खुद को ही कुछ करना होगा
Image By Facebook AI
कितने कमजोर लोग है, किसी के निंदा भर से आहत हो जाते है!
कभी किसी को जला देते हैं, तो कभी किसी का गला काट देते हैं!
एक इजरायल है, गाजर मूली की तरह लाखों को मार देता है, अमेरिका है, घुसकर उनके लोगों से उनको ही मरवाता भी है और उनपर परोक्ष अपरोक्ष रूप से राज भी करता है। चीन है जो कि पूरे धर्म को प्रतिबंधित ही नहीं पूरे धर्म को शर्मसार भी कर रहा है और उनके लोगों के साथ व्यापार के साथ शुभचिंतक बना भी फिर रहा है। सबसे बड़ी विडंबना तो देखिए अगर कोई थोड़ा भी आहं करता है तो उन्हें भी ये लोग आंख दिखाने से गुरेज नहीं करते है। वहां कोई न तो कुछ बोलता है, न कुछ करता है और न ही कुछ कर पाता भी है। उनके सामने किसी की भी दाल नहीं गलती है! इजराइल से लड़ाई ही पूरी की पूरी धर्म पर आधारित है। उनके बीच में सान से रहता भी है और थोड़ा भी उसके प्रति या उसके लोगों के प्रति कोई गलत कदम उठाता है वह उठाने वाला जहां भी हो उन्हें ढूंढकर पीठ पीछे गला काटकर या आग लगा कर नहीं एक सच्चे अपराधी की तरह मारता है भी है और लोगों से स्वीकार भी करवा लेता है कि इन्होंने गलत किया था इसलिए उन्हें सजा दी गई।
यहां सबसे बड़ी बात यह है कि जलाने वाले वे लोग है जो कभी उसी धर्म से थे जिस धर्म के व्यक्ति को बस शंका भर के आधार पर जला दिया गया है। आज वे दूसरी तरफ है तो एक गलत हो गया और एक सही हो गया है। लेकिन हर किसी को एक बात अपने दिमाग में जमा लेनी चाहिए कि जो दूसरों का घर उजाड़ते हैं कभी उनका भी घर ऐसे ही उजड़ता है। और जब उजड़ता है तो कोई रोक नहीं पाता है क्योंकि तब उजड़ने वाले भी अपने होते हैं और उजाड़ने वाले भी अपने होते हैं। अगर विश्वास न हो तो आज भी अपने चारों तरफ नजर उठा कर देख सकते हैं। थोड़ा सा पीछे जाकर इतिहास में भी झांककर देख सकते हैं।
कभी कभी लगता था कि इनके साथ बहुत से देश जो अन्याय करते हैं वो बहुत ही गलत करते हैं लेकिन अब जला देने वाली घटना हो या उसके पहले किसी का सिर कलम कर देने वाली घटना हो, या घरों को आग लगा देने वाली घटना हो, इन सब घटनाओं को देखने के बाद यही लगता है इनके साथ जो देश या लोग बुरा करते हैं तभी वे सुरक्षित रहते हैं नहीं तो आप आग वाली घटना से अंदाजा लगा सकते हैं कि ये लोग कितनी बर्बरता के साथ आपके साथ पेश आ सकते हैं। और कोई आहं भी नहीं करेगा।
सही मायनों में देखा जाए तो कोई भी धर्म कमजोर नहीं होता है। असल में कमजोर होते हैं उस धर्म को मानने वाले लोग और उनका ईमान। क्योंकि वे सदियों से उससे जुड़े नहीं होते हैं। और अगर जुड़े भी होते हैं तो उन्हें पता होता है कि यह कितना मजबूत है या वे उसके प्रति कितना मजबूत हैं तो इस आधार पर इसे लंबे समय तक कैसे टिकाया जा सकता है? और तब उन्हें बार बार इस तरह की घटनाओं को सुनियोजित तरीके से अंजाम देकर खुद को सिद्ध करके साबित करना पड़ता है कि वे उसके प्रति सबसे बड़े और सबसे ज्यादा वफादार लोग हैं। और ऐसे लोग यहीं नहीं रुकते हैं अलग अलग स्थान पर अलग अलग समय पर खुद को इस तरह के एक परीक्षा में शामिल कराके साबित करना पड़ते रहना पड़ता है कि वे आज भी उसके प्रति सौ प्रतिशत वफादार है!
