Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Friday 10 July 2020

'सवाल', जो खुद में एक बड़ा सवाल है!

    भारत की स्थिति ही ऐसी है यहाँ सवाल उठते ही रहते हैं। जब तक लालू जी बाहर थे तब तक वे बाहर क्यों हैं वे अंदर क्यों नही है ? जैसे सवाल उठते थे । अंदर जाते ही वे ही अंदर क्यों है? और भी दोषी है उन्हें अंदर क्यों नहीं किया? उन्हें फसाया गया है जैसे सवाल उठने लगे थे और आज भी उसी प्रकार से निरंतर रुक रुक कर उठा रहे हैं। इसमें कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। भारत का जनमानस ही ऐसा हो गया है। यहाँ पड़ोसी का बच्चा और पडोसी के घर आई हर वस्तु बहुत ही सुंदर लगती है . क्योंकि वह हर सुबह शाम चाय जो प्यार से पूछ लेता है! 
     तो उसी प्रकार से विकास दुबे के मामले में सवाल उस दिन भी उठ रहा था जिस दिन आठ पुलिस वालों को पुलिस वालों की जगह उसने ही घेर कर मार दिया था और फिर आसानी कैसे फरार हो गया?  सवाल कल गिरफ्तार होने पर भी उठ रहा था कि इतनी आसानी से कैसे गिरफ्तार हो गया? और आज तो पूरा एनकाउंटर ही हो गया । तो सवाल क्यों नही उठेगा या क्यों नही उठना चाहिए? जिनकी रोजी रोटी ही इसपर चलती हो तो वो सवाल उठाएंगे ही चाहे अच्छा हो या खराब !  
    यह एक स्वभाविक भाव है जो सवाल उठाने वाले के मन मे परत दर परत अलग अलग समय पर अलग अलग सवाल आते रहेंगे। और आप अगर उनके चक्कर में पड़ेंगे तो  खुद ब खुद एक सवाल बन जाओगे की हम आये ही क्यों? 
   इसलिए उन सवालों के चक्कर में पड़ने से अच्छा है दूसरे दुर्दांत पर नजर गड़ाए और उसपर सवाल उठाए। कि विकास दुबे का जो होना था वह हो गया अब उनका क्या होगा ?  जो अब भी बाहर बिंदास्त घूम रहे हैं? क्या वे भी ऐसे ही किसी को मारेंगे? फिर किसी के संरक्षण में जाकर चुनाव लड़ेंगे ? या उन्हें विकास दुबे बनने और उन्हें विकास दुबे बनाने वालों को पहले ही दबोच लिया जाएगा । ताकि भविष्य में न कोई विकास दुबे बन पाए और ना ही कोई विकास दुबे जैसे लोगों को पाल पोस पाएं। 
    लेकिन यहाँ तो हमेशा से ही उल्टा होता आया है जिसपर सवाल उठना और उठाना चाहिए कि घर का एक आदमी किसी पर टेढ़ी नजर करता है  तो उस घर का ही कोई दूसरा आदमी क्या, पूरा घर ही उसे पुचकारने लगता है. उसकी आवभगत करने लगता है वह भी कुछ हरे भरे घास के लिए! ऐसा क्यों ? 
      आपके द्वारा ऐसे सवाल उठाने से क्या भरोसा उसका और उसके भरोसे जीने वाले व उससे सताए हुए कितनो का कल्याण हो जाये! और निरपराधों के खून से रँगी ये बगिया फिर से महक उठे। अंत मे उन सवाल उठाने वालों से कहेंगे जितना सवाल इन सात दिनों में उठाये हो अगर उतना सवाल पहले उठाये होते तो शायद यह सवाल ही सवाल नही होता! लेकिन फिर आपको इतना मौके भी नही मिलते बोलने का। जो आप बिलकुल ही नही चाहते हैं!
जय हिंद
    ब्लॉगर अजय नायक
www.nayaksblog.com

2 comments: