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Monday 29 November 2021

हम वह खेल, खेले आज

हम वह खेल, खेले आज









हमने मिलकर खेला तीन मैच आज 
वो मैच ऐसा, वैसा, कैसा भी हुआ आज,
 उसके लिए सबसे पहले हम लड़े, 
फिर हारे, और अंत में जीते,
लेकिन उससे ज्यादा हम सब 
बहुत दिन बाद, एक होकर खेले आज।
हम वह खेल, खेले आज
जो छोड़ आये थे, पहले कई साल।
हहहहह........... याद आ गए वो दिन 
वो बच्चोँ की तरह फुदकना
वो पहले खेलने के लिए झगड़ना 
वो खेलने से पहले बेमानियों के बारे में सोचना
उसे धरातल पर लाने के लिए
खेलने से ज्यादा तरह तरह के तरकीबे लगाना 
वो विरोधी को बच्चा समझना
वो खुद को बड़ा खिलाड़ी गिनना
हारने पर खुद से ज्यादा
सबकी कमियाँ ढूढ़ना
और उन्ही कमियों के बीच
विरोधी को धूल चटाने के लिए
मैदान पर कदम से कदम मिलाते उतर जाना।
हमने फिर से वही जीवन जिया आज
जो छोड़ आये थे, पहले कई साल।  
हारने पर विरोधी को धीरे से गले लगाना
या पतली गली से धीरे से सटक लेना
अरे रुको रुको वही ही नही......
जितने पर जोर से गले लगा कर
उन्हें यह एहसास दिलाना कि 
पट्ठे तुम हमसे अभी भी बहुत पीछे हो,
जाओ जाओ गधे का दूध पीओ आज
फिर आना लड़ने अपने बाप से
और वो बाप हम hi हैं आज।


हमने भी मिले इस मौके को,
भुनाने मे कोई कसर न छोडी आज
पहुँच गए उस पुराने दिन मे,
जहाँ लड़ाईया तो थी हम मे
बस मैदान की दहलीज तक
जहाँ हम समय समय पर,
बाप बेटे बनते थे एकदूसरे के।
बस मैदान की हद तक,
थी हमारी तगड़ी मीठी लड़ाईयां 
खेल खत्म होते ही हम
कर देते थे उस कहावत को सत्य,
खेल खत्म तो पैसा भी हजम।
फिर मिलेंगे एक नए मैदान मे
जो होगा तो वही मैदान,
लेकिन दिन नया होने की वजह से
हो गए नए हम भी।
वह खेल, खेले आज
जो छोड़ आये थे, पहले कई साल।
-ब्लॉगर अजय नायक 


 


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