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Saturday 1 May 2021

क्या हर एक चीज के लिए सरकारे ही जिम्मेदार होतीं हैं या हम भी ?

क्या हर एक चीज के लिए सरकारे ही जिम्मेदार होतीं हैं या हम भी  ?



आज जिस प्रकार से करोना ने, पुरे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक प्रश्नचिन्ह लगाते हुए भारत को धीरे धीरे अब तेजी से अपने आगोश में लेते जा रहा हो तब कुछ इस तरह के प्रश्न का उठना या उठाना भी लाजिमी होता है। "क्या हर एक चीज के लिए सरकारे ही जिम्मेदार होतीं हैं या हम भी?" क्योंकि यह हम सभी को पता है कि ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती है। उसके लिए दोनों हाथों के हथेलियों की जरुरत पड़ती है। अगर सरकारें दोषीं हैं तो हम उनसे एक आना भी कम दोषी नहीं होंगे शायद। हमारे हिसाब से से ज्यादा ही दोषी होंगे। 
आज करोना महामारी से क्या आम, तो क्या ख़ास सभी इसके चंगुल में बड़े ही आसानी से फसते चले जा रहे हैं।  और सिर्फ फंस ही नहीं रहे हैं इसके हाथों जैसा की मिडिया जगत अपने कैमरों के माध्यम से दिखा रहा है कि पूरा शहर ही आज शमसान घाट में जा चुका है। जबकि ऐसा नहीं है कुछ नॉर्मल मौते भी उस शमसान घाट में गयी होंगी लेकिन करोना की वजह से, और trp के कारण वे भी करोना से हुयी मौत में गिनती हो चली जा रही हैं। अब वे अपने आप को या तो भाग्यशाली समझे या या इससे भी ज्यादा गया गुजरा समझ सकते हैं। एक बात तो है ज़िंदा रहते भले उनका नाम नहीं हो पाया होगा लेकिन मरने पर एक पैक प्लास्टिक के कपडे में ही जिसमे उनका चेहरा भी नहीं दिखता है फिर भी वे पूरी दुनिया में देखे जा रहे हैं। तो आखिर में हम यहीं कहेंगे की वे भाग्यशाली ही हैं। कैसे भी दिख तो रहे हैं। और उससे बड़ी बात "मरने के बाद  कुछ् लोगों की रोजी रोटी का प्रबंध भी कर रहे हैं।" इसलिए भी हम उन्हें भाग्यशाली समझते हैं। खैर हम अपने मुद्दे पर आते हैं। "क्या हर एक चीज के लिए सरकारें ही जिम्मेदार होती है?"
अभी कुछ महीने पहले यानि नवंबर २०२० में हम अपने गाँव गए थे। हम यहां से करोना की वजह से हवाई जहाज से गए। हमे लगा रेल से ज्यादा सुरक्षित हवाई जहाज रहेगा। भीड़ भाड़ के बिच में मुश्किल से कुछ घंटे ही रहने होंगे। खैर हम यहां से करोना से सम्बन्धित सभी प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए निकले। और अपने गंतव्य स्थान यानी बनारस हवाई अड्डे पर उतर गए। वहीं मन किया की एक फोटो हवाई जहाज के साथ ले लिया जाए। जैसा की सभी यात्री कर रहे थे। इसके लिए अपने चेहरे से मास्क निचे ही खसकाये थे की तभी एक सुरक्षा रक्षक ने इसारा किया की कृपया करके अपना मास्क पहने रहो। और हमने डर और सुरक्षा की दृष्टि से उसे पहनने  भलाई समझी। क्योंकि उसके पहनने की एक आदत सी पड गयी थी। और मुंबई एयरपोर्ट पर जगह जगह मास्क पहनने के लिए निर्देशित किया जा जा रहा था। जैसे ही सामान लेकर गेट तक पहुँचते हैं। देखते हैं की वहां पर कुछ सुरक्षा रक्षक ही मास्क नहीं लगाए हैं। और लोग चूँकि बाहर निकल रहे थे तो वे लगाने के लिए बोल भी नहीं रहे थे।  इतना भी नहीं बोल रहे थे कि कम से कम हमारे परिसर तक तो लगाए रहो। और हम जब बाहर निकले तो देखते हैं हमे जो जो लेने आये थे उनके ही नहीं और किसी भी पसिंजर को लेने आये परिजन के चेहरे पर सही जगह मास्क लगा हो। और तो और करोना से सम्बन्धित प्रोटोकॉल के नियम का पालन करने की बात ही छोड़ दीजिये। दो गज की दुरी हाथ धोना जैसे अन्य बातें। 
