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Wednesday 5 September 2018

शिक्षक- भविष्य के चुनौतियों के बीच में


शिक्षक- भविष्य के चुनौतियों के बीच में

Pic By- www.nayaksblog.com


शिक्षक- शि- शिखर, क्ष -क्षमा, क- करुणा , शिखर यानि जो भी हो ,चाहे वह अपने मातहत हो या ना हो, लेकिन अपने ज्ञान के बल पर उसे शिखर तक पहुंचा दे वो एक शिक्षक है। जिसमे दूसरों को क्षमा करने की ताकत हो, और लोंगो को भी क्षमा करना सिखाये वो एक शिक्षक है।  और सबसे बड़ी चीज ये है कि जिसमे दूसरों के प्रति करुणा का भाव हो, साथ मे वह दूसरों में भी करुणा का भाव जगाए, वही शिक्षक है। इन्ही तीन शब्दों के पहले अक्षरों से मिलकर शिक्षक शब्द बना है। और शिक्षक के अंदर ये तीन गुण भी होने चाहिए।  इन सबके साथ एक शिक्षक में एक चौथा गुण भी होना चाहिए। और वह यह है कि (सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार) " एक शिक्षक का दिमाग सबसे अलग और तेज होना चाहिए" जिससे वह सभी विषयों पर प्रभुत्त्व प्राप्त कर सके। यहाँ तेज दिमाग से यह नहीं है की वह कुशाग्र बुद्धिवाला हो। तेज दिमाग वाला वो होता है जो अपने आप को समय के अनुसार ढालते चले और नित नए विषयों को सीखते चले। तथा अपने उस अर्जित ज्ञान को अपने विद्यार्थियों एवम समाज के बीच बाट सके। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता है तो हम उसे एक शिक्षक नही मान सकते हैं।
शिक्षक का स्वरूप व्यापक होता है। इसलिए हर शिक्षक को जीवन भर शिक्षक की व्यापकता को बनाये रखने के लिए ज्ञान अर्जित करते रहना चाहिए।  जिससे उसकी व्यापकता संकुचित ना हो सके।  अगर उसकी व्यापकता संकुचित हुयी तो यह सिर्फ उसके लिए ठीक नहीं है।  अपितु पूरे  संसार के लिए ठीक नहीं होगा।  जिससे विद्यार्थी और पूरे समाज का वर्तमान व भविष्य प्रभावित होगा। जो कि दुनियाभर में शांतिपूर्ण समाज के निर्माण के लिए शुभ संकेत नही माना जायेगा।  एक विद्यार्थी और उस विद्यार्थी से सम्बंधित समाज का भविष्य उस शिक्षक पर ही अवलम्बित होता है जो उसका विद्यालयीन जीवन में मार्गदर्शन करता है। और वह विद्यार्थी उसी मार्गदर्शन के अनुसार अपना और अपने समाज का भविष्य तैयार करता है। एक शांति प्रिय विद्यार्थी और समाज का निर्माण करने के लिए शिक्षक को व्यापक होना होगा।
शिक्षक सिर्फ विद्यार्थी एवम समाज को ज्ञान ही नही प्रदान करता है। अपितु वह एक नए समाज का निर्माण भी करता है। इसलिए शिक्षक को सृजन करने वाला भी कहते हैं। और सभी शिक्षकों को अपनी यह सृजनात्मक प्रवृत्ति को बनाये रखना चाहिए। जिससे वह कुछ ना कुछ नया सीखे । और अपने उस नई सीख को विद्यार्थियों को भी प्रदान करे। ताकि विद्यार्थी अपने शिक्षक से प्रेरणा लेकर खुद भी सृजनात्मकता को अपने अंदर जगह दे। और कुछ नया करें। जब तक सृजन नही होगा, तब तक विद्यार्थी और समाज का विकास नही होगा। जैसे खून बनते रहता है और फिर पूरे शरीर के चक्कर लगाता रहता है।  वैसे ही हमारे जीवन मे कुछ ना कुछ सृजन होते रहना चाहिए तभी हम आगे बढ़ पायेगे। विकास रूपी शरीर के चक्कर लगा पाएंगे। और यह काम सिर्फ शिक्षक ही कर और करवा सकता है। इसके लिए सभी शिक्षकों को सृजनशील होना चाहिए। नित नए निर्माण के बारे में सोचते और उससे संबंधित कार्य करते रहना चाहिए। 
