पीला रंग
ये पीले रंग का फूल नही,
है एक किसान की खुशी,
जिसे सींचा अपने पसीने से,
रंग भरा अपनी मेहनत से,
तब जाकर लहलहा उठा,
कड़कड़ाती ठंडी में,
लड़ जाता है बर्फ़ीली हवाओं से,
तूफानों के बीच,
खड़ा रहता है मूसलाधार बारिश में,
तब जाकर नसीब होती है,
दो वक्त की रोटी हमारी थाली में।
वो भूखा सो जाता है,
अपनी फसल के लिए।
कल जब वे तैयार होंगे,
हमे हमारा मेहनताना देंगे सूद समेत।
लेकिन उन्हें क्या मालूम,
जिस मेहनताना का कर रहे वे इंतजार,
उसे कोई और उड़ाने के लिए है तैयार।
उसे मालूम है
आसपास हैं बहुत से जालसाज,
फिर भी वह खड़ा होता है
अपने परिवार और खेत के लिए
क्योंकि उसे मालूम है,
लहलहाती फसलें ही उसके परिवार और देश की है जान।
ये पीले रंग का फूल नही,
है एक किसान की खुशी,
जिसे सींचा अपने पसीने से,
रंग भरा अपनी मेहनत से,
तब जाकर लहलहा उठते है,
धरती की छाती पर।
- अजय नायक
www.nayaksblog.com
No comments:
Post a Comment