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Saturday 9 November 2019

रामलला (सदियों के विवाद का एक कठिन भरा सुखद अंत)

 रामलला  

(सदियों के विवाद का एक कठिन भरा सुखद अंत)  

     500 वर्षों से चले आ रहे भारत वर्ष के सबसे विवादित मसले का आज सर्वोच्च न्यायालय ने निपटारा कर दिया। अब बारी है भारत की आम जनता की, वे इस फैसले को माने और आगे बढ़ते हुए 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' का निर्माण करें।  ताकि भारत फिर से विश्व गुरु व फिर से पुरे विश्व में 'सोने की चिड़िया' बन सके।  जैसे वह पुरातन काल में भारत में आये बाहरी आक्रमको से पहले था। आज हमे भी वही करके पुरे विश्व को दिखलाना है। लेकिन यह तब होगा जब फिर से पुरे भारत की जनता पंथ संप्रदाय धर्म जाति भूलकर आगे आये।
     आज के फैसले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है की हम कोई भी फैसला आस्था और विश्वास पर नहीं करेंगे।  हम फैसला सबूतों और कानून के आधार पर करेंगे।  और उन्होंने ऐसा भी किया भी। अब हमारी बारी है कि हम भी सर्वोच्च न्यायालय की तरफ़ से आये हुए इस फैसले को स्वीकार करें व एक बेहतर भारत  बनाने की दिशा के लिए आगे बढ़ चले। इसी में इस नए भारत की भलाई  और विकास छुपा हुआ है।
   आईये देखते हैं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कुछ मुख्य बिंदु को । जिससे पुरे विवाद को निपटाया गया  है। और पूरे विश्व के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था ने और संविधान ने एक लकीर खिंच दी है कि भारत का लोकतंत्र और संविधान आज भी उतना ही मजबूत है जितना 1950 में अपना खुद का संविधान तैयार किया था। 
    शिया बोर्ड 
शिया बोर्ड ने दावा किया था की बाबरी मस्जिद को एक शिया मीर बाक़ी ने बनवाया था।  इसलिए इस विवादित जगह को शिया बोर्ड को दे दिया जाये।  जिसे सर्वोच्च न्यायालय  ने सीधे रूप से ख़ारिज कर दिया। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय को इस बात में कहीं भी, दम नहीं नजर आया की, यह मस्जिद मीर बाक़ी ने ही बनवाया था। मीर बाक़ी बाबर का सिपेहसालार था।  जिसे बाबर ने अयोध्या का उस समय का गवर्नर बनाया था।  ऐसा शिया बोर्ड कह रहा था। लेकिन इसे सिद्ध नही कर पाया। और कोर्ट ने उनके दावे को खारिज कर दिया।
निर्मोही अखाडा 
निर्मोही आखाड़े के उस याचिका को भी सर्वोच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया की आज तक राम लल्ला के रखरखाव से लेकर सब कुछ हम ही देखते आये हैं इसलिए विवादित जगह को हमे दिया जाये और वहां बनने वाले रामलला के मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी भी हमे ही दिया जाये।  सर्वोच्च न्यायालय ने उनके इस बात में दम नहीं पाया। और निर्मोही अखाड़ा ने समय से 6 साल देरी से दावा किया था। इसलिए इनके दावे को भी कोर्ट ने  ख़ारिज कर दिया।  लेकिन केंद्र सरकार से कहा है की न्यास बनाते वक्त उनकी भूमिका को भी ध्यान रखा जाये।  यानी केंद्र के द्वारा बनने वाले न्यास में निर्मोही आखाड़े के रहने का रास्ता साफ़ हो गया है। निर्मोही अखाड़ा भी उस न्यास में सम्मलित हो सकती है। जिस न्यास को केंद सरकार बनाएगी । रामलला के देख रेख के लिए।
