Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Thursday 7 March 2019

कुछ लोंगो का आप कुछ नहीं कर सकते हैं!

     

     कुछ लोंगो का आप कुछ नहीं कर सकते हैं!

     कुछ लोंगो का आप कुछ नहीं कर सकते हैं! वे पूछेंगे सवाल आपसे, जवाब मिल जाने पर भी वे आपकी बात को नही मानेंगे। क्योंकि वो आपको, अपने धार्मिक नजरिये से देखते हैं। जहाँ वे सिर्फ आप और आपके अंदर की बुराई को ही देखते हैं। जब आप उन्हें बोलोगे कि भाई साहेब जरा ये अपनी धार्मिक नजरिया उतारकर हमे ज्ञान दें या हमारी बातों को समझने की कोशिश करिए  या अपनी धार्मिक नजरिए से हमे देखना बन्द करिए तो वे वहां से झट से फरार हो जायेंगे। क्योंकि वे आपके पास अपने को सही और आपके को झूठा या गलत साबित करने के लिए ही तो आते हैं। और आज समाज में यही हो भी रहा है। मेरा सही है , तो मेरा सही है। क्योंकि यह बात, यह चीज हमारे सम्मानित लोंगो ने हमे बतलाया है। किताबों में लिखा है। और वे कभी गलत नही हो सकते हैं।
       अब एक ही महाशय को ले लीजिये। उन्होंने आज हमसे पूछा की गंगा में दूध डालना सही है या किसी प्यासे को पानी पिलाना? चूंकि यह प्रश्न जितना सामाजिक लग रहा था उतना ही उनके पूछने और भेजे गए चित्र के माध्यम से धार्मिक भी लग रहा था। धार्मिक लग क्या लगभग वह एक धार्मिक प्रश्न था ही। क्योंकि  अगर ऐसा नहीं होता तो समाज मे धार्मिक लोंगो के द्वारा किए जा रहे तमाम प्रकार के सामाजिक कार्यों को देख लेते तो ऐसा प्रश्न करते ही नहीं। इसलिए हमें लगा इन्हें जवाब देने से पहले क्यों ना एक प्रश्न पूछ लिया जाय। अगर सही हेतु से पूछें होंगे तो वे इसका उत्तर भी सही तरीके से देंगे, नही तो वही तीन धाक के पात। इसलिए हमने भी उनसे पूछ लिया की किसी कि धर्म के नाम पर या किसी के नाम पर या किसी के हुकुम से किसी की जान लेना या उसकी बलि देना कहाँ तक सही है ? तब तक उन्होंने तपाक से जवाब दिया की जान ली हुयी चीज को फेका नही जाता है। गरीबों को खिलाया जाता है। अब आप ही बतालायिये क्या किसी को खिलाया जाएगा या वह खराब नही होता है, या फेका नही जाता है। इसके लिए किसी की भी जान लेना या बलि देना क्या जायज है ? अगर वो जायज हो सकता है तो कोई अपने धार्मिक मान्यताओं को पूरी करने के लिए थोड़ा सा दूध अगर गंगा जी मे गिरा देता है, तो क्या वह गलत है?
         अब वे इसपर आ गये कि आप लोग क्यों खाते हैं? देखिये कैसे उन्होंने बात को घुमा दिया। जायज की बात को व्यक्तिगत पर ला दिए। अब वे बताने लगे की जान तो हर पौधे में होती है। बात दूध की हो रही थी और वे पौधे तक आ गए। क्योंकि उन्हें अपनी ही बात ही को सही सिद्ध करना था कि आप जो करते हो वह गलत है। और हम जो करते हैं वह एकदम से सही है। और इसे वह उस पौधे के माध्यम से सिद्ध करना चाह रहे थे। साथ में वे खाने के लिए किसी की जान लेने को भी सही बतलाने लगे । क्योंकि अब बात उनके धर्म की जो आ गयी थी। इसप्रकार बात दूध से होते हुए कहाँ से कहाँ तक पहुँच गयी। जबकि हमने उनसे यही पूछा कि क्या धर्म के नाम पर या किसी के नाम पर किसी मूक प्राणी की जान लेना या बलि देना सही है या गलत । अब बात उनके धर्म की थी तो वो कैसे पीछे हटते और कैसे समझते!
