महिला विशेष : उतनी ही मुश्किलों के बिच खुद के लिए रास्ता बनाती आज की कुछ जिद्दी महिलाएं
आज 8 मार्च को विश्व महिला दिवस है। जो अपनी उम्र के 113 वर्ष तक जा पहुंचा है। जब से आजतक के सफर में बहुत सी महिलाएं मजबूत बनकर ही नहीं उभरी उन्होंने अपने अपने क्षेत्र में एक छत्र राज भी किया और आज कर भी रही हैं। और यही घमंडी रूढ़िवादी पुरुष समाज जो उन्हें आज भी अपने पैरों की धूल समझता है वे सब उनके सामने घुटने टेक कर नतमस्तक हैं । लेकिन ये कुछ ही जगह और कुछ ही काल तक के लिए ही संभव हो पाया। निरंतरता की आज भी कमी है। धीरे धीर आगे बढ़ रही हैं लेकिन वो रफ्तार उन्हें आज भी नहीं मिल पाया है जो उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। फिर भी हम इतना जरूर कह सकते हैं की पुरे विश्व में वे एक साथ ढाक तो नहीं बनी लेकिन अलग अलग देशों में कोई न कोई महिला जरूर मजबूत और दृढ़ संकल्पी बनकर उभरती रही है। जिससे वे उनके आगे वाली सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बनती चली गयी हैं। और समय के साथ महिला समाज धीरे ही सही कुछेक क्षेत्रों में ही सही लेकिन जहाँ भी मौका उन्हें मिला अपनी धाक जमाने में पीछे नहीं रह रही हैं। धाक जमाने की बात तो छोड़िये पुरुषों के बराबर भी छोड़िये जब भी निकलती हैं पुरुषों से आगे ही निकलती रही हैं। और पुरुषों को अपने से उन्नीस साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हैं। फिर भी पुरुष समाज आज भी उन्हें वह मुकाम देने में उतना उत्सुक नहीं हुआ है जितने के प्राप्त करने के वे उत्तराधिकारी हैं। फिर भी वो मौके भुनाते हुए आगे बढ़ती चली जा रही हैं।
एक तरफ हम ये देखते हैं तो दूसरी तरफ जब हम देखते हैं तो फिर से वही काली स्याह से भरी वह कोरा पन्ना नजर आता है जिसपर काली स्याह पड़ने की वजह से कुछ नहीं लिखा जा सकता है। उसपर कुछ लिखना समझो सूर्य को टोर्च की रौशनी दिखाना। यही सबसे बड़ी हकीकत है। जिससे हम आज भी मुंह फेरते नजर आ जाते हैं। क्योंकि हम खुद तक जो सिमित रह गए हैं। हर वर्ष हम सावित्री बायीं से लेकर झाँसी की रानी तक की जयंतियाँ मनाते हैं। सूर्य की पहली किरण से ही महिलाओं के उत्थान के लिए बड़े ही गर्व से शपथ लेते रहते हैं, अच्छी अच्छी बाते करते रहते हैं । फिर जैसे उस रात की पहली बीज पड़ती चली जाती है वह वचन, शपथ सब रात की निद्रा की तरह अगली जयंती तक कुम्भकर्णी नीद में सो जाते हैं। फिर भी कुछ हैं जो इतने परेशानियों के बाद भी अपने को इस दलदल से भरे समाज से बाहर निकाल ही नहीं लाती हैं। खुद को उन सबसे आगे भी रखने में कामयाब होती हैं जो उनके लिए दलदल तैयार किये हुए हैं। आइए आज हम उन्ही में से कुछ महिला विभूतियों के बारे में जाने जो कहने को तो २१वी सदी की कहलाती हैं लेकिन उनके सामने की परेशानियां आज भी वही है जब वे होकर भी कुछ नहीं थी। और चार दीवारी के अंदर की शोभा थी। उन्ही में से निकलकर आज खुद का ही नहीं पुरे देश का नाम पुरे विश्व में रौशन कर रही हैं।
निर्मला सीतारमण :
