शुक्र मनाओ
आज मन बहुत उदास है
उनके लिए दिल बेताब है।
नही तो.......
हम भी गीत गाते
कोयल की कूँ कूँ की तरह
हम भी धी धी नाचते
अपनी बगियाँ में मोर की तरह
हम भी उछलते कूदते
पेड़ों की डालियों पर कपि की तरह
हम भी गरजते बरसते
सावन के रिमझिम फुव्वारों की तरह
हम भी नाचते गाते
सावन में लहलहाते हरे भरे फसलों की तरह
हम भी सन सन बहते
फागुन में बहती पुरवाई की तरह
हम भी पीले हो जाते
खेतो में लहलहाते सरसों की तरह
शुक्र मनाओ आज
जेठ की तपती गर्मी ढा रही है कहर
पड़ने दो बादलों की बूंदे
मन फिर से नाच उठेगा बांवरा होकर।
-BLOGGER अJAY नायक
Nice beta
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