Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Sunday 25 April 2021

भगवान् महावीर और उनकी शिक्षाएं

भगवान महावीर और उनकी शिक्षाएं 



pic by whatsapp 

आज पूरा भारत देश जैन धर्म के अंतिम व २४वे तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्मोत्सव मना रहा है। जिन्होंने "अहिंसा परमो धर्म" का मन्त्र अपने शिष्यों को दिया था। जिसका ही पालन करके महात्मा गांधीजी ने भारत को आजादी दिलाने में बहुत ही बड़ी भूमिका निभाई थी। गाँधी जी इस मंत्र से इतने ज्यादा प्रेरित थे की उन्होंने कभी भी अपने आंदोलन में अहिंसा का रंच मात्र भी स्थान नहीं दिया। और जब कभी लगा की उनके आंदोलन में हिंसा आ चुका है बिना किसी खौफ के उस आंदोलन को स्थगित करने में देरी नहीं की जबकि वह आंदोलन सफल हो रहा था। लेकिन गाँधी जी का कहना था कि हिंसा से प्राप्त की हुयी चीज ज्यादा दिन नहीं चलती है। हम अंग्रेजों को भगाएंगे लेकिन हिंसा के द्वारा नहीं अहिंसा के द्वारा। और हुआ भी १९४७ में अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही पड़ा। आज हम उसी अहिंसा के जनक भगवान महावीर का जन्मदिन मना रहे हैं 
भगवान् महावीर जैन धर्म के २४ वे तीर्थंकर थे। वे जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे।  जिनका जन्म ई सा पूर्व ६वीं शताब्दी के शुरुआत में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पूर्व बिहार के लिच्छिवि वंश के महाराज सिद्धार्थ और और महारानी त्रिशला के यहां हुआ था। महावीर के माता पिता २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। भगवान महावीर का नाम वर्धमान था। कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद राज्य बहुत ही तेजी से तरक्की करने लगा था। जिसकी वजह से उनके माता पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा था। भगवान महावीर का जन्म जैन धर्म के २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण के लगभग १८०-१९० साल बाद हुआ था। 
भगवान महवीर ने पूरी दुनिया को "अहिंसा परमो धर्मः" का अनमोल मत्र दिया। इस मन्त्र के द्वारा उन्होंने पूरी दुनिया को बताया की हम बिना हिंसा के भी पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन। जिसमे गाँधी जी ने अहिंसा को ही अपनी लड़ाई का सबसे बड़ा हथियार बनाया। और इसी मार्ग पर चलते हुये उन्होंने भारत को आजाद कराने में सबसे अहम भूमिका निभाई। वही ही नहीं अमेरिका के अश्वेत आंदोलन  में भी अहिंसा का प्रमुख योगदान था। अश्वेत आंदोलन के प्रमुख मार्टिन लूथर किंग ने भी गाँधी जी के अहिंसा के आंदोलन से प्रेरणा लेकर (जो की मूल रूप से भगवान महावीर के अहिंसा परमो धर्मः से लिया गया था।) अश्वेतों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी थी। और उन्हें उनका हक दिलाकर दम लिया। इससे यह सिद्ध होता है कि हम बिना हिंसा के भी लड़ाईयां जीत सकते हैं। 
भगवान महावीर ने अहिंसा परमो धर्मः के अलावा भी एक मन्त्र और दिया। और वह मंत्र था "जियो और जीने दो " जिसका अर्थ था कि खुद भी जियो और दूसरों को भी जीने दो। जितना जीने का अधिकार आपका है उतना ही जीने का अधिकार दूसरों का भी है। भले वो कोई भी हो। चाहे आपसे छोटा हो या आपसे बड़ा हो। पुरे विश्व भर में फैले उनके सभी अनुयायी आज भी इन्ही दोनों मन्त्रों के माध्यम से पुरे विश्व को महावीर के संदेश लोगों तक पहुंचा  रहे हैं। एवं भगवान महावीर के द्वारा बताये गए रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। 
जैन धर्म के अनुसार भगवान महावीर ने एक बार १२ वर्ष तो दूसरी बार ५ वर्ष की बहुत ही कठोर तपस्या की थी। और वे अपने पुरे साधना काल तक के वक्त मौन रहे थे। तब जाकर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। और अपनी इन्द्रियों पर जीत प्राप्त की थी। जिससे उन्हें जिन कहा गया। जिसका अर्थ होता है विजेता। उनके इसी कठोर तपस्या की वजह से आगे चलकर उनका नाम महावीर पड़ा। उनके अनुयायी उन्हें महावीर के नाम से सम्बोधित करने लगे। क्योंकि उनकी तपस्या बहुत ही कठोर थी। जो किसी भी युद्ध के मैदान में किसी भी योद्धा के द्वारा दिखाए गए पराक्रम से अपितु थोड़ा भी कम नहीं था। उलट उससे कई गुना अधिक पराक्रम वाला था। उनके बताये हुए बातों के मार्ग पर चलने वालों को आगे चलकर जैन कहा गया। जिसका तात्पर्य है "जिन के अनुयायी या उसे मानने वाले लोग।" धर्म की दीक्षा लेने के बाद भगवान महावीर ने दिगंबर दिनचर्या को अपनाया। जो की बहुत कठोर थी। और निर्वस्त्र रहे। लेकिन इस पार आज भी विवाद है कि क्या वे दिगंबर दिनचर्या तक ही निर्वस्त्र रहे या आजीवन निर्वस्त्र रहे। जैन धर्म के ही दिगम्बर सम्प्रदाय का मानना है कि आजीवन निर्वस्त्र रहे तो वहीँ जैन धर्म के ही दूसरे सम्प्रदाय श्वेतामबर का मानना है कि शिक्षा और कठोर तपस्या तक ही निर्वस्त्र रहे। 
भगवान महावीर ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। जो की आपके जीवन को समृद्धि और शांति की ओर ले  जाते हैं। जिसमे उनके द्वारा बताये गए ५ सिद्धांत सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। अगर हम इन ५ सिद्धांतो पर चले तो हमारी समृद्धि और हमारे जीवन में आने वाली शांति को कोई नहीं रोक सकता है। ये सिद्धांत भगवान महावीर ने मोक्ष पर्पटी के बाद बताये थे। १-अहिंसा , २-सत्य , ३-अस्तेय, ४-बर्ह्मचर्य, ५-अपरिग्रह। 
१- अहिंसा - इसके अनुसार हमे किसी भी प्रकार से अपने जीवन में हिंसा नहीं करनी चाहिए। भूलकर भी किसी जीव को किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुचानी चाहिए। खासकर जैन धर्म को मानने वालों को। जितना हमे जीने का अधिकार है उतना ही दूसरों को भी जीने का अधिकार है। इसी के आधार पर भगवान महावीर ने "जियो और जीने दो" का सन्देश अपने अनुयायियों को एवं उस समय की जनता को दिया था। 
२- सत्य - भगवान महावीर ने सत्य को ही सबसे अच्छा तत्व समझा था। उनके मतानुसार सत्य को अंगीकार करने वाला ही सच्चा मोक्ष प्राप्त कर सकता है। वह मृत्यु के ऊपर जीत प्राप्त कर सकता है। मानव जाति को हर समय सत्य बोलना चाहिए। 
३- अस्तेय - इसका पालन करने वाले अपने मन को भी जीत लेते हैं। ये कभी भी मन के अनुसार नहीं चलते हैं। इन्हे जो ,मिल जाता है उसे हंसी ख़ुशी से स्वीकार कर लेते हैं।  इनके मन में किसी भी चीज के प्राप्ति की लालसा नहीं रहती है। 
४- बर्ह्मचर्य - इसका अंगीकरण करने के कारण वे कामुकता से दूर रहते हैं। वे कामुकता जैसी किसी भी गतिविधि में भाग नहीं लेते हैं। सभी जैनियों को इसका पालन करना चाहिए। 
५- अपरिग्रह - अपरिग्रह का पालन करने से आपके अंदर चेतना का निर्माण होता है। जिससे आपके अंदर के सभी दोषो  नाश होता हैं। और सभी सांसारिक भोग की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं। और अपने मोक्ष के रास्ते को इसके माध्यम से सरल बनाते हैं। 
भगवान् महावीर के द्वारा बताये गए रास्ते जितना उनके समय में प्रासंगिक थे। उतना आज भी हैं। आज के हिंसा के दौर में उनके द्वारा बताये गए सबसे प्रमुख अहिंसा के मार्ग पर चलना बहुत ही जरुरी हो गया है। जिस प्रकार से आधुनकिता और विकासवाद के चक्कर में हम एक से एक खतरनाक हथियारों का निर्माण करते चले जा रहे हैं। इससे हम किसी और का विनाश के साथ साथ खुद के विनाश का जरिया बनते चले जा रहे हैं। आज जरूरत है की हमे हिंसा के तमाम रास्तों को बंद करके अहिंसा के मार्ग को अंगीकार करने की। इसी के रस्ते हम सही मायनो में विकास को छू पाएंगे। हिंसा के द्वारा प्राप्त विकास या कोई भी चीज ज्यादा दिन नहीं टिक पाती है। क्योंकि इससे दूसरे भी प्रेरित होते हैं। और जैसे ही उनके मन में किसी भी चीज को पाने की लालसा जागृत होती है वे उस चीज को किसी भी कीमत पर पा लेना चाहते हैं। तब एक ही आसान मार्ग उन्हें दीखता है और वो है हिंसा का। गाँधी जी इस बात को बखूबी समझते थे। तभी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा को ही सबसे बड़ा हथियार बनाया। और अंत तक अपने इसी मार्ग पर टिके रहे। जिसकी वजह से आज हमारा लोकतंत्र विश्व का सबसे अच्छा लोकतंत्र बन सका। आज फिर से पुरे विश्व के लिए जरुरी हो गया है की वे भगवान महवीर के द्वारा बताये हुए सिद्धांतों पर चले। जिससे पुरे विश्व में शांति का माहौल हो। और सभी देश व वहां के लोग अपना विकास कर सके। 






















   

2 comments: