Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Tuesday 8 September 2020

हमारे पिताजी [ विश्वास और सकारत्मक सोच का जीता जागता उदाहरण ]

हमारे पिताजी  

[ विश्वास और सकारत्मक सोच का जीता जागता उदाहरण ]



      वैसे तो कहानियां हमारे पास और हमारे आसपास बहुत सी रहती हैं। फर्क इतना सा है कि कुछ काल्पनिक और कुछ यथार्थ रूप में  होती हैं।  तो आज हम आपको एक यथार्थ कहानी सुनाएंगे।  हमारे पिताजी के संबंध में।  जब वे अपने गले के कैंसर के इलाज के लिए दुबारा अस्तपताल में भर्ती हुए थे। यह बात या कहानी बोल लीजिये। है हमारे आपके विश्वास की।  कि हमारा विश्वास कितना मजबूत होकर हमे कितनी बड़ी जीत दे जाता है। 

अगर आप किसी पर विश्वास करो साथ में खुद पर भी उतना ही विश्वास कीजिये तो खराब से खराब समय भी टल जाता है। हमारे पिताजी के साथ और हमारे साथ भी उस समय कुछ ऐसा ही हुआ था। और हम अपनी उस समस्या से निजात पाए जो उस समय बहुत ही बड़ी होकर मौत के द्वार तक दस्तक दे चूँकि थी।  यह बात हमे डॉ साहेब ने ठीक हो जाने पर बताई। 

     ये बात बात है नवंबर २०१८ की। जब वे यानी हमारे पिताजी अपने गले के कैंसर के इलाज के लिए अस्तपताल में भर्ती होने के बाद, वहां से ऑपरेशन करवाने के एक हप्ते बाद ठीक होकर घर आ गए थे। लेकिन चार दिन ही हुए थे कि जिस स्थान पर ऑपरेशन हुआ था वहां के एक टाँके कि जगह से पहले हल्का फिर थोड़ा ज्यादा मवाज निकलने लगा। पहले हमे लगा कि ऐसे ही है लेकिन दूसरे दिन थोड़ा भी खांसी आने पर या वहां थोड़ा भी दबाने पर वह निकलने लगा। जिसकी वजह से डा. की सलाह पर फिर से कुछ और दिन के लिए वे दुबारा अस्तपताल में इलाज के लिए भर्ती हुए थे। 

     हमे रात में उनके पास रहना होता था इसलिए हम रोज सुबह डॉ. से मिलने के बाद घर आ जाते थे।  और उस दिन भी डा. से मिलने के बाद घर आ गए थे। रात में ९ बजे के करीब हम अस्तपताल पहुंचे थे।  तो देखते हैं कि अस्तपताल की लॉबी में पिताजी से छोटे हमारे चाचाजी, और हमारे बड़े भाई जी थोड़े चिंतित रूप में खड़े थे।  असल में वे लोग मेरा ही इन्तजार कर रहे थे। 

क्योंकि वहाँ पहुँचते ही चाचाजी ने कहा कि "अजय हम तुम्हारा ही इन्तजार कर रहे थे। " 

      पहुँचते ही हमने भी उनसे पूछा क्या हुआ? सही में बताएं तो उन्हें ऐसे खड़े देखकर थोड़ा हम भी डर गए थे।  क्योंकि सुबह जब गए थे तो पिताजी की तबियत अच्छी नहीं थी।  जिस चीज के इलाज के लिए हम लोगो ने उन्हें फिर से अस्तपताल में भर्ती करवाए थे।  यहां आने के बाद भी उन्हें थोड़ा भी आराम नहीं मिल रहा था।  उल्टे वह बढ़ते ही जा रहा था। अब तो मवाज के साथ खून भी उस टाँके की जगह से आने लगा था।  खांसी रुकने की जगह और बढ़ गयी थी। खांसी जब शुरू होती तो रुकने का नाम नहीं ले रही थी।  कोई दवा ही काम नहीं कर रही थी।  खांसी की वजह से पहले मवाज फिर दिन में ही एक बार इतना खून टाँके की जगह से आया की पूरा कपड़ा और चादर भीग गया था।  वही फिर से रात के दस से साढ़े दस के बिच में शुरू हो गया था।  इस बार थोड़ा सा खून मुहं हुए गले में जहां एक सांस लेने के लिए एक छेद बनाया गया था उस जगह से भी आने लगा था। जिसकी वजह से हमे उसी रात उन्हें डा. से बात करके icu में भर्ती करना पड़ा था।  उस समय icu में जो भी रिपोर्ट किये गए सब नार्मल आयी। लेकिन उन्हें आराम नहीं मिल रहा था।  हम लोग सारी रात icu के बाहर जागकर बिताये थे। लेकिन सुबह बहुत ही थोड़ा आराम हुआ था।  वे सोये थे इसलिए लगा। लेकिन पूछने पर बोले की आराम नहीं लग रहा है।  डा. बोल रहे थे थोड़ा समय लगेगा। और फिर हम बड़े भाई के आने पर घर चले आये यह बोलकर कि कुछ दिक्क्त होगी तो तुरंत बताईयेगा। उनका कोई फोन तो नहीं आया था तो हम निश्चिंत  थे कि थोड़ा आराम होगा लेकिन उन्हें लॉबी में ऐसे खड़े हुए देखने के बाद तो हमारी भी हालत ख़राब हो गयी थी। 

