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Saturday 20 November 2021

जरूरतमंद लोगों तक दो वक्त का भोजन पहुंचाता इस्कॉन,

जरूरतमंद लोगों तक दो वक्त का  भोजन पहुंचाता इस्कॉन, जुहू 



इस करोना के समय में बहुत सी ऐसी संस्थाए हैं जो बिना तामझांम से अपने काम में लगी रही। जो काम वह करोना के आने से पहले काम करते हुए चले आ रहे थे। वही काम ये संस्थाए गौर गरीबों या भूखों का पेट जिस तन्मयता से इस करोना काल से पहले भरती थी उसी तन्मयता से करोना काल और आज भी भर रही है। ऐसा नहीं है कि इनके सामने कोई समस्याएं नहीं आयी। इनके सामने भी उतनी ही समस्याए थी जितनी इस देश के हर एक नागरिक के सामने करोना के सामने प्रकट हुयी थी। लेकिन अपने जज्बे और निःश्वार्थ भाव की वजह से सामने आने वाली हर समस्याओं का सामने करते हुए अपने अपने क्षेत्र के जरुरत मंदो को दो वक्त का निवाला उन तक पहुंचाने का कार्य बड़े ही सहज रूप से कर रहे हैं। और आशा है कि वे इसी प्रकार से आगे भी आखिरी लाइन के उस व्यक्ति तक पहुँचते रहेंगे जहां हमारा सरकारी महकमा सबकुछ होने के बावजूद नहीं पहुँच पाता है। और फिर एक दिन किसी न किसी अखबार में यह बात छपती है की भूख या कुपोषण की वजह से फला जगह पर फला लोगों या बच्चों की मौत हो गयी। वो भी यह बात तब लाइम लाइट में आती है जब यही खबर कोई बड़ा अखबार वाला छापता है। नहीं तो कितने तो छोटे अख़बारों में छपने पर भी लाइम लाइट से बहुत दूर रह जाते हैं। 


 


आज हम बात करेंगे ऐसी ही एक संस्था के बारे में जो अपने शुरुवाती दिनों से ही भगवान की भक्ति का प्रचार प्रसार करने के साथ साथ करोना से पहले कम से कम १२ हजार लोगों को दोनों समय का भोजन करवाते चला आ रहा है। और इस करोना समय में सरकार के नियमों की वजह १२ हजार तो नहीं लेकिन रोज ७ से ८ हजार लोगों तक भरपेट खाने जितना भोजन पहुंचा रहा है। वह भी तब जब सीधे तौर पर उसके यहां आने वाले लोगों पर करोना नियमो की वजह से प्रतिबन्ध लगा हो। उस संस्था का नाम है हरे रामा हरे कृष्णा संस्था (इस्कॉन) मंदिर, जुहू, मुम्बई, महाराष्ट्र। यह संस्था दूर दराज के क्षेत्रों में जाकर वहां के जरूरतमंद लोगों को दो वक्त का खाना देने का काम बिना रोक टोक के साल के ३६५ दिन कर रहा है। सिर्फ दूर दराज के क्षेत्र ही नहीं अपने आस पास के क्षेत्रों में निर्माणाधीन इमारतों में काम करने वाले लोगो और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों तक २ वक्त का भोजन पहुंचा रहा है।



इस्कॉन जुहु में भोजन वितरण का ३५ वर्षों से काम देखने वाले ७३ वर्षीय निताई प्रभु (सेठी जी) ने बतलाया की भोजन वितरण में हमारी कुल ५ गाड़ियां लगी हुयी है। जो सुबह ८.३० से १० बजे के बिच में भोजन वितरण करने के लिए निकल जाती है। करोना से पहले हम लगभग १२ हजार लोगों तक दोनों वक्त का भोजन पहुंचाते थे। लेकिन करोना के नियमो की वजह से हम अब सिर्फ एक समय का भोजन ६से ७हजार लोगों तक ही पहुंचा रहे हैं। 





र्थिक मदत :

                   निताई प्रभु ने बतलाया की हमे हर तरह की मदत मिलती है। अर्थ के रूप में भी और सामान के रूप में भी। मदत करने वाला जिस रूप में भी हमारी मदत करता है हम उसके द्वारा दी गयी मदत को सहज रूप से स्वीकार कर लेते हैं। यहां पर लोग अपनी स्वेच्छा से दाल चावल गेंहू दे जाते हैं। हाँ करोना के बाद से ऑनलाइन मदत करने वालों की तादात बढ़ गयी है। क्योंकि मंदिर डेढ़ साल से बंद होने की वजह किसी श्रद्धालु को मदिर आने की आज्ञा नहीं थी। मंदिर बंद होने पर भी हमारा कभी भोजन वितरण का कार्यक्रम नहीं रुका।  हाँ ये हुआ जहां हम करोना से पहले १२ हजार से ज्यादा लोगों को एक दिन का दोनों समय का भोजन देते थे वहीँ पर यह सरकार के नियमो की वजह से घटकर ७ से ८ हजार हो गया। लेकिन अब खुल रहा है इसलिए हमे आशा है की हम पहले की तरह फिर से लगभग १२ हजार लोगों को भोजन हर रोज दे पाएंगे। 