शिक्षा के माध्यम से लोंगो को रोजगार मिले। लेकिन कुछ लोंगो ने इसी का फायदा उठाकर शिक्षा को व्यापार बना दिया है। और लगभग बहुत से शिक्षक एक मझे हुए व्यापारी भी बन चुके हैं। जिसे सिर्फ अपने व्यपारे से मतलब होता है।  अगर मुर्गी अंडे दे रही है तो अपने काम की है नहीं तो उसे तुरंत मारकर उससे निकलने वाले मांस को बेचकर जो पैसे आएंगे, उससे दूसरी अंडे देने वाली मुर्गी का प्रबंध करो।  जिससे हमारा व्यापार फलता फूलता रहे। यह एक मानसिकता व्यापारी के मन मे होता है। वही मानसिकता आजकल के कुछ शिक्षकों में भी आ गया है। चाहे सामाज पर कैसा भी असर पड़े। ऐसा नहीं है कि सभी शिक्षक व्यापारी बन चुके हैं । बहुत से शिक्षक आज भी शिक्षा को बाजार बनने से रोकने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। लेकिन महंगी होती शिक्षा, सरकार की गलत नीतियों व शिक्षा माफियाओं की वजह से दिन प्रतिदिन उनकी संख्या कम होती जा रही है। और वे चाहकर भी कुछ नही कर पा रहे हैं। बची खुची आशाओं पर हमारे सरकारी बाबू पानी फेर दे रहे हैं।
इसमें पूर्ण रूप से शिक्षक की ही गलती नही है कि वह व्यापारी बनते जा रहा है । इसके लिए आज की शिक्षा भी भी उतनी ही जिम्मेदार है। साथ ही साथ सरकारी कार्यभार और सरकार के द्वारा बनायी गयी शिक्षा से सम्बंधित नीतियाँ भी उतनी ही जिम्मेदार है।
जिससे पूर्व में सामाजिक बहिष्कार या सामाजिक स्तर में निचले पायदान पर रहनेवाले लोगों को शिक्षा नही मिल पाती थी। आज आर्थिक कारणों से कमजोर होने की वजह से अच्छी शिक्षा नही मिल पा रही है । और अगर ऐसा ही रहा तो भविष्य में मध्यमवर्गीय लोंगो को भी शिक्षा से दूरी बनानी पड़ जाएगी। इसमें सिर्फ समाज का ही नुकसान नही होगा एक शिक्षक का भी नुकसान होगा। वह अपने शिक्षक शब्द के मायने ही भूल जाएगा। और इस भागमभाग में भूलते जा रहा है।
अगर शिक्षा और शिक्षक दोनों  को बचाना है। तो एक शिक्षक को ही आगे आना होगा । उसे शिक्षा को व्यापार बनने से रोकना होगा।चाहे वह किसी भी हालत में क्यों ना हो। किसी बड़े या छोटे विद्यालय या कॉलेज में ही अध्यापन का कार्य करता होगा। समाज के हर वर्ग के बच्चों को शिक्षा मिले, हर वर्ग को एक बच्चों को उचित स्थान मिले। उनका सम्मान हो। इसके लिए शिक्षक अपनी शिक्षा के माध्यम से समाज, समाज के ठेकेदारों से व शिक्षा माफियाओं से लड़ेगा। यह तभी होगा जब शिक्षक एक शिक्षक बना रहेगा। और अपने सृजनशीलता से एक नए समाज का निर्माण करेगा।
क्रीम पाउडर लगाने से कोई सुंदर नही बनता है, 
कड़ी मेहनत और अपने मजबूत हौसलों से सुंदर बनता है।
- अजय नायक

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