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Thursday 13 August 2020

15 अगस्त 1947 से लेकर आजतक का सफर { कितना पाया और कितना खोया }

 15 अगस्त 1947 से लेकर आजतक का सफर 

कितना पाया और कितना खोया 

 




            इस 15 अगस्त को हम अपनी आजादी के पुरे 73 वर्ष पूर्ण कर लेंगे और आजादी के 74 वे वर्ष में कदम रखेंगे। जिसे पाने के लिए हमने पता नहीं कितनी बलिदानिया दीं। गोरो ने हमारी कितनी कोंखों को सुनी करके चले गए।  कितने परिवार उजड़ गए।  कितनी पत्नियां विधवा हो गयी या वो पति होने का क्या सुख होता है ये जान ही नहीं पायीं। कितनी माँ अपने बेटे के घर आते देखने के चक्कर में दरवाजे पर बैठे बैठे ही अपनी सारी जिंदगी आंसुओं के साथ गुजार दी। तब जाकर हम 15 अगस्त 1947 को आजाद हुए। जिसका जश्न हम आज भी उतने ही जोश  ऐ खरोश से मनाते हैं , जितने जोश ऐ खरोश से 15 अगस्त 1947 की सुबह जब हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रस्सी खींचकर हमारी आजादी का झंडारोहण किया था। 

                 आज उस बात को 73 साल बीत गए हैं। फिर भी हम आज जब भी अपनी उस डेढ़ सौ सालों की गुलामी के बारे में पढ़ते हैं तो पूरा अंदर तक सिरह जाते हैं।  कैसे अंग्रेजों ने हमारे लोगों पर तरह की यातनाओं का प्रहार किया। जिसने भी उनका विरोध किया उसे जेल में डालकर यातनाओं का जो भी पूरा प्रकार होता था वह सब उन आजादी के परवानो पर आजमाए जाते थे। अगर वह वहाँ से भी बच गया तो मरने तक उसे काला पानी की सजा सूना देते थे।  हमे लगता है कि उस समय के सबसे ज्यादा नसीब वाले मौत की सजा पाने वाले देशभक्त होते थे।  जिन्हे फांसी की सजा की वजह से रोज यातनाओं को सहते हुए घूंट घूंट के तो नहीं मरना पड़ता था। यही सब बातें जब जब मन में एक बार हिलोर मारती है तो पूरा शरीर एकदम से काँप उंठता है।

                     जब जब वह मंजर सामने आता है यह खून उन अंग्रेजों के खिलाफ एकदम से खौल उठता है। लेकिन क्या करें तब तो हमने जन्म भी नहीं लिया था तो कुछ कर भी नहीं सकते हैं।  फिलहाल हम आज भी कुछ ज्यादा कहाँ कर ही पाते हैं। बस सोचते रहते हैं। ये कर दिया होता, वो कर दिया होता। सब दिमाग में ही शुरू होता है और वहीं खत्म भी हो जाता है। और हम ही उससे अगले पल कहते हैं कि रुक भाई थोड़े देर में तुझे बाहर निकालता हूँ तबतलक थोड़ा और, थोड़ा और, सोंच लूँ। ताकि तू और अच्छे से आज के समय की लड़ाई को लड़ सके। खैर तब थे नहीं और अब जब हैं तो उस लायक क्या उसके जैसा हम थोड़ा भी बनने की कोशिस भी नहीं कर रहे हैं।  लगे हैं अपने ही विकास में

                     खैर यही सोचते सोचते हम यहां तक पहुँच चुके हैं।  और अगर इतना ही अच्छा सोचते तो जिस देश को आजाद करवाने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था देश के नाम। / आजादी लेने तक पहुँचते पहुंचते अपने ही भाई बहनों के कातिल नहीं कहलाते। 

                     कभी कभी हमे लगता है कि गोरो ने हमे गुलाम नहीं बनाया।  हमे गुलाम बनाया हमारी खुद की हरकतों ने।  और यही सब देखकर तो उन गोरो ने हमे गुलाम बनाये रखा वो भी पुरे 150 वर्षों तक।  उन्होंने बहुत से देशों को जीता और उनकी स्वतंत्रता को भी छीना।  लेकिन उन्हें हमारी तरह गुलाम नहीं बनाया।  हमारी तरह इतनी यातनाएं तो दी।  लेकिन हमारी तरह इतनी यातनाएं देकर, उन्हें हमारी तरह बहुत ही बर्बरता से लूटा नहीं। वैसे गोरों से पहले भी जो बाहरी आक्रमणकारी हमारे देश पर हमला किये थे।  वे भी सिर्फ हमे लुटे थे।  और जहां जहां उनका विरोध हुआ वहां वहां अपनी तलवार की नोक पर नंगा हैवानियत का खेल खेला था।  लेकिन इसतरह से दो समुदायों को अलग करके और फिर उन्हें अपना गुलाम बनाकर राज नहीं किया।  उन्होंने लुटा सिर्फ धन को। हमारी विरासत को हमारी संस्कृति को। लेकिन गोरों ने तो धन, विरासत, संस्कृति के साथ साथ हमारे यहां के सारे संसाधनो को ही लूट लिए।  जिसके आधार पर हम हर बार लूट जाने के बाद भी अपनी अर्थव्यवस्था को अपने समाज को अपनी विरासत को अपनी संस्कृति को फिर से खड़ा कर लेते थे।  और तारों की तरह पुरे संसार की आँखों का तारा बन जगमगा उठते थे। लेकिन इन गोरों ने हमे ऐसा लुटा कि हम आज भी नहीं खड़े हो पाए हैं।  और एक दूसरे से गुलामी की दासता झेलने के बावजूद लड़ रहे हैं छोटी छोटी बातों पर। इसी वजह से हमारे टुकड़े टुकड़े पर टुकड़े हो गए। 

