पत्थर से खिलौना बना दिया
छू भर लिया पारस हाथों से
खिलौने में भी जान डाल दिया
कुछ तो जादू है उन हाथों में
जड़ को भी तना बना दिया
नौ महीने रखकर कोंख में
भ्रुण में भी जीवन डाल दिया
करछुल को हिलाकर भदेली में
सरे आम बेवकूफ बना दिया
खुद लड़कर भूख से
कलेजे को भरपेट भोजन करा दिया
बदन को ढककर चोथड़ों में
सूट बूट का आदमी बना दिया
एक गज जमीं बेटे को मिल सके
डोम को अपना आखिरी चिर भी दे दिया।
कोई उस मूरत को ममता कहे
कोई उसे माई नाम से बुला लिया
लड़ गयी जब अपने ही सुहाग से
बेटे का जब धड़ अलग कर दिया ।
थोड़ा भी जान नहीं है शरीर में
इस पड़ाव में पैरों ने भी धोखा दे दिया
फिर भी कूद पड़ी पलंग से
माँ कहकर बेटे ने जो पुकार लिया ।
- ब्लॉगर अजय नायक
www.nayaksblog.com


Nice poem...
ReplyDeleteThanks
Deleteheart touching poem
ReplyDeleteThanks अजय
ReplyDeleteNice poem
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