ASI की रिपोर्ट को मान्य करना 
सर्वोच्च न्यायालय ने ASI  की इस बात को माना है की वहा मस्जिद से पहले मंदिर जैसा ढांचा था।  और वो मस्जिद तो बिलकुल ही नहीं था।  और इसी के आधार पर अपना फैसला भी सुनाया।  लेकिन एक बात और भी जोड़ा की इससे ये सिद्ध नहीं होता है की मंदिर तोड़कर ही मस्जिद बनाया गया था। क्योंकि ASI मंदिर तोड़े जाने संबंध में कोई भी सबुत उपलब्ध नहीं कर पाई थी।  फिर भी सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को माना की वहां पहले से ही मंदिर था।  जैसा की ASI की रिपोर्ट में था।  2010 में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने भी इसी ASI की रिपोर्ट के आधार पर अपना फैसला सुनाया था।  वही आधार आज सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनाया।  व इसी के आधार पर अपना फैसला सुनाया की वहाँ पहले से ही मंदिर था।
आस्था का आधार व सबूत 
 सर्वोच्च न्यायालय ने आस्था के आधार को पूरे सिरे रूप से ख़ारिज करते हुए कहा, कि  किसी के आस्था के आधार पर कोई भी जमींन किसी भी को नही दी जा सकती है। या कोई फैसला नहीं सुनाय जा सकता है।  आपकी आस्था आपकी जगह सही है।  लेकिन सर्वोच्च न्यायालय फैसला सुनाते वक्त सभी पहलुओं पर विचार करके सबुत के आधार पर ही फैसला देगा। भले वो किसी के पक्ष में हो या किसी के विपरीत।  इस बात को स्पष्ट शब्दों में कहा।  ताकि किसी के मन में सर्वोच्च न्यायालय के प्रति किसी प्रकार की शंका का निर्माण ना हो। 
         1856 से पहले हिन्दू अंदर पूजा नहीं करते थे।  वे बाहरी आहाते  में राम चबूतरा  सीता रसोई में पूजा करते थे।  विवाद होने पर लोग सीता रसोई के बाहर पूजा करने लगे।  और विवाद बढ़ने के बाद 1857 में एक रेलिंग लगायी गयी।  और एक तरफ लोग पूजा करने लगे व दूसरे तरफ नमाज पढ़ने लगे। लेकिन 1934 में दंगे होने के बाद से मुसलमानो का एक्लूसिव अधिकार आंतरिक अहाते में नहीं रहा। वे नमाज पढ़ना बन्द कर दिए। और वे जगह पर अपना दवा साबित नहीं कर पाए। और हिन्दू निर्विवाद रूप से बाहरी आहाते में पूजा करते रहे।  क्योंकि वे मुख्य गुबंद के निचे ही गर्भगृह मानते रहे थे।  इसलिए पूजा करते रहे। 
        ASI  की रिपोर्ट की वहां पहले से ही कोई मंदिर जैसा ढांचा था। और मस्जिद में ही नमाज पढ़ी जा सकती है ऐसा सुन्नी बोर्ड की बात को ख़ारिज कर दिया की कहीं ऐसा नहीं कहा गया है की नमाज मस्जिद में ही पढ़ी जाती है और फिर वो जमीन मुसलमानो की ही हो गयी।  इसी के आधार पर और यात्रियों के वृतांत और पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित जगह का मालिकाना हक़ रामलला न्यास के पक्ष में सुनाया।  यानी हिन्दू पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय को यह समझाने में  समर्थ रहे की मस्जिद से पहले वहां के मंदिर था।  और मस्जिद बनने के बाद भी निर्विवाद रूप से रामलल्ला की पूजा होती चली आयी है। सर्वोच्च न्यायलय ने आस्था का आधार ना लेते हुए भी सारे सबूतों के आधार पर ही रामलला को विवादित जमीन सौप दी।  
    सुन्नी बोर्ड 
        सुन्नी बोर्ड की सभी दलीलों को सबूत के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने सही नहीं पाया। साथ में ही उसके बातों में समय समय के अनुसार विरोधाभास भी दिखे। कभी कहा कि पहले यहाँ ईदगाह थे। तो कभी कहा कि मस्जिद था। इसलिए यह फैसला उनके पक्ष में नहीं गया।  फिर भी कुछ बातें उनकी तरफ से क्लियर हुयी की बाबर ने मंदिर गिराया था।  इसका कोई सबूत ना तो ASI  ने दिया और ना ही रामलला , निर्मोही अखाड़ा व अन्य पक्ष दे पाए।  इसलिए यह इल्जाम ख़ारिज हो गया की राम मंदिर को बाबर ने ही गिराया था।  और मंदिर गिराकर उसकी जगह बाबरी मस्जिद का निर्माण उसके और उसके सिपेसलाहर मीर की तरफ से करवाया गया था।  
     चूँकि बाबरी मस्जिद एक विवादित होने के बाद भी उसे १९९२ में कुछ लोंगो के द्वारा गिरा दिया गया था।  इसलिए दूसरे समाज में या पक्ष में भी  एक अलग माहौल बना।  इसलिए उन्हें भी 5 एकड़ जमीन केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर विवादित जगह में से ही या अयोध्या के अंदर या अयोध्या के बाहर कहीं भी उपलब्ध करवा के दे।  ताकि उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय ना हो। और यह हम 142 के अनुसार मिली निर्विवाद शक्तियों से उन्हें दे रहे हैं।
सुन्नी बोर्ड की इस दलील को भी ख़ारिज कर दिया की मस्जिद को हटाया नहीं जा सकता है एक बार बनाने के बाद।  कोर्ट ने खा कि " कोर्ट हदीस की व्यख्या नहीं कर सकता है।  नमाज पढ़ने की जगह को मस्जिद मानने के हक को मां नहीं सकते हैं। लेकिन 1991 के प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट धर्मस्थलों को बचाने की बात करता है। यह एक्ट भारत की धर्म निरपेक्षता की मिसाल है "  . इस तरह मस्जिद बनने के बाद मस्जिद का अधिकार उनके पास ही रह सकता है।  इस बात को ख़ारिज कर दिया।  और कोर्ट ने कहा की 1856 से पहले भी यहां नमाज पढ़ी जाती थी इसका सबूत सुन्नी बोर्ड नहीं दे पाया। और ना ही कोई सबुत है।
पूजा का अधिकार 
कोर्ट ने "मेरे पूजा करने के अधिकार" को जायज ठहराया।  श्री गोपाल जी के इस याचिका को स्वीकार कर लिया।  और किसी को उसके पूजा करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। और हिन्दू वहां सदियों से पूजा करते चले आ रहे हैं।
    इस प्रकार से विवादित जमीन को हाई कोर्ट के 3 भागों बाटने की कल्पना को परे समझते हुए रामलला को दे दिया। साथ ही कहा की केंद्र सरकार 3 महीने के अंदर एक न्यास बनाये और जमीन विवाद के सारे मसलों को सुलझाते हुए उन्हें सौप दे। ताकि मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ हो। न्यास में सभी पक्षों को भी शामिल करें।  जो जो पक्ष कोर्ट में केश दाखिल किये थे।
अब बारी सरकार की है कि दोनों पक्षो से बात करे। जिनके पक्ष में फैसला आया है उनसे भी करें। ताकि जल्दी से जल्दी मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाये। इसके साथ ही उनसे भी बात करे जिनके पक्ष में फैसला नहीं है। उन्हें भरोसे में की आपके साथ अन्याय नही होगा । कोर्ट ने जो 5 एकड़ जमीन देने की बात कर रहे थे। वो हम आपको जल्दी से जल्दी उपलब्ध करवा के दे देंगे। और हम 3 लोग मिलकर भगवान श्री राम जी का भव्य मंदिर बनवाये। यह सब अब सब केंद्र के पाले में है ताकि वे भी रोटी ना सेकते हौये समाज मे सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करें।
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