                          जिस प्रकार हम आज लड़ रहे हैं जिस प्रकार से बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से हम यह सटीक अंदाजा लगा सकते हैं कि हम बिलकुल ही अच्छे नहीं थे।  बस लड़ रहे रहे थे, क्योंकि हमारे पास उन गोरों ने लड़ने के आलावा और कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था।  और हम आज भी वहीं कर रहे हैं। बस उस समय आजादी के बहाने अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे थे। और आज आजादी मिल जाने की वजह से अपनी अकड़ की मौज में लड़ रहे हैं।

                           अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे बाद आजाद हुए कितने ही देश हमसे बहुत ही आगे निकल गए और हम आज भी बस चल ही रहे हैं अपनी मंजिल को पाने के लिए।  बिच में एकाधबार ऐसा लगता है कि हमारी रफ़्तार बहुत तेज हो गयी है। और हम बहुत ही जल्दी विकास के शिखर पर होंगे तभी बीच में ही अवरोध बनकर कोई देशी चिंता की बात( आपसी लड़ाई ) या वैश्विक चिंता वाला कोई विषय ( वैश्विक मंदी, करोना जैसी कोई वैश्विक महामारी  ) रास्ते में आ जाता है। और हम वहीं फिर से धीरे हो जाते हैं या उसका इतना बड़ा असर पड़ता है कि हम फिर से कुछ साल पीछे जाकर उसी पहले वाली रफ़्तार में आ जाते हैं।  जिस रफ्तार से पहले धीरे धीरे गति से चल रहे थे।  

                          अच्छा हम इन 73 सालों में इतने भी सक्षम नहीं बन पाए हैं कि किसी भी समस्या का कोई हल खुद ही खोज लें।  पडोसी देशों से लड़ाई अभी तक चल ही रही है।  जबकि हम उसे कई बार हरा चुके हैं।  लेकिन उसका हल नहीं खोज पाए।  एक से हारे तो भी वह अभी तक पीछे पड़ा ही है।  बात बात में हमारे देश की सीमा में घुसकर कब्जा करने की कोशिश व हथकंडे अपनाता रहता है। और हम कुछ साल तक चुप चाप उन्हें देखते रहते।   लेकिन हाल के सालों में उन्हें जवाब मिलने लगा है।  घर में घुसकर मारने वाले तरीकों से।  जिसकी वजह से तो एक पडोसी थोड़ा सहमा सहमा तो  रहा है लेकिन अगर उसकी भूतकाल की हरकतों को देखा जाए तो उसपर विशवास बिलकुल ही नहीं किया जा सकता है। दुसरा अपनी ताकत के बल पर अभी भी चढ़ने की कोशी कर रहा है। अगर अतीत से सीखे तो वह  भी बिलकुल ही विश्वसनीय नहीं है।  इसलिए हमे एक साथ दो मोर्चों पर एक जैसे ही दो दुश्मनो से लड़ना है।  

                            फिर भी हमने इन 73 सालों में धीरे ही सही लेकिन बहुत ही मजबूत स्थिति में विकास किया है।  जिसे कोई बाहरी दुश्मन आक्रमण करके हिला या रोक नहीं सकता है।  अब हम भी विश्व के पटल पर चमकना शुरू क्र दिए हैं।  फिर भी उसके टिकने की संभावना में एक छोटा सा ही संशय बना रहता है।  लेकिन अगर देखे तो वह संशय एक बड़ी समस्या बनने में भी समय नहीं लगाएगा। वह है हमारे यहां कि आपस की लड़ाई जो  दिखने लगी है।  यहां हर कोई बड़ा बनने के चक्कर में एक दूसरे को निचा  दिखाने में लगा हुआ।  राजनितिक पार्टियों से लेकर आम धर्म के संगठन और जातियों के संगठन। इसलिए हमे अपने और अपने देश के विकास के साथ साथ उसका भी हल करते हुए चलना होगा। तभी सही मायनो में हमारा देश विकास के शिखर  को छू पायेगा।  और विश्व के पटल पर फिर से चकते हुए  तारे की तरह जगमगा उठेगा। 

   - BLOGGER  अjay नायक   

   


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