आज ये महिला किसी पहचान की बिलकुल ही मोहताज नहीं है। क्योंकि भारत सरकार के पिछले कार्यकाल में दो वर्ष रक्षा मंत्रालय का दायित्व सम्हाला ही नहीं उसे उंचाईयों तक ले जाने का कार्य भी किया। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि वह आज़ाद भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्तमंत्री हैं। और वो पिछले ३ साल से भारत की एक मजबूत वित्तमंत्री के रूप में सामने आयी हैं। निर्मला सीतारमण जी वैसे तो एक शांत स्वभाव की महिला हैं लेकिन संसद के अंदर किसी भी सवालों के उत्तर को देने में किसी पुरुष मंत्री से बिलकुल ही पीछे नहीं रहती हैं। वे संसद के अंदर और संसद के बाहर अपने मंत्रालय और खुद के विचारों को लोगों के बीच में मजबूती से रखती हैं। आज वे अपने प्रधानमंत्री के सबसे भरोसे मंद मंत्रियों में से एक हैं। तभी तो इतना बड़ा मंत्रालय जिसके ऊपर ही पुरे देश का अर्थ टिका है वह मंत्रालय एक महिला के पास दिया हुआ है।
नीता अम्बानी :
यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। यह एक ऐसा नाम है जो अगर सारी उम्र कुछ न करे तो भी इनके रोज मर्रा के ऐशो आराम में किसी भी प्रकार का कोई विघ्न नहीं पड़ने वाला है। ये हैं भारत के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अम्बानी की पत्नी। फिर भी ये उन ऐसो आराम के साथ साथ इंडियन प्रीमियर लीग की अपनी टीम मुम्बई इंडियंस को सिर्फ 5 बार ताज ही नहीं दिलवाया उसे टॉप पर भी बनाये रखा। इसके साथ ही वो रिलायंस फाउंडेशन का काम देखती हैं। इस फाउंडेशन की स्थापना उन्होंने सन 2010 किया था। आज यह संस्था भारत की सबसे बड़ी चैरिटेबल संस्था है। जो महिलाओं के साथ साथ दूर दराज के क्षेत्रों के बच्चों के कौशल विकास, गर्मीं भागो के उत्थान, शिक्षा खेल और स्वास्थ्य और कला संस्कृति के विकास के लिए काम करता है। नीता अम्बानी इन कामो के साथ साथ एक इंटरनेशनल स्कूल भी चलाती हैं। जिसकी वो चेयरपर्सन हैं। इनकी रिलायंस फाउंडेशन ने देश में शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए " शिक्षा सभी के लिए " एक कार्यक्रम चलाया हुआ है। जिसके अंतर्गत अबतक कुल 7000 बच्चों को शिक्षा मुहैया इनके संस्था के द्वारा करवाया गया है। जो अपने आप में एक सहराहनीय कार्य है। आज वह भारत की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं।
सौम्या स्वामीनाथन :
पुरुषों के एकाधिकार क्षेत्र के बीच से निकलकर पूरी दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाली एक भारतीय महिला हैं। आज यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक हैं। उन्होंने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई सशत्र बल मेडिकल कॉलेज, भारत से की। एमडी की पढ़ाई एम्स से की। इसके साथ ही राष्ट्रिय परीक्षा बोर्ड से राष्ट्रिय बोर्ड डिपलोमेट किया। बाद में उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया के केस्क स्कूल से बाल चिकित्सा पल्मोनोलॉजी में पोस्ट डॉक्टरेट किया।
सौम्या स्वामीनाथन ने तपेदिक अनुसन्धान के लिए तमिलनाडु में स्थित राष्ट्रिय संसथान में 1992 शामिल हुयी। टीबी/एचआइवी के विभिन्न पहलुओं का अध्यन करते हुए नैदानिक प्रयोगशाला और व्यवाहर वैज्ञानिकों का एक बहु विषयक समूह शुरू किया। सौम्या स्वामीनाथन ने आणविक निदान के जरिये टीबी के उपचार और उसके निगरानी में बड़े पैमाने पर उपयोग किया। जिसमे उन्हें और उनके सभी साथियों को अपर सफलता मिली। बाद में वह इसकी निदेशक भी बनी। अभी कुछ साल पहले ही वह टीबी शून्य शहर परियोजना की हिस्सा बनी। जिसमे वह सभी सरकारों के साथ मिलकर जमीनी स्तर पर टीबी उन्मूलन द्वीप बनाना है। सौम्या स्वामीनाथन देश विदेश से कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं।
