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Friday 11 March 2022

पांच राज्यों में हुए चुनावों का विश्लेषण

      

 पांच राज्यों में हुए चुनावों का विश्लेषण 

pic by canva 



           पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे आ गये हैं। जिसमे से चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीता है।  वहीँ पंजाब में आम आदमी पार्टी ने धमाकेदार जीत दर्ज की है। वैसे इस बार यह कयास लगाए जा रहे थे की बीजेपी उत्तरप्रदेश को छोड़कर और कहीं भी नहीं आने वाली है लेकिन हुआ इसके उलट बीजेपी ने बम्पर सीटों के साथ सिर्फ उत्तरप्रदेश ही नहीं अन्य तीन राज्यों को भी जीता। पंजाब में तो पहले से ही औसत थी। कुछ सीटे जो उसकी निकलती थी वह भी उसके सहयोगी दलों की वजह से। लेकिन जिस प्रकार से वह एक राष्ट्रिय पार्टी है फिर भी पंजाब में पैठ नहीं जमा पायी और वहीं आप अभी आठ से नौ साल पुरानी पार्टी होने के बाद दिल्ली के बाद पंजाब में जिस तरह से बम्प्पर जीत दर्ज की है उसके बाद बीजेपी और मोदी सरकार को नए सिरे से इसपर प्रकाश डालने की जरूरत हैं। क्योंकि बीजेपी के पास मोदी लहर के साथ सबकुछ होने के बाद अगर किसी राज्य में उसकी स्थिति २ के आकड़े से अगर आगे नहीं बढ़ रही है तो उनके केंद्र में रहने और अन्य चार राज्यों में जीतने के बावजूद अलग तरह से इस बात पर घोर मंथन करने की जरुरत है। कि एक कल की आयी पार्टी बहुमत प्राप्त ही नहीं करती है सभी पार्टियों का सुपड़ा साफ़ कर जाती है और पुरानी पार्टियां २ के आकड़े से भी बाहर नहीं निकल पा रही है।
      एक बात पर गौर करने पर यह साफ नजर आ रहा है कि विपक्ष CAA आंदोलन, कृषि आंदोलन, हाथरस की घटना, बढ़ते पेट्रोल, डीजल के दाम महँगाई, नौकरियां जैसे बहुत से मुद्दों को लेकर इस कयास और भ्रम में था कि इस बार बीजेपी कहीं नहीं जीतेगी। उत्तरप्रदेश में भी बहुत ही बड़ा फेरबदल हो सकता है! लेकिन पुरे चुनावी नतीजे को देखने के बाद यह फर्क साफ़ दिखता  है कि  चुनाव में इन् मुद्दों का असर था लेकिन जितना चाहिए था उतने से बहुत ही कम था। जिस तरह से बीजेपी फिर से सत्ता में वापसी की है उससे देखकर तो यही लगता है कि ये मुद्दे पुरे चुनाव में कहीं थे ही नही। अगर होते तो विपक्ष के अनुसार सच में बीजेपी पंजाब के साथ साथ उन सभी चार राज्यों से भी बे दखल नजर आती जहां बम्पर सीटों से जीतकर सत्ता में वापसी की है। और वहीँ दूसरीं पार्टियां उससे कोशों दूर है। 
        नतीजे आने के बाद सभी पार्टियो ने कोई न कोई बहाना बनाकर अपनी हार को झुठलाने का प्रयास किया जबकि किसी ने यह नहीं देखा कि जीती हुयी दोनों पार्टियों ने सिर्फ एक दिन के ही प्रचार-प्रसार से नहीं जीती हुयी हैं। उन्होंने अपने शुरुआत से लेकर चुनाव के घोषणा होने तक चुनाव जितने के लिए प्रसार - प्रचार करती रही। आम आदमी पार्टी को ही ले लीजिये। पिछले विधान सभा में उसे पंजाब में उतनी सीटे नहीं मिलने के बावजूद भी वह हर रोज आगे बढ़ने के प्रयास में पुरे पंजाब में पांच साल लगी रही। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह 117 में 92  सीटों पर कब्ज़ा करके बम्पर जीत दर्ज की है। यह सिर्फ चुनावी आचारसंहिता लगने के बाद से नहीं हुआ। यह हुआ पुरे पांच साल उस जनता के करीब पहुँचने से हुआ जो सही मामलों में आपका मालिक है।  उसका एक मत आपकी जीत को तय करता है। तब जाकर उन्हें यह जीत मिली है। बीजेपी भी यह करिश्मा पंजाब में नहीं कर पायी। इसलिए वह आज भी वही हैं जहाँ से उसने शुरुआत किया था। जहां जहां वह आप की तरह अलख जनता के बीच जलाई है वहां वहां उसकी जीत हुयी है।  


