राजनीति
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किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति को जितना समझो उतना ही कम है। इसलिए तो जब से मानव इस धरती पर जंगलों से निकलकर सभ्य बने तभी से यह राजनीति चली आ रही है लेकिन तनिक भी कहीं से भी धूमिल पड़ी हो। उल्टे राजनीति जितनी पुरानी होती जाती है उतनी ही नईं बनकर किसी न किसी के रूप में या किसी के साथ लगकर चली आती है। यह हमेशा एक नई नवेली दुल्हन की तरह होती है।
अब उत्तरप्रदेश का ही उदाहरण देख लीजिए। उत्तरप्रदेश के लखनऊ में मान्यवर काशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर उनके सभी अनुयायि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती जी के एक आदेश पर ऐसे इकट्ठे हुए कि सभी पक्ष विपक्ष की आंखे खुली की खुली रह गई। और तो और बसपा मुखिया मायावती जी के भाषण के बाद तो कुछ की आंखे भी गड़ने लगी।
जो पार्टी पिछले 12–१३ साल से सत्ता से दूर है और निकाय चुनावों में भी भाग नहीं लेती हैं उसके सभी सदस्य एक की आवाज पर लखनऊ के मैदान को रिकॉर्ड संख्या से भर देते हैं। और जब ऐसा होगा तो किसी की आंखे गड़ना या उसकी आंखों का खुले का खुले रहना भी स्वाभाविक है। यानि वो भले सत्ता में नहीं है लेकिन संगठन और उसके सदस्य अब भी उससे दूर नहीं हुए हैं। उससे जुड़े ही नहीं हैं पूर्ण रूप से मजबूती के साथ खड़े भी हैं।
बात तो भीड़ पर होनी चाहिए थी। बात अस्तित्व पर होनी चाहिए थी। बात ताकत पर होनी चाहिए थी। लेकिन अब इसपर बात न कर के उसपर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वो बीजेपी की B पार्टी है। अच्छा आरोप भी कौन लगा रहा है वो जो अभी कुछ साल पहले बुआ का बबुआ बने थे। उनकी पत्नी बड़े मंच पर उसी बुआ का पैर छुई थी। खैर वो शिष्टाचार में भी किया गया होगा। तो पैर छूना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन दोनों एक दूसरे के प्रति ऐसे समर्पित हुए थे कि बुआ और बबुआ का नारा जोरो शोरो में चला था। एक दूसरे के समर्पित कार्यकर्ता एक दूसरे की तारीफ करने में कोई कोर कसोर नहीं छोड़ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि ये गठबंधन नहीं दो परिवारों का सदा सदा के लिए मेल हो रहा है।
कल की भीड़ देखने के बाद और थोड़ी सी किसी की तारीफ करने के बाद वही बबुआ और उनके समर्पित नेताजी व कार्यकर्ता जी लोग चिल्ला रहे हैं कि ये तो बीजेपी की B टीम है। चिल्लाना भी वाजिब ही था। लगे हाथ जो बुआ जी ने भी एक राजनीति के मैदान पर राजनीति का खेल, खेल दिया। आप बोल सकते हैं कि चौका छक्का तो नहीं मारा लेकिन तीन रन तो चुरा ही लिया।
जो सबसे ज्यादा गड़ने वाली बात थी वो बात ये थी कि बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी जी की तारीफ करना। अब जिसे आग लगनी थी तो लगनी ही थी जिसे नहीं भी लगनी थी उसे भी आग छुआ दिया। इसे ही तो विशुद्ध भारतीय राजनीति कहते हैं और यही राजनीति है। कल कुछ और सुबह कुछ और, शाम को कुछ और, और फिर रात में कुछ और। देखिए कुछ साल पहले यही राजनीति क्या थी आज राजनीति क्या हो गई है। यह समयानुसार और परिस्थितिनुसार खुद को अलटते पलटते रहती है।
यही राजनीति थी दो पक्के दोस्त साथ में चुनाव लड़ते भी हैं और जीतते भी हैं। बस एक दोस्त को थोड़ा कम नंबर मिलते ही तुरंत दूसरा उसका फायदा उठाने लगता है। जब दूसरा फायदा उठाता है तो पहला बोलता है हम क्यों पीछे रहें। वो भी फायदा उठाकर तीसरे को फोड़कर सुबह पांच बजे ही शपथ ले लेता है। यही राजनीति है कि आज उम्र इस पड़ाव है कि ज्यादातर भारतीय ही नहीं विदेशी भी खुद को समेट लेते हैं और धार्मिक कार्यों में या परिवार के साथ समय बिताने लगते हैं लेकिन यह बीमारी जिसे लग जाती है वह खुद को मरते समय तक उससे दूर नहीं हो पाता है। भारत में ऐसे तो वर्तमान व भूतकाल में बहुत से उदाहरण मिलते भी हैं और लोग देख भी रहे हैं।
इसलिए बूढ़े पुराने लोगों ने कुछ भी गलत नहीं कहा है कि राजनीति को जितना समझो उतना ही कम है। यह समयानुसार खुद भी बदल जाती है या किसी के सहारे खुद को बदलवा लेती है। और आज भी लोगों के सामने एक तरुण दुल्हन की तरह खड़ी हो जाती है। सबको पता होता है कि इसकी उम्र बहुत हो गई है फिर भी कोई न तो सामने से और कोई न तो पीछे से ही कह पाता है।
–अjay नायक ‘वशिष्ठ’
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