किरण मजूमदार शॉ :
68 वर्षीय किरण मजूमदार शॉ एक सफल भारतीय महिला उद्यमी हैं। वर्तमान समय में यह बायोकॉन की अध्यक्ष हैं। इन्होने सं 1978 में बायोकॉन की स्थापना बैंगलोर की थी। आज यह कम्पनी जैव क्षेत्र की सबसे बड़ी कम्पनी है। किरण जी ने बायोकॉन के साथ साथ दो सहायक कंपनियों का भी निर्माण किया। खोज अनुसन्धान विकास हेतु सं 1994 में सिनजीन और नैदानिक विकास सेवाओं को पूरा करने के लिए संन 2000 में क्लिनिजिन का निर्माण किया। मधुमेह, कैंसर-विज्ञान और आत्म-प्रतिरोध बिमारियों पर केंद्रित शोध के साथ साथ बायोकॉन को एक एंजाइमों की निर्माण कम्पनी से विकसित करके जैविक दवा कम्पनी बनाया। उनकी सभी कम्पनिया भारत के बैंगलोर में एक अग्रणी जेब प्रद्योगिकी संसथान है। किरण मजूमदार को उनके कार्यों को देखकर 1989 में भारत सरकार की प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री और 2005 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों के साथ साथ वो देश विदेश से कई पुरस्कारों से सम्मानित हुयी। वे दुनिया की 100 सबसे मजबूत महिला के रूप में टाइम मैगजीन के शीर्ष 50 सूचि के स्थान में शामिल हुयी हैं। जैव प्रद्योगिकी में काम करने की वजह से उनका बहुत ही सम्मान दिया गया है।
सुचिता एल्ला :
सुचिता एल्ला आज के इस करोना के समय में कोवैक्सीन डोज बनाने वाली जैव कम्पनी भारत बायोटेक की सह संस्थापक और निदेशक हैं। इस कम्पनी का निर्माण सुचिता ने अपने पति वैज्ञानिक डॉ कृष्णा एल्ला के सहयोग से किया था। इस कम्पनी के शुरू करने में लगने वाले पैसे से लेकर जमीन और सरकारी परमिशन मिलने के लिए सुचिता ने बहुत ही मेहनत की। इस संस्थान के निर्माण में उन्हें बहुत ही वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा। यहां तक उन्हें अपना पहला उत्पाद बाजार में उतारने में कुल 3 साल लग गए। लेकिन उसी मेहनत के बाल पर एक जैव प्रद्योगिकी बायोटेक संस्थान ही नहीं खड़ा किया। इस करोना महामारी से लड़ने के लिए पूर्ण रूप से एक स्वदेशी टिका का निर्माण भी भारत के लोगों के लिए किया। आज इस संस्थान में कुल 700 के लगभग काम करते हैं। उनके इस संस्थान ने हेपेटाइटिस बी, स्वाइन फ्लू, जीका वायरस के खिलाफ उल्लेखनीय टीकों का निर्माण किया। आज उनका संस्थान देश के अग्रीण जैव संस्थानों में से एक है। अपने उल्लेखनीय कार्यों के लिए सुचित्रा जी देश विदेश से कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं।
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सुंदर पोस्ट
ReplyDeletethanks
Deleteबहुत ही सुन्दर विचार है
ReplyDeletethanks
DeleteVery Nice Guru
ReplyDeletethanks
DeleteAbsolutely correct bhaiya
ReplyDeletethanks
Deletevry nice ajay
ReplyDeleteVery strong message in simple and excellent way you have presented 👍👍👍👍👏👏👏👏
ReplyDeleteVery Nice Post 👌👌👍
ReplyDeletethanks
DeleteVery nice 👌👌👌
ReplyDeletethanks
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