपूर फायदा उठाने में बिलकुल ही पीछे नहीं हट रही हैं। चाहे मज़बूरी में हो या पैसन में या कोई और बात हो। 
                             अपर्णा की जिंदगी भी कोई अच्छी नहीं बीत रही थी। नौकरी तो पहले से करती थी लेकिन तब घर और ऑफिस ही नजर आता था। तभी उनके जीवन में कुछ ऐसी घटनाये घटी की सबकुछ बदल गया।  फिर उनके ऊपर उनके दो बच्चों की परवरिश आ गयी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सभी सपनो को पीछे छोड़कर पहले खुदको फिर बच्चों को सेटल किया। जब सब कुछ अच्छा हो गया फिर उन्होंने अपने बाइक चलाने के पैशन को जिन्दा किया। जानकर आपको गर्व होगा कि उन्होंने अपने इस उम्र के पड़ाव में बारह घंटे अकेले ही मुम्बई से गोवा के बीच लगभग 670 किलोमीटर बाइक चलाकर अपने जीवन का एक कीर्तिमान रचा। और वे यहीं नहीं रुकने वाली है अपनी पुरानी बुलेट के साथ पुरे भारत का भ्रमण भी करने वाली है जिसकी तैयारी उन्होंने शुरु कर दिया है। 47 वर्ष की उम्र में तीन वर्ष से लगातार अलग अलग क्षेत्र के अलग अलग कैटेगरी में अलग अलग संस्थाओं के द्वारा आयोजित फैशन शो में प्रथम स्थान प्राप्त कर क्राउन जीता। उन्होंने करोना समय में वे बुजुर्ग जिनके बच्चे या तो बाहर देश में हैं या नहीं हैं उन जैसे कितने लोगों तक रोज दोनों समय खाना पहुचाने का काम किया।  साथ में फिल्मशूट पी आर ठाणे के सीरियल में काम करने वाले मजदूरों को रोज टिफिन पहुचाने का काम किया। 
                                उनका सपना है लड़कों की तरह लड़कियाँ भी बाइक चलाये। और सिर्फ बाइक ही न चलाये वे भी स्टंट भी करें। सिर्फ दिखावे के लिए नहीं यह दिखने दिखाने के लिए कि मौका मिले तो हम भी वही कार्य कर सकते हैं जो पुरुष करते हैं। वे भविष्य में लड़कियों के साथ साथ 40 से 48 उम्र की महिलाओं के लिए एक बाइक प्रशिक्षण और एक स्टंट प्रशिक्षण विद्यालय खोलना चाहती हैं। ताकि महिलाएं भी इस क्षेत्र में अपना योगदान दें सकें। इस दिशा में वे और उनकी बाइकर टीम काम भी करना शुरू कर दिया है। 

मेघना अरुण धुल्ला:–








                                              डॉक्टरी के सपने से शुरू होकर फायनांस क्षेत्र में एक भरोसा बनने के बाद यह नाम किसी के कर्मों करम का मोहताज नहीं हैं। लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। अपने जज्बे और परिवार के सपोर्ट की वजह से अपना खुद का एक मुकाम हासिल किया। 
                         मुंबई के मुलुंड से 10वीं पास करने के बाद बाद डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने के लिए साइंस विभाग में भाग लिया। 12 वीं पास होने के बाद उनका बीएचएमएस में नंबर भी लग गया लेकिन घर की परिस्थिति ठीक न होने की वजह से उन्होंने अपने सपने को पीछे छोड़ दिया और एक कॉलेज में प्रवेश लेकर पढ़ाई के साथ साथ एक जगह नोकरी कर ली। और वहीं से एक नए सफ़र की शुरुआत की। पहले उन्होंने एक्यूपंक्चर चिकित्सा केंद्र में काम करना शुरू किया और वहीं पर इस चिकित्सा पद्धति को सीखा भी। उनके द्वारा दिए जा रहे ट्रीटमेंट से मरीजों को आराम मिलने लगा जिसकी वजह से उन्हें मुलुंड से मुंबई के बीच में रोजाना 7–8 मरीज देखने जाने लगी और सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक काम करने लगी। 
       नेचरोपैथी और एक्यूपंक्चर चिकित्सा के साथ ही अपने पति के साथ शत्रुंज्य फयनास नाम के एक फर्म की शुरुआत किया। अबतक उन्होंने 3000 से ज्यादा लोगों को फायनांस से संबंध में विभिन्न प्रकार की जानकारियां दे चुकीं हैं। 
          वे महिलाओं से बात करती हुई उनसे कहती हैं कि समानता के इस दौर में फायनांस से संबंध में आपके पास भी उतनी ही फायनांस से संबंधित जानकारियां होनी चाहिए जितना एक पुरुष के पास होता है। वे अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सभी महिलाओं से कहती हैं कि “पुरुषों से ज्यादा धैर्य महिलाओं के पास होती है। जिसे वे विशेष परिस्थितियों में दिखलाती भी है। इसलिए महिलाओं को विशेष परिस्थितियों के लिए कुछ रकम जरूर जमा करके रखना चाहिए। 
–अजय नायक ‘वशिष्ठ’

























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