                    निताई प्रभु ने बतलाया कि हम हर किसी के पास जाकर कभी मदत नहीं मांगते हैं। क्योंकि कभी कभी वह सुनकर अनसुना कर देता है। उसे विश्वास नहीं होता है न खुदपर और ना ही दूसरों पर इसलिए हम किसी के पास जल्दी जाते नहीं हैं।  लोग खुद ही हमारे कामों के बारे में जानकर, उन्हें देखकर हमारे पास आते हैं और अपनी स्वेच्छा से उन्हें जो और जिस रूप में बन पाता है वे उस रूप में अपनी तरफ से मदत कर जाते हैं। इसलिए हमे किसी के पास जाना नहीं पड़ता है। फिर भी हम कुछ ऐसे जगहों पर जरूर जाते हैं या उनसे मांगते हैं जहां हमे निराश नहीं होना पड़ता है। आप कह सकते हैं हम व्यक्ति देखकर ही उनसे आर्थिक या किसी और रूप में मदत मांगते हैं। 






लोगों तक पहुँचने का तरिका (सर्वे):

                         निताई प्रभु ने बतलाया की इस्कॉन कभी किसी क्षेत्र का अलग से सर्वे नहीं करता है। फिर कैसे आप पता करते हैं कि इस क्षेत्र में गरीब और जरुरत मंद लोग रहते हैं?  जिन्हे सचमुच में दो वक्त का पौष्टिक खाना की जरुरत है। इसपर निताई प्रभु ने बतलाया कि हमारे लोग जब किसी क्षेत्र में भोजन देने जाते हैं तब वे लोग आते जाते वक्त उस क्षेत्र को देखते हुए आते हैं। फिर वे अपने हिसाब से जहां उन्हें लगता है यहां भोजन की ज्यादा आवश्यकता है वहां पर अगले दिन पहुँच जाते हैं। इस प्रकार से सर्वे भी हो जाता है। और जरुरतमंदो तक भोजन भी पहुँच जाता है। हम विशेष तौर पर कोई सर्वे नहीं करते हैं। 



बजट :

         निताई प्रभु ने हमे आगे बतलाया की हमारे सिर्फ भोजन वितरण का पुरे एक वर्ष का १२ से १५ करोड़ का बजट है। इसमें भोजन वितरण से लेकर उसे बनाने वाले ४५ लोगों की तनख्वाह भी शामिल है। अनाज हमे अलग से मिल जाता है।  हमे सिर्फ सस्ब्जियां खरीदनी पड़ती है।  नहीं तो ज्यादातर चीजे हमे कोई न कोई दे जाता है।  जिसकी वजह से अन्य वस्तुओं को हमे कम खरीदना पड़ता है।



महंगाई :

           प्रभु ने आगे बतलाया की महंगाई का असर तो हम पर भी पड़ता है। फिर भी हम क़्वालिटी से किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करते हैं। हमारे एक प्लेट भोजन का कुल खर्चा ६० रुपये तक पड़ता है।  जो हम पूर्ण रूप से मुफ्त में जरूरतमंदों तक पहुँचाने का कार्य साल के ३६५ दिन करते रहते हैं। हाँ कोई चीज महंगी होने पर जो चीज उस समय सस्ती रहती है हम उसका उपयोग ज्यादा करने की कोशिश करते हैं। लेकिन क़्वालिटी से कभी समझौता नहीं करते हैं।  ये भी नहीं करते हैं की महंगाई बढ़ने पड़ कम लोगों को भोजन वितरित किया जाए।  कोशिश रहती है कि हम हर जितने लोगों को भोजन वितरित कर पा रहे हैं उसके अगले दिन उससे ज्यादा लोगों तक पहुंचे। ताकि कोई भूखा न सोये। 

प्रभु जी एक बात और बतलाया। दूर दराज का एक गरीब व्यक्ति जो भोजन ग्रहण करता है वही भोजन हम और इस्कॉन मंदिर में रहने वाला हर व्यक्ति भोजन ग्रहण करता है। हमारे यहां सभी के लिए एक ही किचेन में एक जगह खाना बनता है।  इसका असर यह होता है कि बजट कितना भी ज्यादा क्यों न हो हम क़्वालिटी से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो पाता है। जो हम खाते हैं वही भोजन आदिवासी क्षेत्र का व्यक्ति या किसी झोपड़े में रहने वाला व्यक्ति भी खाता है। 





समस्याएं और प्रशासन से आशा : 

             समस्यांए तो बहुत सी आती हैं। बहुत से जगह अलग अलग सम्प्रदाय धर्म के लोग बिच में आ जाते हैं और हमे भोजन वितरण करने से मना करने लगते हैं। हमारे लोगों को परेशान करने लगते हैं। तब हमे वहां से जाना पड़ता है। हम चाह कर भी भोजन वितरित नहीं कर पाते हैं। कुछ जगह बहुत से लोग हमारे कार्य में मदत करने के लिए अपना सहयोग देते हैं। विवाद होने पर वे हमारी मदत के लिए आगे आ जाते हैं। चूँकि हम कहीं पर भी किसी भी प्रकार का एक अच्छा कार्य करने के एवज में कोई विवाद नहीं चाहते हैं। इसलिए खिन पर विवाद होने पर वहां से हट जाते हैं। कभी कभी सरकारी तंत्र के लोग बहुत से पर्मिशनो या बहुत से बातों को लेकर को लेकर परेशान करते रहते हैं। फिर भी हमे उनसे किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं है।  वे हमारी किसी भी रूप में मदत न करें।  हम उस व्यक्ति तक दो वक्त का भोजन पहुँचाने का कार्य करते हैं जिसे ठीक से दो वक्त का क्या एक वक्त का पौष्टिक संतुलित और अच्छा भोजन नहीं मिल पाता है। बस प्रशासन इसमें किसी प्रकार का कोई अवरोध न प्रकट करें।  यही उनकी ओर से हमारे लिए सबसे बड़ी मदत होगी।  

ब्लॉगर अजय नायक 
www.nayaksblog.com 



















 

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