अच्छा उधर परीक्षा ये देते हैं और धर्म की कसौटी पर खड़ा उतरने के लिए धर्म को खुद ही बार बार आग के हवाले करके अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है कि वे सही है। यानि गलती करे कोई और, और भुगतना किसी और को पड़े।
इसका एक सबसे बड़ा कारण है धर्म के प्रति अज्ञानता। धर्म के मर्म के साथ साथ उसके दर्शन को न समझना। बस किसी ने तोते की तरह रटाया और लोग तोते की तरह एक ही सुर में बात को रटना शुरू कर देना। क्या फ़िलास्पी है, क्या गूढ़ है कुछ नहीं पता। बस पता है एक आदेश उसी के लिए कट मर जाना। ये भूलकर की धर्म जीने का तरीका बताता है और जीते हुए खुद के साथ साथ धर्म को आगे बढ़ाने के लिए कहता है । न कि मरने मारने का तरीका। लेकिन इधर तो उल्टा ही चलने लगता है। निंदा भर कर देने से किसी को मार दिया जाता है। जिसके बारे में एक उसको पता है जिसने निंदा किया है और एक वह व्यक्ति है जिसने लोगों से चिल्ला चिल्ला कर कहा कि इसने निंदा किया है। और जितने जमा लोग हैं उनमें से से किसी को सही मायनों में कुछ नहीं पता है। बस एक उनके व्यक्ति ने कहा है, चिल्लाया है तो हमे उसे सही मानना ही है और सही मनाना भी है। उसी को सिद्ध करने के चक्कर में एक भीड़ इकट्ठी होती है और अपने हिसाब से निर्णय लेकर, सजा सुनाकर, सजा दे भी दी जाती है। भले वे खुद कितना सही हैं ये बिना कुछ देखे।
खैर ये सब चलता रहेगा लेकिन उनकी चुप्पी इसे और भयावह बना देती है कि जिन्हें दूसरे दिखते है लेकिन अपने नहीं दिखते है। वे दूर दराज के देश में किसी के साथ हो रहे गलत पर आवाज उठाते हैं लेकिन पड़ोस के देश में उससे भी ज्यादा भयावह स्थिति पर कुछ नहीं बोलते हैं। उससे भी ज्यादा भयावह वाली बात यह है कि अगर दूसरा गलत किया है तो तुरंत आवाज उठा देते हैं लेकिन अगर अपने से संबंधित, भाई, रिश्तेदार, साथी ने कुछ किया है और तब कुछ नहीं बोलने पर स्थिति तुरंत की और आने वाले समय की और ज्यादा खराब दिखने लगती है। ऐसे में शंका उठना, उससे डर लगने लगा लाजिमी है चाहे वो कोई भी हो। आशा है उनमें से ही कुछ लोग आगे आयेंगे और इसे सही करने में अपना योगदान देंगे। क्योंकि अगर ये सही नहीं हुआ तो भले वे सबसे सरस या वे ही वे रहेंगे लेकिन फिर वही डायनासोर वाली हालत हो जाएगी। पहले पेट के लिए दूसरों को मार कर खाया फिर सब समाप्त हो जाने पर उसी पेट के लिए अपनों को ही लगे मारने और अंत में एक इतिहास बन जाना। तो अभी भी समय है नहीं तो..............!
–अjay नायक ‘वशिष्ठ’
#BangladeshCrisis

No comments:
Post a Comment