1908 से लेकर आजतक महिलाओं की स्थिति "अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस "
8 मार्च को जागतिक महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी सुरुवात 8 मार्च 1913 से हुई थी। जबकि इसकी नींव 1908 में पड़ गयी थी । जब 1908 में न्यूयार्क शहर की करीब 15000 महिलाओं ने मताधिकार के अधिकार के लिए एक रैली निकाली थी। उसी के बाद 28 फरवरी 1909 में पहली बार पूरे अमेरिका में महिला दिवस मनाया गया था।
जर्मनी के डेमोक्रेटिक पार्टी की एक महिला लीडर calra Zetkin ने 17 देशों की 100 महिलाओं का एक सम्मेलन बुलाकर यह निर्णय लिया कि हम महिलाओं को चुनाव में मत देने के अधिकार के लिए लड़ेंगे । इसके लिए हम "अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस " मनाएंगे, जिसपर सभी महिला प्रतिनिधियों ने सहमति प्रकट की। और 19 मार्च 1911 से "अंतराष्ट्रीय महिला दिवस" मनाया जाने लगा। बाद में 1913 से यह 8 मार्च से मनाया जाने लगा। और आज तक यह मनाया जा रहा है। 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने भी "अंतराष्ट्रीय महिला दिवस" को मान्यता प्रदान करके मनाना शुरू कर दिया।
शुरुआत में इसका एक ही उद्देश्य था और वो यह था कि महिलाओं को भी चुनाव में मत देने का अधिकार मिले। बाद में यह और ही व्यापक रूप लेते चला गया व महिलाओं को समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, स्त्री पुरूष समानता का अधिकार। जैसे बहुत से विषय जुड़ते चले गए। भारत में तो महिलाओं को बहुत से मंदिरों दरगाहों में जाने के लिए मनाही थी। तलाक देने का अधिकार उनके पास नहीं था। पिता के जायदाद में सिर्फ लड़के का ही हक्क था।
भारत में और विश्व के सभी देशों में आज भी महिलाओं को दुय्यम दर्जा प्राप्त है। ये हालत विकसित देशों में भी है। वहां भी महिलाओं की स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। आज भी अमेरिका जैसे पूर्ण विकसित देशो में एक आकड़े के अनुसार हर घंटे कहीं ना कहीं किसी ना किसी महिला का बलात्कार होता रहता है। और यह स्थिति भारत , पकिस्तान जैसे देशों में और भी भयावह हो जाती है। हम भारत के लोग एक तरफ महिलाओं को देवी का दर्जा, माँ का दर्जा देते हैं , वहीँ दूसरी तरफ हम उन्हें दहेज के लिए , लड़की होने के लिए , किसी और मर्द से बात करने के लिए , आजाद ख्याल रखने के लिए , कुछ भी पहन लेने के लिए , अकेले घूमने जाने पर, लड़का ना पैदा कर पाने के लिए ऐसे अनगिनत चीजों के लिए परिवार के लोग, आस पास के लोग किसी ना किसी प्रकार से किसी ना किसी तरह से शोषण करते रहते हैं। हर रोज कोई दामिनी बनता है तो कोई निर्भया तो कोई मलाला यूसुफजई ।
आज महिलायें चाँद पर जा पहुंची है। लेकिन अगर बारीकी से निरिक्षण करने या देखने पर वे आज भी वहीँ हैं जैसे 1908 से पहले थी। हमें तो लगता है कि उस समय उनके पास कोई अधिकार , आजादी भले ही नहीं थी लेकिन जरूर आज से स्थिति कुछ तो अच्छी ही थी या रही होगी । आज सब अधिकार होने के बाद भी किसी ना किसी मोड़ पर किसी ना किसी महिला की अस्मत लूटी हुयी दिखती है। छोटे छोटे मासूम बच्चियों को भी यह अपनों को मर्द बोलने वाल जल्लाद समाज नहीं छोड़ता है। और बानगी तो देखिये इन मर्दों को अगले पल में