सिख लिया हूं
उग्र समंदर में भी कूद जाता हूं
लहरों के थपेड़ों से लड़ना सिख लिया हूं
लहरों के थपेड़ों से लड़ना सिख लिया हूं
किंतु परंतु के बीच नही फसता हूं
अब तुरंत निर्णय लेना जो सिख लिया हूं
खड़ा होता हूं और दौड़ पड़ता हूं
अब गिर, गिरकर उठना सिख लिया हूं
तम भी मुझसे खौफ खाता हैं
जूगनुओं से दोस्ती करना सिख लिया हूं
सूर्य चंद्रमा और तारों से अपनी यारी है
सबका सम्मान करना सिख जो गया हूं
अब मंजिल से, मैं दूर नही हूं
क़िस्मत से लड़ना जो सिख लिया हूं
–अjay नायक ‘वशिष्ठ’
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