हम अभी आधे रस्ते तक ही पहुंचे ही थे तभी पता चल गया की करोना पूरी दुनिया में है या नहीं लेकिन इतनी दुरी में तो बिलकुल ही नहीं है। और हमे शर्म के मारे अपना भी मास्क निचे उतारना पड़ा। और वह फिर ऐसे उतरा की वापस आते वक्त ट्रेन में ही पहने। स्टेशन पर बिना मास्क के आपको अंदर जाने नहीं दिया जाएगा। यह बात भी एक कोरी अफवाह ही निकली मेन गेट पर कोई भी खड़ा था की मास्क लगाकर आ रहा है कौन नहीं जबकि भोपू के माध्यम से सुचना हर सेकंड दी जा रही थी।  खैर यह भी बात झूठी निकली मास्क सभी लगाए थे लेकिन वह गले पर लगाए थे। ताकि गला सुरक्षित रहे। और वहीं चीज हमे यहां कल्याण स्टेशन पर और फिर वहां से अपने घर तक आते हुए दिखा कि ज्यादा तर के गले पर ही मास्क था। और यहां पर भी लोग पुलिस को देखने पर ही गले से ऊपर मुंह तक मास्क खिसकाते थे। 
हम दुबारा जब फिर से फरवरी में उत्तरप्रदेश गए थे तब भी वही हालात थे। और किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं देखने को मिला।  हाँ एक चीज सिखने को मिली की लोग बिंदास्त हो गए थे। और इस करना जैसी महामारी के बिच बिंदास्त होकर कैसे रहा जाता है। कमोबेश यह हालात सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही नहीं था लगभग भारत के सभी राज्यों में हो चुका था। 
करोना के मरीज लगातार मिल तो रहे थे लेकिन वह एकदम न के बराबर थे। जिसकी वजह से लोग बिंदास्त थे उन्हें किसी चीज की कुछ नहीं पड़ी थी। जबकि मोबाइल पर दिनभर करोना से जागरूक रहने का कॉलर ट्यून सुनते रहते थे कि "जबतक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं।" करोना से बचने के लिए "दो गज दुरी और मुँह पर मास्क लगाना है जरुरी।"  लगभग केंद्र सरकार के साथ सभी राज्यों की सरकारे रोज विज्ञापन के जरिये जागरूक कर रही थी। लेकिन हमारा ध्यान करोना बिमारी पर कम सरकारों के द्वारा खर्च किये जा रहे विज्ञापनों पर ध्यान कुछ ज्यादा ही था। हम इस मुगालते में थे कि हमे कुछ नहीं होगा। यह शहरों की बिमारी है। यह बड़ों की बिमारी है। बड़े इस मुगालते में थे की हमारे पास पैसे की कमी नहीं है। कुछ भी खरीद सकते हैं। दोनों को लगता था की अगर हम अपनी ह्युमिटिंग ताकत बढ़ाये रहेंगे तो मास्क पहनने की भी जरूरत भी नहीं है। 
यहीं नहीं उसके बाद धीरे धीरे तीज त्यौहार भी पड़ने लगे। साथ में मंदिरों मस्जिदों गुरुद्वारों के कपाट भी खुल गए। किसी ने टोका तो पहन लिए या कुछ समझदार अपने आप को समझे तो पहने ही रहे नहीं तो जबतक कोई टोके या रोके नहीं तबतक वह वैसे ही जेब में पड़ा रहता था। सेनेटाइजर का उपयोग करना तो बहुत दूर की बात है। कितने शॉप वाले और ठेले गाडी वाले इसलिए सेनेटाइजर रखे हुए थे कहीं कोई सरकारी अधिकारी आकर छापा मारे और सेनेटाइजर न रखने की वजह से उन्हें फाइन भरना पड़े। वही नहीं उन्होंने जिस दिन सरकार से अपनी शॉप खोलने का परमिशन मिला और उसमे शर्त था की आपको एक सेनेटाइजर भी रखना है जिसकी वजह से सेनेटाइजर ख़रीदे थे। वही सेनेटाइजर आजतक चल रहा था। बस सरकार ने बोल दिया था तो रख लिए। न कोई मांगता और न ही हम देने की जहमत उठाते। खुद तो वे लगा ही नहीं रहे थे तो कहाँ से अपने ग्राहकों को देते।  हम ही कई बार मांगते तो ढूढते हुए बोलते यहीं था। रुकिए देते हैं।    
करोना जैसी कोई बिमारी नहीं है। यह बस सभी सरकारों का अपनी अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए उनके द्वारा एक सुगफ्फा छोड़ा गया है। अगर होता तो उन्हें क्यों नहीं हो रहा है। और अगर हो रहा है तो सिर्फ विश्वास दिलाने के लिए हो रहा है। अच्छा इस आग में घी डालने का काम सोशल मिडिया के महारथी और सरकारों के विपक्ष में रहने वालों लोगो ने और उनके अनुयायियों ने बड़े ही जोर शोर से किया है। हमारी सीधी साधी जनता भी उनकी बातों में आकर फंस गयी। वैसे भी हमारे यहां सकारत्मक से ज्यादा नकारात्मक चीजे कुछ जल्दी फ़ैल जाती है। और लोग बहुत  जल्दी ही उसपर विश्वास भी कर लेते हैं। और यही लोग उन नकारत्मक जैसी बातों को फैलाना शुरू कर देते हैं। 
