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Saturday 17 March 2018

विकास, जीत और हार के साथ 2019 का चुनाव



 विकास, जीत और हार  के साथ 2019 का चुनाव 


जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी राज्यों के चुनाव जीतते जा रही है।  और लोकसभा के उपचुनाव हारती जा रही है।  उससे यही लगता है की केंद्र सरकार आज तक अपनी जनता को कोई भी ऐसी कल्याणकारी योजना प्रदान नही की है, जिससे सीधे तौर पर जनता जनार्दन का फायदा होता हो। जनता का पेट घोषणाओं से नहीं  निवाले से भरता है।  लेकिन लोकसभा के उपचुनावों को देख कर ऐसा लगता है कि जनता को आजतक जो निवाला उन्हें मिलना चाहिए था वो नहीं मिल पाया है। जो उसे पेट भरने के लिए चाहिए था।  केंद्र सरकार सिर्फ घोषणाएं ही करती रहती है। जिसका नतीजा यह निकला की मौजूदा केंद्र सरकार 2014 से अब तक ७ लोकसभा के उपचुनाव हार चुकी है। 
अगर सरकार की नीतियां और योजनाए सही रहती और उन नीतियों व योजनाओं का सीधे तौर पर लाभ किसानो को मिलता तो ३० से ४० हजार किसान १५० किलोमीटर की यात्रा पैदल व नंगे पाँव चलकर  भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकर के दरवाजे तक नहीं पहुँचती।  वो तब जब सरकार यह घोषणाएं कर रही है की हमने ३५ हजार करोड़ रूपये , किसानो के द्वार लिए गए कर्ज को माफ़ कर दिया है।  फिर भी अगर ऐसी हालत उतपन्न होती है  तो इसका मतलब यही है की सरकार सिर्फ घोषणाएं ही कर रही है।  जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है।
आज भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं।  एक किसान ने तो महाराष्ट्र विधान मंडल की छत से ही कूदकर ही आत्महत्या कर ली वो भी एक वृद्ध आदमी। इसी प्रकार से और राज्यों में भी किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं।   और सरकार को यह बिलकुल ही नहीं दिख रहा है। अगर केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाये इतने ही काबिल और आम आदमी के लायक हैं तो आत्महत्या जैसी नौबत ही नहीं आनी चाहिए। यह समस्या सिर्फ किसानो से संबंधित ही नहीं है हर क्षेत्र में है।
भारतीय जनता पार्टी को अपने बड़े नेताओं के साथ बैठकर चिंतन करना होगा कि आज ऐसी समस्या क्यों उत्पन्न हो रही है।  हम लोकसभा के उपचुनाव क्यों हार रहे हैं ? वो भी तब जब हम आम जनता के कल्याण के लिए तमाम प्रकार के कल्याण कारी योजनाये लागू करते जा रहे हैं।  कुछ तो कमी है जो भारतीय जनता पार्टी और उनकी सरकारों को नहीं दिख रहा है।  अगर वे इस गुमान में हैं कि वे राज्यों के चुनाव जीत रहे हैं और ये सब उनकी कल्याणकारी योजनाओं की वजह से है तो उन्हें एक बात ध्यान देने की है की वे चुनाव वहीँ जीते हैं जहाँ उनकी सरकारे पिछले 5 साल या उससे पहले से थी ही नहीं।  जहाँ जहाँ उनकी सरकारे थी वहां वहां उनकी सरकारे बनी तो जरुर लेकिन गठबंधन से। और यह एक सत्य है।  गठबंधन तभी होता है जब बहुमत प्राप्त करने के लिए किसी भी पार्टी के पास चुने गए पर्तिनिधियों की संख्या कम होती है।  इसका मतलब आप उन राज्यों में चुनाव हारे हैं भले ही आज आपकी वहां सरकार क्यों ना हो। 
लोकसभा के चुनाव में अभी एक साल है। और अगर अब भी भारतीय जनता पार्टी व उनके नेतृत्त्व की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नहीं नींद से नहीं जागी तो इसकी दुर्गति शायनिंग इंडिया वाली सरकार से भी बद्दतर से भी बद्दतर होगा । क्योंकि सभी विपक्षी पार्टियों ने एक ही लक्ष्य बना लिया है, और वो है सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को कैसे भी हराना।  चाहे इसके लिए हमे अपने दुश्मन दल और नीतियों से समझौता ही क्यों ना करना पड़े।  अगर भारतीय जनता पार्टी यह सोच रही है की लोग हमे राम मंदिर, हिन्दुत्त्व व विकास के नाम पर वोट देंगे तो यह सपना देखना भूल जाए । भारत की जनता राम मंदिर और हिन्दुत्त्व के मुद्दे से बहुत ही आगे बढ़ चुकी है।  ये मुद्दे अब उन्हें कोई मुद्दा नहीं लगता है।  कुछ लोग जरुर विकास के मुद्दे पर वोट देंगे लेकिन उन्हें भी विकास दिख नहीं रहा है।  उन्हें दिखा तो वो जरुर वोट देंगे।
भारत की जनता सिर्फ एक मुद्दे से कभी पीछे नहीं हटती है और उस मुद्दे पर वोट भी देती आई है और शायद देती भी रहेगी। और वो है जाति व धर्म का मुद्दा।  आप कुछ ना करिए उनके लिए, फिर भी वे वोट उसे ही देंगे क्योंकि फला पार्टी और फला पार्टी के उमीदवार हमारे जाति और धर्म से संबंध रखते हैं। इसमें वे किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करते है। यह मुद्दा सारे मुद्दों को पीछे छोड़ देता है।  विकास को भी।  क्योंकि यह मुद्दा भारतियों के भावनाओं से जुड़ा हुआ मुद्दा है। जिसने यह मुद्दा हथिया लिया वही जीतेगा।  ऐसा होता आया है और होता रहेगा। इसलिए भारतीय जनता पार्टी को अगर आगे चुनाव जितना है तो विकास के साथ साथ इन बातों को भी ध्यान रखना होगा।  सिर्फ वो विकास के नाम पर वोट नहीं मांग सकते हैं। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव है।

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