धर्म इतना कमजोर हो गया कि उसे बचाने के लिए किसी को जूता मारना पड़े
अगर आप सचमुच में अपने धर्म के हितैषी हैं तो आप किसी का सर कलम करना या किसी को जूता मारना तो छोड़िए, आप कभी भी आपके धर्म का अहित करने वाले व्यक्ति को अपशब्द या पलट कर किसी भी प्रकार का जवाब भी नहीं देंगे। क्योंकि धर्म की स्थापना या उसकी बढ़ोत्तरी किसी के सर कलम करने से या अपशब्द बोल देने से नहीं होती है। धर्म की स्थापना या बढ़ोत्तरी समय के अनुसार खुद को वैसा ढालकर, नए विचारों को अपनाकर स्थापित करने से होती है। जैसे सांप समयानुसार खुद की केंचुली निकालकर नया हो जाता है।
तो अगर आप सचमुच में अपने धर्म के हितैषी हैं तो सिर कलम करने या जूता मारने की जगह ऐसे तरीके से जवाब दीजिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न चलानी पड़े। ऐसी चीजें लंबे समय तक टिकती भी हैं और लोगों को खुद से लंबे समय तक जोड़े भी रहती हैं।
धर्म का विरोध करने वालों को मारने लगेगे तो आपको यह कार्य हमेशा करते रहना पड़ेगा। और जिस दिन आप ने मारने का कार्य छोड़ दिया, देखेंगे कि उसके अगले दिन ही से लोग धीरे धीरे ऐसे धर्म से विमुख होते जाएंगे और फिर यही समझ आएगा लोग भले शुरुआत में किसी भी प्रकार से धर्म से जुड़े हुए होंगे लेकिन धर्म में टीके थे सिर्फ और सिर्फ इस वजह से सिर कलम कर देने की वजह से या किसी तरह की सख्ती की वजह से। जहां धर्म नहीं एक डर था कि थोड़ा भी इधर उधर हुए कि लोगों द्वारा हमारा रफा दफा कर दिया जाएगा या करवा दिया जाएगा।
तो अगर आप सचमुच में खुद को धर्म का हितैषी समझते हैं तो आगे से धर्म के विरोधियों को उत्तर, कभी भी तलवार या जूता से नहीं, अपनी वाणी से और अगर समय अनुकूल नहीं है या व्यक्ति अनुकूल नहीं है तो तुरंत मौन होकर फिर धीरे धीरे पूरी तैयारी के साथ उसी धर्म के माध्यम से उत्तर दीजिए। वह उत्तर इतना विस्तारित और मजबूत होगा कि धर्म विरोधियों के दिमाग में वह बात बैठेगी भी और लंबे समय तक के लिए उनके दिमाग में फिट भी हो जाएगी।
भगवान श्री कृष्ण ने भी तो कालनेमी को मारने के लिए भी तो पहले पीछे हटना स्वीकार किया था। फिर उसे जब समय आया तब मारा था। अगली बार किसी को जूता या सिर कलम करने से पहले जरूर इसपर विचार करना कि क्या आपका धर्म इतना कमजोर है कि उसे बचाए रखने के लिए किसी को जूता मारना या किसी का सर कलम करना पड़ेगा ?
–अjay नायक ‘वशिष्ठ’www.nayaksblog.com
No comments:
Post a Comment