    तभी चाचा जी फिर से बोले कि "अजय उन्हें यहां बिल्कुल ही आराम नहीं मिल रहा है।  हम सोच रहे हैं कि उन्हें यहां से निकालकर किसी दूसरे अस्तपताल में क्यों न भर्ती किया जाए। जो पैसा लगेगा वो लगेगा लेकिन यहां नहीं रखेंगे। और हमने यहां के एक बड़े अस्तपताल में बात भी कर लिया है आप डॉक्टर से बात कर लो।  और बोलो कि उन्हें यहां अभी का अभी छुट्टी दें। "

     बड़े भाई  हैं।  पिताजी ने ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया था।  एक बात था हमारे सभी चाचा में. एक भी चाचा ने कभी पिताजी की कोई बात का बुरा मानकर पलटकर जवाब नहीं दिया।  भले ही पिताजी, कहीं गलती ही क्यों न किये हों।  उसी प्रकार से पिताजी भी उन्हें बहुत मानते थे।  तभी तो उनके आते ही बोले कि ''मुझे कहीं और दिखाओ अरविन्द।" अरविन्द हमारे बड़े चाचा जी का नाम है। "यहां हमे थोड़ा भी आराम नहीं मिल रहा है।  तकलीफ बढ़ती ही चली जा रही है। ये लोग पता नहीं क्या कर रहे हैं। डा. भी देखने एक दो दिन से नहीं आये थे।"

    उनकी बात को हम भी नहीं काट सकते थे।  इसलिए हम जिस डॉक्टर के माध्यम से वहाँ गए थे उनसे बात  किये कि, उनकी तबियत में किसी भी प्रकार का कोई सुधार नहीं हो रहा है।  कृपया करके आप डॉक्टर से बात कीजिये। घर के सभी सदस्य परेशान हैं। और बोल रहे हैं कि अगर उनसे नहीं हो रहा है तो हमे छुट्टी दें ताकि हम खिन और दिखा सके।  

तो उन्होंने कहा की, "अजय जी आप चिंता मत करिये, हम स्वयं डॉक्टर से बात करते हैं।"  ये वही डॉक्टर थे जिनके सलाह पर हम इन डा. के पास आये थे। और यही नहीं  इनका ऑपरेशन के समय में, कुछ भी काम नहीं होने पर भी पुरे समय ऑपरेशन में भाग लिए थे।  वो भी अपने खुद के सभी ऑपरेशन छोड़कर सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए। फिर उनकी बात कैसे काट सकते थे।  यहां तक वो पिताजी को देखने स्वयं घर पर भी आये थे।  आज वही कह रहे थे कि "अजय जी चिंता मत करिये, जितनी जवाबदारी आपकी है उतनी ही हमारी भी है। हम उनके डॉक्टर से अभी बात करते हैं।"  यही विश्वास की सबसे बड़ी संजीवनी हमे सबसे पहले मिली थी।  कि कम से कम वे हमे निराश नहीं कर रहे हैं।  और हमारे लिए कुछ न कुछ करना चाह रहे हैं। यानि अब जो होगा वो अच्छा ही होगा।  उनपर विश्वास करके, कम से कम हमे आज की रात तो देखनी चाहिए।  

