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Friday 12 January 2018

सर्वोच्च न्यायालय की विश्वशनियता पर एक सवाल


     



आज जो कुछ सर्वोच्च न्यायालय के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके किया है, उसे किसी भी तरह से एक लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नही कहा जा सकता है। उन चार जजों को थोड़ा और संयम बरतना चाहिए था। ये उनके अहम् या बर्दास्त के बहार की बात नहीं थी। ये एक देश के 125 करोड़ देशवासियों के विश्वास की बात थी । वे एक ऐसे पद पर बैठे हैं जिस पर आम जनता का विश्वाश है कि सरकार हमारी सुने या न सुने लेकिन हमारी अदालते हमारी सुनती भी हैं और उसपर उचित निर्णय भी देती है। वे हमारे मौलिक अंधकारों का सरंक्षण भी करती है। कोई 20 साल बाद उनकी कार्यप्रणाली और फैसलों पर संदेह करेगा। उसके लिए 'आज' को खराब कर देना कहाँ तक यह एक अच्छी बात है। उल्टे अब लोग आप के फैसलों को शक के निगाह से देखेंगे।
      समस्याएँ अनेक हैं और हर जगह हैं , लेकिन उन समस्याओं से कैसे निपटा जाए ये बहुत बड़ी बात होती है।  क्योंकि हर सही गलत बात या चीज हमारे भविष्य और भूतकाल पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती हैं।  इसलिए हमें कोई भी निर्णय लेने से पहले समाज पर पड़नेवाले उसके  दूरगामी प्रभावों के बारे में भी विस्तार से सोच लेना चाहिए। वो भी तब बहुत ही जरूरी हो जाता है जब आप देश के सबसे विश्वसनीय पद पर बैठे हों। और वो लोकतंत्र का दूसरा अहम भाग हो। जिसपर देश के १२५ करोड़ जनता की निगाहे लगी हो । 
      ये बात सही है की आज अदालतों के बारे में जो भी खबरें सुनने में आ रही है वे कहीं ना कहीं हमें अंदर से विचलित कर देती हैं।  कि अब हमारे अधिकारों की रक्षा कौन करेगा। अब हम सोचने पर मजबूर हो रहे हैं की अब हमारी अदालतें भी निष्पक्ष नहीं रह गयी हैं।  खासकर निचली अदालतें पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार में डूब चुकी हुयी हैं।  अब ले दे के ऊपरी अदालते ही बच्ची थी विश्वास करने के लिए।  आज के प्रेस कॉन्फ्रेंस ने रही सही वो भी कसर  पूरी कर दी। चारो जंजो को इससे बचना चाहिए था और कोई रास्ता निकालने के बारे में सोचना चाहिए था।  २० साल बाद कोई क्या बोलेगा वो सोच कर अगले २० साल तक अदालत पर विशवास करने का एक कारण खो दिया है।  लोग आज के प्रेस कॉन्फ्रेंस का उदाहरण देंगे की आग लगी थी तभी धुंआ उठा  था। 
      सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को जल्दी से जल्दी इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके या उनसे बातचीत करके मुद्दे को सुलझाना चाहिए।  सरकार को इस गंभीर मुद्दे पर सिर्फ मूक दर्शक बकर नहीं रहना चहिये।  इसपर सभी जजों की एक मीटिंग का आयोजन करके उत्पन्न हुई अविश्वास की समस्या को  जल्दी से जल्दी सुलझाने का कार्य करना चाहिए। और पूरे 125 करोड़ भारतवासियों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि आपकी हमारी न्यायपालिका और उसके न्यायाधीश अब भी उतने ही अपने काम के प्रति ईमानदार हैं जितने पहले थे। हम उनपर आंख बंद करके भरोसा कर सकते हैं।
        कुछ भी हो लेकिन आज हमारी न्यायपालिका की कमियों के बारे में पता चला है। इसे ठीक करने की जरूरत है। और आगे से चलकर ऐसा ना हो। कोई भी जज इस प्रकार अंदर की खामियों को सड़क पर न ले आये। इसे आपस में मिलजुलकर सुलझाने की जरूरत हैं क्योंकि आप, लोंगो के झगड़े, उनकी समस्याओं को सुलझाने का काम करते हैं। अगर ऐसे ही लड़ेंगे तो कोई क्यों आएगा आपके पास। आप पर भरोसा क्यों करेगा। इससे आपके साथ जो 20 साल बाद होने वाला है वो अभी हो जाएगा। और लोग आपके सही फैसलों को भी शक की निगाह से देखेंगे। ये लोकतंत्र के लिए ठीक नही है।
      मुझे विश्वास है कि हमारी सर्वोच्च अदालतें फिर से वही स्थान प्राप्त करेगी जहाँ आज से पहले थी। लोंगो के भरोसे को जीतेगी । और उन्हें विश्वास दिलाएगी कि हमारी न्यायिक प्रणाली दुनिया की सर्वोत्तम न्यायिक प्रणाली है। जहाँ आम आदमी की आवाज सुनी जाती है। और ये काम भी यही 5 जज मिलकर करेंगे। अपने फैसलों के माध्यम से।
      जय हिंद
अजय नायक
दिनांक- 12/01/2017
  
     
  

4 comments:

  1. Replies
    1. हमने महसूस किया कि 4 जजों को थोड़ा और संयम से काम लेना चाहिए था। इतनी जल्दी प्रेस कॉन्फ्रेंस नही बुलानी चाहिए थी।

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    2. ye possible he kya.agar he to tik he warna kanoon to andha he

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    3. हा मित्र सभी समस्याओं का हल है। हमारी न्यायालयीन प्रणाली विश्व की सबसे विश्वसनीय प्रणाली है।

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