तू उठ, तेरा रस्ता तू खुद बना
तू उठ, तेरा रस्ता तू खुद बना
इनके फेर मे तू बिल्कुल मत पड़
अरे! ये वो वही ज़ालिम जमाना है
जहाँ मिली इसे दो वक़्त की रोटी
उन्ही के दर पर टीका दिया है अपना माथा।
ये वैसे तो किसी के भी नही है,
ना तेरे, ना मेरे, यहाँ तक कि
ये खुद के भी नही है
फिर बता, कैसे अपने बनेंगे?
और तू इनसे भयभीत हो रही है
अरे! ये खुद तुझसे भयभीत हैं!
तू जा मेहनत करके अपनी तकदीर लिख
और बस एक बार, आगे बढ़ तो जा इनसे
देखना फिर, इनके अंदर का वो डर!
बस इनकी यही डर वाली तकलीफ
खीज बनकर तुझपर निकलती है
खुद कुछ कर सकते तो नहीं हैं,
आसान समझकर, तेरा रस्ता रोकते हैं!
तू मत देख इनकी तरफ
ये ऐसे ही थे, और ऐसे ही रहेंगे
नज़र बनाये रख, मछली की अँख पर
भेद दे अपने नुकीले तीर से उसकी अँख को
देखना एक दिन,
यही दुनिया देखेगी तेरी तिरंदाजी को
वाह! वाह! वाह! वाह! शब्द से
तेरी स्तुति करते करते नही थकेगी।
-BLOGGER अjay नायक
Nice👌👌👌
ReplyDeletethanks
Delete👍👍
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