     डॉक्टर साहेब का फोन आया और बोले की उन्होंने फोन किया था icu में और वहाँ के डॉ. ने बोला है कि कल की रात से आज अभी तक बहुत सुधार है।  इसलिए खिन जाने से अच्छा हम पर विश्वास करके आज रुक जाएँ।  कल सुबह  आजायेंगे उन्हें देखने के लिए।   अगर आराम नहीं रहा तो हम खुद ही छोड़ देंगे। बस यही बात करके हम सीधे पिताजी के पास icu  रूम में चले गए थे। जहाँ पिताजी एक दिन पहले ही रात के करीब ११ बजे तबियत बिगड़ने पर सामन्य वार्ड से भर्ती  हुए थे। चाचा जी से यह बोलते हुए कि "एक बार हम उनसे मिलकर आते हैं फिर कुछ बतलाते हैं। " हमे एक शंका थी कि वे थोड़े नहीं बहुत ही ज्यादा निराश हो गए हैं।  और कोई होगा भी क्यों नहीं।  इतनी दवाईयां इतना इलाज होने के बाद भी उसका परिणाम शून्य निकल रहा है।  ऊपर से वह खून का देखना।   हर कोई चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो एक बार हील तो जाएगा ही।  ऐसों के लिए जरूत होती है विश्वास की।  एक सकारात्मक सोच की।  यह दिखाने की आप के साथ और भी आपके लिए लड़ रहे हैं।  वे आपके घर के भी हैं बाहर के भी हैं या पैसे लेकर ही सही लेकिन उनका लड़ना भी आपके लिए ही लड़ना माना जाएगा।  क्योंकि कोई इतना भी निर्दयी नहीं होता है कि उसका दिल ही न धड़कता हो।  पेशा होता है कुछ का तो दिखाना भी पड़ता कि हमारा तो दिल ही नहीं है तो धड़केगा कहाँ से।  पापा का इलाज करने वाले डा., नर्स और वार्ड ब्वाय भी कुछ ऐसे ही थे

    खैर वहां पहुँचते ही पिताजी हसने लगे।  हंसी वैसी तो नहीं थी लेकिन उसमे निराशा भी नहीं थी।  हम सोच में पड़ गए ये यहां कैसे हैं और वहां निचे इन्हे यहां से कहीं और ले जाने की चर्चा चल रही है।  सब लोग चिंतित हैं कि भइआ को आराम ही नहीं मिल रहा है। तभी हमने कहा कि आप चाचा जी से कहे हो की हमे यहां से निकालो। यहां ठीक से इलाज नहीं हो रहा है।  

     तो वो बोले की 'हाँ यह सही है।' हमे लगा कि बेटे से तो अपना दुखड़ा नहीं सूना पाए। लगा होगा कि बेटे और परेशान हो जाएंगे। तो भाई को देखते ही खुद को रोक नहीं पाएं।  आखिर में वे भाई जो थे।  पूरा बचपन साथ बिताये।  एक दूसरे का साथ दिए।  तो बेटा वह जगह कहाँ बना पायेगा। थोड़ा ईर्ष्या भी हो रही थी की बेटे से न बोलकर उनसे बोल रहे थे। लेकिन निचे चाचा जी एक बड़े भाई के लिए तड़प देखकर आंसुओं के साथ गर्व भी हो रहा था।  कि भले दो भाई कितने भी बड़े दुश्मन क्यों न  जाए उनके अंदर का वो जो विश्वास है, जो माँ के कोंख से आता है वह उनके मरने के  ही ख़त्म होता है।   

तो हमने कहाँ की पिताजी अगर आप कहीं जाओगे भी तो क्या गारंटी है की तुरंत ही इलाज शुरू हो जाए।  और डॉक्टर तो एक बार आपको देखकर ही चले जायेंगे।  साथ में कुछ निर्देश दे देंगे।  करेंगे तो यही लोग ही ना। फिर एक दिन और क्यों न देख लेते हैं।  और वे अपना सिर हलाते हुए बोले की हम ठीक हैं और इशारो में बोले की ये लोग भी ध्यान रख रहे हैं। 

    तभी हमने icu के उस समय के मुख्य डॉटर को बुला लिया।  और उनसे कहा की ये जाना चाहते हैं। आप लोग ठीक से इलाज नहीं कर रहे हो।  

    तो उन्होंने बोला चाचा जी " एक बार और विश्वास करो।  वैसे आपके रिपोर्ट में कोई बहुत ही गम्भीर बात नहीं है।  हमने देख लिया है बस आप थोड़ा हिम्मत रखिये सब ठीक हो जाएगा।"  

      तभी हमने उस नर्स को भी बुलाय जो उन्हें देख रही थी।  उससे भी वही कहा की यह यहां से जाना चाहते हैं।  केरल की होने की वजह से उसने अपने टूटी फूटी हिंदी में बोला की "सुबह तक आप यहां से जाने का पूरा प्लान बदल दोगे अंकल जी।  यह हमार विश्वास है।" 

     हमने पिताजी की और मुंह करके फिर से बोला अगर कल तक आराम नहीं होगा तो हम यहां से किसी दूसरे अस्तपताल में आपको लेकर चले जाएंगे।  लेकिन आज खुद पर भी विश्वाश रखिये और साथ में हम पर भी थोड़ा विश्वास रखे. अगर हम कहीं जाते भी हैं तो आपको वहां एक नए मरीज की तरह ही देखा जाएगा।  ऊपर से आपका ऑपरेशन कही और हुआ है, यह बात भी उनके दिमाग में रहेगी ही। जब हालत बिगड़ी तो हमारे यहां लाये हैं।  वैसे भी आप रात से अच्छे लग रहे हैं तो हमारे हिसाब से आज रुकते हैं कल सुबह देखेंगे या रात में आपकी तबियत अगर खराब हुयी तो......... 

