उठो सृष्टि के मोहनप्यारों सुबह हो गयी
आंखे खोलो अपने हाथों को देखो
फिर देखो सूर्य की उस लालिमा को
जिस पर लट्टु हो गए थे बजरंगबली।
अपने सुंदर से दोनों पैरों को
धरती पर रखते हुए उन्हें नमस्कार करो
और कहो हे धरती माँ हमसे सब कुछ ले लेना
पर अपने आँचल गोदी का आधार न लेना।
पता है आपको, रात बड़ी ही निर्मम थी
चारो ओर छाया, घोर अंधियारा था
ना मंजिल करीब थी
ना अपनों का ही पता था
कैसे जीवन की रात कट रही थी
यह सिर्फ रात, काल और हमको पता था।
पता है आपको, रात बड़ी ही निर्मम थी
चारो ओर छाया, घोर अंधियारा था
ना मंजिल करीब थी
ना अपनों का ही पता था
कैसे जीवन की रात कट रही थी
यह सिर्फ रात, काल और हमको पता था।
वैसे जिन्दगी तो परायी थी
लेकिन उसमे एक चीज अपनी थी
जिसका नाम, सोच और हिम्मत था
जिसका नाम, सोच और हिम्मत था
बस इसी के सहारे आगे बढ़ना था।
हम ऐसे ही आगे बढ़ते चले जा रहे थे
वो(रात) हमारा साथ देती चली जा रही थी।
तभी उठे सुबह जल्दी जल्दी
एक चिंगटी काटे खुद से खुद को
सारा माजरा समझ में आ गया।
हक़ीक़त में लो तो जीवन की हक़ीक़त थी
सपने में लेना चाहते हो,
तो वह हक़ीक़त में एक सपना था।
------- ब्लॉगर अजय नायक
No comments:
Post a Comment