ही मंदिर या घर या किसी स्टेज पर उन्ही महिलाओं को देवी, माँ, बहन कहकर सम्बोधित करता है। महिलाओं को इन विकृत मानसिकता वाले पुरुषों के खिलाफ खड़ा होना होगा। उन्हें ये नहीं सोचना है की हमने एक लड़ाई जित ली है तो सब लड़ाई जित ली है ये पुरुष हमें हमारा सभी हक्क आसानी से दे देंगे। अगर महिलाएं ऐसा सोच रही हैं तो बहुत ही गलत सोच रही हैं ये पुरुष फिर से कहीं ना कहीं किसी ना किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न कर देंगे। इसलिए अपने हक्क के लिए लड़ते रहो। आखिरी दम तक।
आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं । चाँद पर पहुंच चूँकि हैं। बड़ी बड़ी कंपनियों की कार्यकारणी अधिकारी हैं। बड़े बैंको की अध्यक्ष हैं। खेल जगत में एक समय पुरुषों का ही वर्चस्व था लेकिन आज बिना महिलाओं को सामिल किये बिना खेल जगत की बात या चर्चा ही पूरी नहीं होती है। एक समय था की फिल्मों सिर्फ हीरो प्रधान ही होती थी। लेकिन आज ऐसा नहीं है। बहुत सी ऐसे हीरोइने आ गयी हैं जो अपने बल पर फिल्मे चलवा रही हैं और पुरुषों से भी ज्यादा मेहनताना भी ले रही है। आज महिलाएं देश की रक्षा करने में भी आगे हैं। देश की सीमा पर पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर सीमा की रखवाली कर रही हैं। पुलिस में तो बहुत ही पहले से ही महिलायें नौकरी कर रही हैं। आज जहाँ देखो जिस विभाग में देखो आपको महिलायें दिख ही जाएंगी।
ये सब उन्हें ऐसे ही नहीं मिला। इसके लिए बहुत सी महिलायें 1908 से ही लड़ाई लड़ती चली आ रही है । तब जाकर इतना कुछ मिला है। तब भी पुरूष उन्हें आज भी बहुत सी चीजे जो महिलाओं की हक्क की है वे आसानी से देना नहीं चाहते हैं। और जो दे दिया है उसपर एहसान जताते हैं की हमने दिया है आप को। नहीं देते तो आप कितना भी लड़ते हमसे अपना हक्क छीन नहीं पाती। कोई भी पुरुष बलात्कारी पुरुष से, पुरुष सेक्स वर्कर से , कुछ नहीं पूछता है कि आप ने ये काम क्यों किया या आप ये काम क्यों करते हो। लक वहीँ उस महिला से तमाम प्रकार से सवाल किये जाते हैं। उन्हें एहसास दिलाया जाता है की आपने ये काम या आप के साथ ये हुआ है। इसलिए अब समय आ गया है, पुरुषों की इस विकृत मानसिकता का अच्छे से जवाब देने का। अपने अधिकारों के लिए और जोर शोर से लड़ने का। समाज को बताने का कि हम हैं इसलिए आप हो। जितना जरुरी इस संसार के लिए आप हो उतने ही जरुरी हम भी इस पुरे संसार के लिए हैं।
तूँ ही माँ है
तूँ हीं बहन है
तूँ हीं पत्नी है
तूँ हीं भाभी है
तूँ हीं चाची है
तूँ हीं मामी है
तूँ हीं दादी है
हर रूप में तू है
हर मोड़ पर तू है
हर घर में तू है
हर जगह में तू है
हर पल तू हैं
छाँव भी तू है
ममता भी तू हैं
आँचल भी तू है
कपडे का चिर भी तू हैं
प्रेम में भी तू हैं
जहाँ तलक नजर जाती है
सिर्फ तू ही तू नजर आती है
फिर कैसे लोग कह देते हैं
यह दुनिया सिर्फ पुरुषों से चलती है
हम अजय नायक "अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस " की विश्व के सभी महिलाओं को उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाये देते है। आप लोंगो के विचार हमारे bolg, nayaksblog.com पर स्वीकार हैं।
Super
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