         हमने उन्हें बतलाया की एक आदमी को लगा की किसी प्यासे को पानी पिलाना चाहिए तो उसने पानी पिलाया दुसरे को लगा कि गंगा को दूध देना चाहिए, तो उसने गंगा में कुछ दूध डाल दिया। यह दोनों की व्यक्तिगत सोच और कर्म है। इसका मतलब यह नही है की जो पानी पिलाता होगा वह कहीं और कुछ नही करता होगा। और जो दूध को गंगा में प्रवाहित कर देता होगा वह किसी गरीब की देख रेख नहीं करता होगा। हर कोई अपने अपने तरिके से लोंगो की सेवा करते हैं। अब आप इसे कहो की आप किसी की जान लेते हो वह सही है और दुसरे दूध को किसी को ना देकर, गंगा में प्रवाहित कर देते हैं वह गलत है। क्योंकि वह खराब जा रहा है। 
         भाई अगर गलत सही की बात है तो दोनों गलत है। क्योंकि अगर गंगा में दूध डालना गलत है तो किसी के नाम पर किसी को मारकर, उसकी बलि देकर उसके मांस को लोंगो में बाट देना भी उतना ही गलत है। क्या वह गरीब आदमी आपके यहाँ मांगने आया था। आपके पास ज्यादा हुआ तो आपने बाट दिया। कम होता तो घरभर के लिए ही कम पड जाता। फिर बाटने की सोचते भी नही. क्योंकि बाटा भी तभी जाता है जब आप के उपर आश्रित लोंगो का आप पेट भर देते हो। क्योंकि वे आप पर आश्रित हैं। अगर उसमे से कुछ बच गया है तो आप उसे दूसरों को बाट सकते हो। 
         लेकिन उन महाशय को यह बात बिलकुल ही समझ में नही आ रही थी। वे तो उस दूध वाली बात को ही सही करने के पीछे पड़े थे। हमसे प्रमाण मांगने लगे कि कहाँ लिखा है कि गंगा में दूध बहा दो। लेकिन किसी गरीब को मत दो। हमने भी बोल दिया की प्रमाण की भी उन्हें जरुरत पड़ती है जो बातों को समझते हो। लेकिन जो दूसरों की बातों को समझना ही नहीं चाहते हो, उन्हें आप कितना भी प्रमाण दे दो वे समझेंगे ही नहीं। क्योंकि वह किसी भी चीज को अपने धार्मिक नजरिये से देखना जो चाहते हैं।  या मन बना लिये हो कि हम ही सही है । हमारा ही नजरिया ही सही है। दुसरे के नजरिये से कोई भी चीज बिल्कुल ही सही नही हो सकती है।
        वे सामाजिक रास्ते से उतरकर व्यक्तिगत रास्ते पर आ गये थे. पूरी बातचीत का एक ही सार निकल रहा था की वे एकदम से यह मानकर बैठें हैं कि आप गलत हो तो हो . दूध को गंगा में डालना गलत है और किसी की जान लेना सही है. हमने भी सोचा कि इन्हें समझाना और समझाते-समझाते बात को आगे बढ़ाना सही नही होगा . क्योंकि वे हमारी बात को समझेंगे ही नहीं. 
     तो भाईयों यही चीज हम आप से पूछते हैं की "गंगा में दूध डालना सही है या गलत" उसी प्रकार किसी की भी "धर्म के नाम पर या किसी के नाम पर, किसी जानवर की बलि चढ़ा देना या जान ले लेना सही है या गलत" दोनों सवाल धार्मिक है. यानी दोनों का जवाब भी धार्मिक सोच के आधार पर ही होना चाहिए। अगर सही होंगे तो दोनो नही तो एक भी नही। अब यह आपको तय करना है। हमारे हिसाब से 
www.nayaksblog.com

No comments:

Post a Comment