ऊपर से लोगों को एक और बहाना मिल गया चार राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में पंचायत चुनाव हो रहे हैं। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। वहां के चुनाव की वजह से करोना नहीं फ़ैल रहा है? जब चुनाव होते हैं तो उन राज्यों में चुनाव की वजह से करोना नहीं फैलता है और जिन राज्यों में नहीं होता है उन राज्यों में ही क्यों फ़ैल रहा है ? अब उन्हें कौन बताये कि करोना के मरीज भी तो आप ही में से कोई बनता है! वह जरूर किसी न किसी के आस पड़ोस का ही होगा। तो क्यों न थोड़ी सी जहमत उठा कर पूछ लिया जाए कि क्यों भाई काय आप सरकार के व्यक्ति हो ? अगर हाँ तो आपको समझ आ जाएगा की आप जो सोच रहे थे वह सही था। और अगर नहीं तो आप जो सोच रहे थे वह गलत था। एकदम आसान सा रास्ता है। 
लेकिन क्या है ना हमारे देश में खुद की नाकामियों को छुपाने की आदत सी पड़ गयी हैं। पहले से ही सरकारें करती चली आ रही हैं। अब वही आदत उनके अनुयायियों के माध्यम से होते हुए आम जनता में भी चली आयी है। उसे भी कुछ कहो तो पहले ही वह उसकी नियत पर सवाल खड़ा करती है। अगर जवाब मिल गया तो अपने को फिर से देखती है की हम किस तरफ के हैं। अगर उनकी तरफ से हैं तो बात माननी ही नहीं है पुरे जोर शोर के साथ उसका प्रचार भी करना है। और अगर दूसरी तरफ  तो पहले तो बात ही नहीं माननी है। फिर उसी के उलट उसके बारे में गलत जानकारियों के माध्यम से पुरे शोर शराबे के साथ प्रचार करना है ताकि दिलो दिमाग में नकारात्मक बाते एकदम मजबूती  के साथ घर कर जाए। 
वैक्सीन जो पहली बार भारत में बनकर आयी। जिसे पूरी दुनिया ने सराहा और उसकी मांग भी की। जो की आजाद भारत में पहली बार हुआ। उसके खिलाफ भी लोग उजुल फिजूल बातें शुरू कर दिए। भारतीय वैक्सीन के बारे में बड़ी बड़ी अफवाहें उडने लगी। खुद वैक्सीन के खिलाफ में एक सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हो गए। अब सोचिये जिस भारत में लोग जिसे मानते हैं उसे हद से ज्यादा मानते हैं। वे लोग क्या अपने पूर्व मुख्यमंत्री की बात नहीं सुननेगे। वे तो और उस बात को बढ़ा चढ़ाकर अपने से निचे वालों के सामने पेश करेंगे। अगर विशवास न हो तो सोशल मीडिया को देख सकते हैं। कैसे किसी बात का बतंगड़ बनाया जाता है। लोगों ने यहां तक कहा की इससे बच्चे ही पैदा नहीं होंगे। और वो शंका आज भी बनी हुयी है। जबकि भारत के सभी डॉ स्वास्थ्य कर्मी पुलिस और स्वयं प्रधानमंत्री ने लगवा लिया लेकिन लोगों के मन से शंका नहीं गयी। क्योंकि यह शंका उनके पूजनीय ने जो दाल दिया था। तो जबतक वे खुद आकर न कहे तो कैसे दूर होगी। इसकी वजह से वैक्सीन लगवाने की जो रफ़्तार उस समय पकड़नी थी वो पकड़ नहीं पायी। 
आज जरुरी है केंद्र सरकार और अन्य राज्यों के सरकारों एवं उनके सिस्टम पर ऊँगली उठाने से पहले खुद के गिरेहबान में भी झाकने की। उनसे तो गलतियां ही नहीं प्रशासनिक स्तर पर पूर्ण रूप से विफल होना हुआ है। उन्हें अपनी को  विफलता को आज नहीं तो कल स्वीकार करना ही होगा।  लेकिन इसके साथ साथ इस महामारी के दूसरे चरण के फैलाव में हमारा हाथ भी उनसे थोड़ा भी कम नहीं है। अगर ठीक से विश्लेषण करेंगे तो उनसे ज्यादा ही निकलेंगे। इसलिए सभी सरकारों के साथ साथ हमे भी अपने गिरहबान में आज झाकने की जरूरत है। कि हम करोना को रोकने में कितना कार्य किये हैं? कितने उपाय किये हैं? लोगों को कितना जागरूक किये हैं ?  आज कुछ लोग फिर से LOCKDOWN लगाने के लिए कह रहे हैं उनसे यही सवाल खुद से भी पूछना चाहिए कि पिछली बार जब LOCKDOWN लगा था तो कितनो को बाहर न निकलने के लिए जागरूक कर पाए थे ? इसलिए अब भी समय है दूसरों पर उँगलियाँ उठाने की जगह खुद को सही करें और जहां हैं वहीं सरकार के द्वारा बताये जा रहे उपायों का पालन  करते हुए कुछ दिन रुक जाईये। देखना हम अपनी आत्मसंयमता से उसे बिना किसी संसाधन से हराएंगे।  























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