      हार के बाद सभी ने एक ही सुर में एक ही बात कही कि बीजेपी की यह जीत धुर्वीकरण की वजह से हुआ। उसने समाज को तोड़ने का काम किया। दो धर्मों में आग लगा कर जीत प्राप्त की है। बहुत जल्दी ही जनता को यह पता चला जाएगा और उनका बीजेपी के प्रति जो भ्रम है वो टूट जाएगा। ऐसी बाते करके उन्होंने बीजेपी की जगह जनता को ही कठघरे में खड़ा करने की एक कोशिश की। और अब तो एक नया फार्मूला आ गया है ईवीएम मशीन का। जिसमे आप आसानी से हारने पर यह कह देना कि यह जीत ईवीएम से छेड़छाड़ की वजह से हुयी है। हाँ लेकिन ये भूल जाते हैं उस समय कि और राज्यों में जो विपक्ष जीता है वह क्यों नहीं ईवीएम की छेड़खानी की वजह से हार गया ? खैर इस पर बात करना माननीय सर्वोच्च न्ययालय की तौहीन होगी क्योंकि कुछ साल पहले ये मामला उनके यहां गया था जिसे ले जाने वाले सिद्ध नहीं कर पाए थे कि ईवीएम मशीन हैक होता है या नहीं। और उन्हें वहा मुंह से खानी पड़ी थी।  उनकी याचिका भी सरे सिरे से ख़ारिज हो गयी थी।  फिर वही ईवीएम मशीन बंगाल गयी जो हैक होने से बच गयी थी। और वहाँ विपक्ष की यानि बीजेपी की घोर विरोधी ममता की बम्पर जीत हुयी थी। 
        यहां हर एक चीज पर बात हो रही है लेकिन इस चीज पर बात नहीं हो रही है कि आप भी उसी मैदान में थे। आपके पास भी मौके ही मौके थे। फिर आपने यह काम क्यों नहीं कर पाए? आपसे कहाँ चूक हो गयी ? आप कहाँ जीतने वालों से पिछड़ गए ? अगर इस पर बात हो तो कुछ हल निकले लेकिन बहुत ही कम पार्टियां हैं जो असली तह में जाकर उसपर चर्चा करके हल निकालने का प्रयास कर रही हों। सभी बस वही पुराने रटे रटाये बातें हारने पर आकर बोलकर चले जा रहे हैं। कोई भी यह जानने में बिल्कुल ही दिलचस्पी नहीं ले रहा है कि उनके प्रति  जनता के बीच क्या चल रहा है? जनता में क्या बातें हो रही है ?  जनता उनसे क्या चाहती हैं ? क्या है जो हम जनता को देकर उसे बतला नहीं पा रहे हैं कि ये हमने दिया है ? इसपर कोई ध्यान नहीं देना चाह रहा है। बस इसी बात पर लगे हुए हैं कि जीतने वाली पार्टी सम्प्रदायीक है, क्रूर है, वो लोगों के बीच फूट डालने वाली है, गरीबी को बढ़ाने वाली है, धर्म धर्म के नाम पर लड़ाने वाली है। बस इसी बात को सिद्ध करने में लगे हैं कि हम ही सही है अगर कोई हमसे सहमत नहीं है तो कैसे हम उसकी बात पर सहमत हुए बिना खुद की बात उससे सहमत करवाएं। क्योंकि हम जो बोल रहे हैं वही यथार्थ सत्य है। और वही आपको मोक्ष तक ले जाएगा। ये भूल जाते हैं कि आज के भारत की जनता लगभग ७०% तक साक्षर हो चुकि है। वह अब तमाम प्रकार के गजेट ही नहीं चलाती है उसका कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए उपयोग भी करती है। उसे अब यह समझने लगा है कि क्या सही है और क्या गलत है !  तभी तो पंजाब के मुख्यमंत्री दलित वर्ग के होने बावजूद चुनाव हार जाते हैं। वो भी एक जगह से नहीं दो - दो जगह से वो भी तब जब पहली बार पंजाब में 32% दलित आबादी में से कोई एक दलित मुख्यमंत्री बना हो। इसका यही परिणाम निकलता है कि उन्हें अपना कोई चाहिए लेकिन वो भी उनके लिए कुछ करता हो। अगर वो कुछ नहीं करता है तो पास रखकर क्या फायदा। इसलिए अब जनता को मुर्ख सझकर उसके द्वारा लिए गए फैसलों को गलत साबित करने का खामियाजा भुगतना ही पडेगा। 


          उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिये।  पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 300 सीटों के साथ एक बहुत ही बड़ी जीत दर्ज करती है लेकिन उसकी जीत को उसकी जीत न बताकर बड़े ही आसानी से ईवीएम की जीत बता दिया गया। फिर बताईये जिन लोगों ने उन्हें वोट दिया उनका वोट कहाँ गया। आपने यहां बीजेपी को कुछ नहीं बोला असल में उसे वोट देने वालों को एक तरह से गाली दिया। जिसका खामियाजा आपको पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर पंचायत चुनावों में और अभी कल २०२२ के आये विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। और यहीं नहीं उत्तरप्रदेश के साथ साथ गोवा, उत्तराखंड, और मिजोरम में वहाँ की जनता ने वोट देकर अपना काम किया। वहीं बीजेपी जनता को ये बताने में जरूर सफल रहां कि वे ईवीएम के बहाने आपके दिए गए वोट पर शंका जाहिर करके  एक तरह से आपको गाली दे रहे हैं। बस फिर क्या था जो साथ थे वे फिर से साथ बने रहे। जिसका नतीजा सभी लोगों ने 10 को मार्च को एक बार फिर से देखा ही है। 
           अगर फिर से विपक्ष को आगे आना है तो उन्हें अपने कार्यशैली में बदलाव लाना होगा।  अगर ऐसा करने में वे असफल रहते हैं तो वे चुनाव किसी भी तरह से जीत लेंगे लेकिन उसके अंदर निरंतरता नहीं रहेगी। और जबतक आपके अंदर निरंतरता नहीं रहेगी तबतक आप अपने कामों को जनता के बीच नहीं ला सकते हो। ये वैसे ही होगा पेड़ कोई और लगाएगा और फल कोई और खायेगा। इस प्रकार से किसी भी देश का या देश के राज्यों का विकास उतनी तेजी से नहीं होता है जितनी तेजी से होना चाहिए। क्योंकि निरंतरता न होने की वजह उसके विकास में ये बाधा बनकर खड़ी रहती है। आशा है कि हमारे देश के सभी विपक्ष जनता के असल मर्ज को समझेंगे ही नहीं उसकी दवा खोजकर ईमानदारी पूर्वक उसका इलाज भी करेंगे। अगर ऐसा हुआ तो जनता उसे जरूर चुनेगी इसमें कहिं भी दो राय नहीं होगा।  फिर वो चाहे उनके धर्म का हो या किसी और धर्म का।  वो उनके आसपास या उनके समाज का हो या किसी और समाज का। वो जो भी होगा उनके आँखों का तारा होगा। फ़िलहाल बीजेपी और आप, वहीँ उत्तरप्रदेश में योगी जी अपने कार्य से जनता की आँखों का तारा बने हुए हैं। फ़िलहाल में वे ही देश के सबसे करिश्माई नेताओं में से एक हैं। जिन्हे जनता अपने माथे पर बिठाई हुयी है। 
-ब्लॉग़र अजय नायक       
www.nayaksblog.com 

















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