अपने लिए ना सही दुसरों के लिए रुक जाईये
कभी - कभी रुकना भी अच्छा होता है,
छूटे लोगों से मिलने की आशा बढ़ जाती है।
ऐ मूरख इंसान आज फिर वही समय आया है,
रुक जा अपने अपने पथों पर, आशियाने में,
शायद कोई अपना बिछड़ा फिर से मिल जाए।
कुछ दिन और अपने घरों में रह लीजिये। अपने लिए ना सही अपने परिवार, समाज, देश और उस इंसान के लिए जिनका एक भी दिन भी घर पर रहने से उनके घरों से धुँए बाहर नही आते हैं।
ऐसा नहीं है कि उनके पास कुछ भी नही है। उनके पास भी कुछ रुपये और सामान हैं। लेकिन नही है तो वो भविष्य जो थोड़ा बहुत हमारे पास या आपके पास किसी ना किसी वजह से किसी ना किसी रूप में है। वे आज उनपर मोहताज हैं जो उन्हें 2 समय का राशन और भोजन दे रहे हैं। उनके पास वे भोजन देने वाले जिस दिन नही पहुंच पाए। उन्हें खाली पेट ही सोना होगा। क्योंकि वे यही सोचते रह जाएंगे या उन्हें सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि जो थोड़ा बहुत जमा किया है। अगर उसे आज ही खा लिया। और खाना खिलाने वाला कल भी नही आया तो मैं और मेरा परिवार क्या खायेगा। क्योंकि उनके पास रोज रोज जो राशन आता है। और यही सोचकर वह भूखा सो जाता है कि बचे हुए राशन का उपयोग कल कर लेंगे। हम और आप सभी को अच्छे से पता है कि 'कल' कभी नही आता है।
इसलिए कह रहे हैं कि इस संकट के समय में जो आगे नही बढ़ पा रहे हैं । उनके लिए जहां हैं हम वही रुक जायें तो हमारा भी भला होगा और उस अंतिम व्यक्ति का भी भला होगा । जो रोज पर निर्भर है। शायद वो भी दीवाली, होली, नवरात्रि, रमजान और क्रिसमस का त्योहार हमारे जैसे तो नही लेकिन जितना है या उस समय जितना ही रहे उसके पास । उतने में ही खुशी मना ले। खुशी, खुशी होती है चाहे वह थोड़े से मिले या बहुत ज्यादा से मिले।
Be pOsItIvE सकारात्मक रहिये सब अच्छा ही होगा।
घर पर रहिये,
करोना मुक्त भारत बनाइये।
जय हिंद
- ब्लॉगर अजय नायक
www.nayaksblog.com
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