ख्वाहिशें
हमारी ख्वाहिशें भी बहुत सी थी,
और जब पूरी हुई,
तो हाथ मे सिर्फ और सिर्फ,
राख ही राख आयी ।
हम दौड़े थे, दम लगाकर मंजिल की तरफ,
जब मंजिल पूरी हुई,
तो पैरों में इतने छाले पड़े कि
पूरी जिंदगी ही बेदम हो गयी।
हम निकले थे, घर से समय पर, कि रास्ता बहुत लंबा है,
और जब रास्ते पूरे हुए ,
तो अपनो ने ही ऐसा धोखा दिया,
कि उसके आगे कमबख्त मौत भी छोटी हो गयी।
फिर भी हमने, ख्वाहिशें पालना छोड़ी नही,
आज भी दौड़ रहे हैं पैरों में छाले लिए,
कल भी दौड़ेंगे उसी जोश ए खरोश में,
चाहे जिंदगी, बेदम ही क्यों ना हो जाए !
- अजय नायक
www.nayaksblog.com
हमारी ख्वाहिशें भी बहुत सी थी,
और जब पूरी हुई,
तो हाथ मे सिर्फ और सिर्फ,
राख ही राख आयी ।
हम दौड़े थे, दम लगाकर मंजिल की तरफ,
जब मंजिल पूरी हुई,
तो पैरों में इतने छाले पड़े कि
पूरी जिंदगी ही बेदम हो गयी।
हम निकले थे, घर से समय पर, कि रास्ता बहुत लंबा है,
और जब रास्ते पूरे हुए ,
तो अपनो ने ही ऐसा धोखा दिया,
कि उसके आगे कमबख्त मौत भी छोटी हो गयी।
फिर भी हमने, ख्वाहिशें पालना छोड़ी नही,
आज भी दौड़ रहे हैं पैरों में छाले लिए,
कल भी दौड़ेंगे उसी जोश ए खरोश में,
चाहे जिंदगी, बेदम ही क्यों ना हो जाए !
- अजय नायक
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bahut achha likha hai sir
ReplyDeleteThanks
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