       उन्होंने तुरंत अपना सर हिलाते हुए कहा कि यह सच है कि रात से तो बहुत ही आराम है।  

       फिर हमने बोला कि क्यों कहाँ की हमे किसी और अस्तपताल में भर्ती करवाओ। 

        तो इशारों में बोले की बाबू हम डर गए थे। हमे लग रहा था कि ये लोग लापरवाही कर रहे हैं।  इसलिये। ......... 

      असल में हुआ ऐसे की उनका जहां पर ऑपरेशन हुआ था वहां पहले मवाज आ रहा था।  फिर अस्तपताल में आने के बाद भी वह मवाज आना बंद नहीं हुआ था और धीरे-धीरे जब जोर से खांसने लगते थे तो मवाज के साथ साथ खूंन आने लगा था।  पहले हमे लगा की यह उस मवाज की वजह से ही आ रहा है।  लेकिन उस रात उनके मुहं से भी थोड़ा खून आ गया।  और खांसी बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी।  हम और हमारे छोटे चाचा जी करीब खून पोछ-पोछ  कर दो से तीन टिसू पेपर का पैकेट खत्म कर दिया था।  यहां तक की उनका शर्त भी खून से लाल हो गया तब हमने नर्स को बुलाया उनसे भी कुछ नहीं हुआ तो उन्होंने डॉटर को फोन किया और उन्होंने कहाँ की  उन्हें तुरंत icu में भर्ती करो। फिर से वहां सभी रिपोर्ट करवाए गए तो सब नॉर्मल आया।  वजह थी उनकी खांसी जिसकी वजह से उनका टांका खुल गया था।  और वहां पहले मवाज बना।  बाद में वहीं से खून आने लगा था। 

     हम तो उसी रात डर गए थे कि कहीं पापा के साथ कुछ गड़बड़ ना हो जाए। लेकिन मन में विशवास बनाये हुए थे की उनके साथ कुछ नहीं होगा।  बस उनकी खांसी बंद हो जाए एक बार।  सब ठीक हो जाएगा। 

     वही विशवास आज icu के डॉक्टर और नर्स ने उन्हें दिलाया।  आप विशवास नहीं मानोगे सुबह तक वे बिलकुल ही अच्छे हो गए थे। जो कई दिन से खांसी की वजह से सो नहीं पा रहें थे वे उस रात बिंदास्त होकर सोये थे।  खांसी रुकी नहीं थी। थोड़े थोड़े समय पर आ रही थी लेकिन इतनी नहीं थी की उन्हें वह उस रात परेशान की हो।  हमने पापा जी से मजाक में बोला कि अब आज चलते हैं दूसरे डॉक्टर के पास तो वे हसने लगे।  और इसारे में डॉक्टर और नर्स को बुलाने के लिए कहा। 

       वे बगल में ही थे तो उन्हें कहाँ की बुला रहे हैं।  तुरंत वे आये और फिर हमसे कहा की रात भी इन दोनों लोगो ने हमारा बहुत ख्याल रखा ।  यहीं नहीं वार्ड ब्वाय ने भी हमारी सेवा की। फिर हमने उन सभी लोगो को थैंक्स कहा।  और बाहर आकर सोचने लगे की।  

      आप का किसी पर विश्वास करना कितना काम करता है। साथ में आपकी सकारात्मक सोच जो आपको मजबूती प्रदान करती है।  लड़ने का साहस आपके अंदर भर्ती है।  और हमने और खासकर पिताजी ने अपने इसी विश्वास के बल और सकारात्मक सोच के बल पर अपनी उस दो रात की लड़ाई को जीत पाए थे।  जो लड़ाई जीवन से ज्यादा खुद से ज्यादा थी।

          हम तो कहेंगे कि सबकुछ खो जाने दो।  सबकुछ हार जाओ।  लेकिन कभी विश्वास और अपनी सकारात्मक सोच को खोने नहीं देना।  ये आपको सतीसावित्री बनाकर यमराज के यहां से भी अपने पति के प्राण को लाने के लिए हिम्मत से आपको भर देंगे।  भले ही वो नामुन्किम ही क्यों न हो। 

                                              -BLOGGER अjay नायक 

 


      

2 comments: