Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Sunday 19 July 2020

गुस्सा ( आपकी सबसे बड़ी कमजोरी भी और सबसे बड़ी ताकत भी )


       एक मनोज नाम का लड़का था। दिल से बहुत ही अच्छा था। लेकिन स्वभाव से थोड़ा गुस्सैल प्रकृति का था। किस बात पर कब बिगड़ जाए यह खुद उसे भी पता नही चलता था। तो दूसरों को कैसे पता चले कि वह कब किस बात पर गुस्सा हो जायेगा।  यह उसकी एक आदत सी भी बन गयी थी। क्योंकि वह अपने आसपास के किसी भी व्यक्ति से कभी भी, किसी भी बात पर, उलझ जाने की फितरत में रहता था । जिसकी वजह से उसका किसी से अच्छे संबंध नही बन पाए थे। जिससे था भी वः भी बगड़ाते ही चला जा रहा था। एक बात और किसी से उसने अच्छे संबंध न बन पाने की थोड़ी बहुत भी गुंजाईश नहीं छोड़ी थी। एक तरह से उसका लोगों पर से विश्वास ही खत्म हो गया था।  आप ऐसा भी समझ सकते हो कि उसका खुद पर से ही विश्वास खत्म हो गया था .
      "ऐसे ही एक दिन की बात है।"  
     किसी बात पर अपने पिताजी से ही झगड़ गया। चूंकि वह जितना ही झगड़ालू व गुस्सैल स्वभाव का था । उसके पिताजी व उसके पुरे परिवार वाले उतने ही सरल व मिलनसार व्यक्तित्व के थे। दोनों में था तो ही एक ही खून। फिर भी वे दोनों एक दम से दो विपरीत दिशा के ध्रुवों का नेतृत्व किया करते थे।
यह काम उसके पिताजी कई बार किये थे।  तो इस बार भी उसके पिताजी उसे उसके गुस्से को नियंत्रित करने के बारे में ही समझा रहे थे।
             "मनोज अपने गुस्से को काबू करना सीखो।  तुम्हारे पास दुनिया की अनमोल चीजों में से एक गुस्सा नाम की चीज है।  इसे अपनी ताकत बनाओ न की कमजोरी।  कितनो के पास सबकुछ रहता है लेकिन गुस्सा न रहने के कारण वे कुछ नही कर पाते हैं।  तुम्हे तो प्रकृति का साक्षात् उपहार के रूप में गुस्सा मिला हुआ है।  इसे काबू में करना सिख जाओ। जिसे तुम्हारी बाते आज अच्छी नहीं लग रही है उन्हें भी तुम्हारी बाते अच्छी लगने लगेगी। जिसके अंदर गुस्सा बहुत होता है उसका दिल बहुत ही सुंदर होता है। बस एक बार अपने गुस्से को काबू या थोड़ा सा शांत करने का प्रयास कर लो। उसके बाद सारा काम तुम्हारा दिल कर देगा।  लेकिन तुम्हे उसके पहले अपने गुस्से को एक बार शांत करना होगा। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है।  लेकिन तुम्हारा गुस्सा तुम्हे याद दिलाता रहता है कि तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। "
           वो कहावत है ना की जिसका दिमाग ही ख़राब हो उसके आगे सबकुछ बेकार होता है सिवाय उसकी खुद की सोच के।  " जैसे कुत्ते को घी नहीं पचता है। " वैसे ही मनोज भी था।  पिता की इतनी ही बात पर भड़क उठा।            आपको क्या लगता है कि हम समझते नही हैं।  बात बात पर गुस्सा करते हैं।  औरों की तरह आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो।  दूसरों की गलती नहीं है।  अगर हम गलत हैं तो बोलते ही क्यों हैं लोग मुझसे। वगैरा वगैरा 
              अपने स्वभावानुसार अपने पिताजी से ही उनके समझाने वाली बात पर झगड़ गया। 
             जबकि उसके पिताजी बिल्कुल ही कुछ नही बोल रहे थे। उलटे उसे ही उसके झगड़ने पर समझा रहे थे । और मनोज उनकी किसी भी बात को मानने को तैयार ही नहीं था। और उसी गुस्से में वह घर छोड़कर भी चला गया। 
        वह शहर पहुंच गया। और वहीं के एक बड़ी कंपनी में हेल्पर की नोकरी करने लगा। चूंकि वह हेल्पर की नोकरी करना नही चाहता था लेकिन भूख और शहर में कोई अपना ना होने की वजह से भूख से मरने से अच्छा उसे वेटर की नोकरी करने में ही भलाई लगी। भूख के आगे तो अच्छे से अच्छे लोग विवश हो जाते हैं। मनोज तो एक सामान्य इंसान ही था।
       उस कंपनी में उसे कुछ ही दिन हुए थे कि उसने उस कंपनी के एक ग्राहक से पानी लाने पर झगड़ गया। जिसकी वजह से उस कंपनी के मैनेजर ने उसे नोकरी पर से निकाल दिया । इसी प्रकार से वह जहां भी काम पर लगता वहां किसी न किसी से किसी भी बात पर झगड़ा कर लेता था। ऐसा नही था कि हर बार वही गलत रहता था लेकिन अपनी आदत की वजह से वह छोटी सी छोटी बात को राई का पेड़ बनाकर लड़ पड़ता था। कभी अपने साथियों से तो कभी कभी मैनेजर से लड़ बैठता था। हद यहां तक हो गयी कि वह अब अपने कंपनी के बड़े साहबों और मालिकों से भी लड़ने लगा था किसी न किसी बात पर । जिसकी वजह से उसे नोकरी निकालने के सिवा कुछ नही रहता था। फिर भी मनोज की अकड़ वही थी । वह कभी अपनी गलती मानता ही नही था। सही में बोले तो वह गलत भी नही रहता था लेकिन दुनिया को कभी लड़कर नही जीती जाती है। इतिहास इसका गवाह है। यही बात उसे समझ मे नही आ रही थी। सही होने के बावजूद वह गलत ठहरा दिया जाता था।  इस बात पर की अगर सही भी थे तो झगड़ा क्यों किये ? हमे आकर बताना चाहिए था। 
    उसके अंदर बोलने की क्षमता थी। जो बहुत ही कम लोगो मे पाई जाती है। बेधड़क अपनी बात को लोगो के सामने बोलने की कला थी। अगर वह लड़ता है यानि वह अपने के साथ साथ दूसरों के हक के लिए भी लड़ सकता है। यह उसकी ताकत है। लेकिन वह अपनी इन क्षमताओं को और ताकत को बिल्कुल ही नही पहचान पा रहा था । यही उसके पिताजी भी बार बार समझा रहे थे कि कहीं भी किसी से भी झगड़ कर अपनी क्षमताओं को क्यों खत्म कर रहे हो । उसे सहेज कर रखो वही तुम्हे बहुत आगे तक ले जाएंगी। लेकिन वह अपने गुस्से के नशे में इतना मदमस्त हो चुका था कि उसे कुछ दिख ही नही रहा था।
      वह सिर्फ खुद को देखता था । इसलिए उसे दूसरे कभी सही लगते ही नही थे । यही परेशानी हम सब मे होती है। हम खुद को देखकर, दूसरों का भी अंदाजा लगा लेते हैं कि वह भी हमारे जैसा ही होगा। या फला फला जैसा ही होगा।  जो कि बिल्कुल ही नही होता है। अगर हम खुश हैं तो जरूरी नहीं है कि दूसरा भी खुश ही होगा। या हम दुखी हैं तो दूसरा भी दुःखी ही होगा। दूर का छोड़िए अपने परिवार का ही कोई सदस्य ले लीजिए । जरूर कोई न कोई परिवार का सदस्य दुखी जरूर होगा। और हम यहीं पता लगाना भूल जाते हैं। क्योंकि हम खुश रहते हैं तो हमे लगता है की हमारा पूरा परिवार ख़ुश होगा।  जबकि ऐसा नहीं होता है। और हम यही अंदाजा लगाना भूल जाते हैं। जिसकी वजह से हम हमेशा खुद की परेशानी और दूसरों के परेशानी का खुद ही कारण बनते रहते हैं।
        मनोज की भी हालत ऐसी ही हो गयी थी। उसकी झगड़ने की आदत से कोई भी अब उसे नोकरी पर रखना ही नही चाहता था। हर जगह से उसे भगा दिया जाता था। कारण बस एक ही था और वह था उसका झगड़ालू स्वभाव। उस शहर में उसका कोई सगा संबंधी भी नही था कि वह उसके यहां ही जाकर रह ले। जिसकी वजह से वह कई दिनों से अन्न का एक निवाला भी अपने पेट मे नही डाल पाया था । भूख के कारण उसकी हालत एकदम बिगड़ चुकी थी।
          अब उसे दो ही रास्ते नजर आ रहे थे । और वो यह था कि वह या तो वो फिर से अपने घर चला जाये या भूखा ही इस अनजाने शहर में लावरिशों की तरह मर जाये। क्योंकि वह अब इतना तो जान ही गया था कि उसे जानने वाला कोई भी नोकरी तो देगा नही । और दूसरा यह कि वह अपने मूल स्वभाव की वजह से कहीं टिक भी नही पायेगा।  इस हालात में उसका घर जाना ही सबसे अच्छा होगा। भले ही घर वाले उसे स्वीकारें या ना स्वीकारें। कुछ भी हो घर और उस घर में रहने वाले अपने ही हैं।  तो शायद कुछ रहम कर दे।  
       उसे सौ प्रतिशत विश्वास था कि घर वाले स्वीकार नही करेंगे। लेकिन यहाँ उसे उसके सोच के अनुसार विपरीत परिणाम मिला। उल्टे घर के लोग उसके आवभगत में लग गए । कोई कुछ पूछ रहा है तो कोई पूछ रहा है। सबसे बड़ी बात थी कि जिससे लड़ कर गया था । वह उसके पिता, खुद उसके पास आकर उसे नहा धोकर खाना खाने के लिए कहते हैं।
           रात का खाना खाने के बाद शांत घर के छत पर बैठकर गुमशुम होकर एक टक टकी लगाए ऊपर आसमान को देख रहा था।  वह देखने में इतना मग्न था कि कब उसके पिताजी उसके पास आकर बैठ गए यह उसे पता ही नहीं चला। 
           "अचानक ही उसका ध्यान टूटता है और वह हड़बड़ाते हुए ग्लानि की मुद्रा में माफ़ी मांगते हुए पिताजी से बोलता है कि आपको न देख पाने के लिए माफ़ी मांगता हूँ और आप कब आये यहाँ ?" 
          "पिताजी को लग गया कि यह वः मनोज नहीं है जो घर छोड़कर चला गया था।  यह तो एकदम से बदल गया है।  पहली बार उसके चेहरे पर एक शिकन की लकीर दिखी।  सामने वाले के प्रति प्यार और सम्मान का भाव दिखा।  वैसे यह भाव पहले भी था लेकिन उसे कभी सामने नहीं ला सका था अपने गुस्से की वजह से।  जिसे आज शांत होने पर लाया है। सही मायनो में यही हमारा मनोज है. जो घर छोड़ने से पहले नहीं था।" 
              पिता कुछ आगे बोलते कि उसके पहले मनोज ने ही बात की शुरुवात कर दी।  आप लोगो ने मुझे स्वीकार क्यों किया ? जबकि मेरा आप लोगों के प्रति कभी भी अच्छा व्यवहार नहीं था। हमेशा ही दर्द ही दिया आप को एवं अपने पुरे परिवार को।  लेकिन आज किसी के चेहरे पर थोड़ी भी शिकन नहीं दिखी मेरे प्रति, आखिर ऐसा  क्यों ?
             पिताजी बोलते हैं कि तुम्हारा वापस आना ही हमे बता दिया कि तुम कभी गलत नहीं थे।  बस तुम अपने गुस्से को शांत या अपनी इच्छा अनुसार थोड़ा भी चला नहीं पा रहे थे।  जिसकी वजह से तुम्हे हर अच्छी चीज और हर वो कोई जिससे तुम सहमत नहीं हो पा रहे थे सब बुरे लग रहे थे।  जिसकी वजह से तुम झगड़ हर किसी से।  हमे पता था कि तुम्हे अब सिर्फ जीवन का ठोकर ही समझा सकता है।  जो तुम्हे लगा। और लौटकर अपनों के पास आये।  इसलिए हम में से किसी को थोड़ा भी बुरा नहीं लगा उलटे ख़ुशी हुयी की जो मनोज अपने गुस्से की वजह से छूट गया था हमसे वह फिर से वापस आ गया। पिताजी हँसते हुए कहते हैं कि जैसे कोई कुम्भ के मेले में बिछड़ा हुआ वापस आ जाता है। 
              पिताजी बोलते हैं सबकुछ हमारे हाथ में हैं।  यहाँ  कोई सही नहीं है।  सभी गलत हैं , लेकिन उनकी गलती को हम सही कर सकते हैं भगवान ने हमे वह ताकत "समझ" के रूप में दी हुयी है। और गुस्सा तो हमारे जीवन का अनमोल रत्न है।  गुस्सा है तभी हम कोई काम क्र पाते हैं। नहीं हो तो हम कुछ भी नहीं पाएंगे। अभी आप शांत हो तो कुछ करके दिखलाओ,  नहीं कर पाओगे।  गुस्सा होते ही आप बड़े से बड़े पहाड़ को भी चकनाचूर करने का मादा रखोगे।  बस जरुरी है गुस्से का सही जगह इस्तेमाल करने की।  जिसने  किया वह आप इतिहास में जाकर देख लो जिसने नहीं किया उन्हें भी आप इतिहास के पन्नो में देख सकते हो। लेकिन एक के साथ आदर शब्द जुड़ गया और दूसरे के साथ अनादर शब्द तो नहीं जुड़ा लेकिन कुछ अच्छा भी नहीं जुड़ा। 
               अब मनोज को अपनी ताकत के बारे में एहसास हो गया था।  आज, यानी पूर्वकाल में जो उससे दोस्ती नहीं करना चाहते थे, दोस्ती करने से कतराते थे उसके गुस्सैल स्वभाव की वजह से या उससे बात ही नहीं करना चाहते थे वे सब आज मनोज से दोस्ती करने के लिए आतुर रहते हैं।  और मनोज ने उन्हें अपना अच्छा दोस्त बना भी लिया। क्योंकि अब गुस्से वाल मनोज नहीं अब अपने गुस्से को ही अपना दोस्त बना लेने वाल मनोज था। जिसका एक नया पुनर्जन्म हुआ था। 
                हमे भी गुस्सा होना चाहिए जो हमारे उन्नति के लिए फायदेमंद भी है।  लेकिन उसे सही समय इस्तेमाल करना भी सीखना चाहिए तभी वह हमारे लिए फलदायी सिध्द होगा।  नही तो हमारी भी हालत बिल्कुल मनोज के जैसी ही होगी .या उससे भी ख़राब हो सकती है।  क्योंकि गुस्से के बीएस में होकर किया गया कोई भी काम कभी सही नहीं होता है। गुस्से का सही जगह इस्तेमाल करने से काम सही होता है। 
      
    
-ब्लॉगर अजय नायक

2 comments: