बेकाबू होती भीड़ (मूक दर्शक बनकर देखती सरकारें)
बेकाबू होती भीड़ यह सिर्फ भारत और पूरी दुनिया के लिए एक समस्या ही नहीं बन रही है। अब यह पूरी तरह से नासूर बनता जा रहा है। जिसका अगर सही से सही समय पर पता करके इलाज नहीं किया गया तो यह एक बार फिर से पूरी दुनिया को लोकतंत्र से अलोकतंत्रत की आग में धकेल कर जला डालेगा। फिर हम, राख भी मुट्ठी में ठीक से नहीं उठा पाएंगे। एक तेज हवा का झोका आएगा और उसे सन सन से हमारे सामने ही उड़ा ले जाएगा। और हम हाथों को मसलते हुए देखते के देखते रह जायेंगे।
हमारा देश तो उतना अभी भी परिपक्व नहीं हो पाया है। जितना अमेरिका और पश्चिम के देश हुए हैं। फिर भी अमेरिका जैसे देश में हाल ही में एक उग्र भीड़ पुरे अमेरिका जैसे देश को बंधक बना सकती है तो सोचिये हमारे यहां उसकी विभीषिका कितनी खतरनाक बनकर हमारे सामने आएगी। हम उसे कैसे रोक पाएंगे जब हमारे यहां धर्म के साथ साथ जातियों के बिच में भी छोटी छोटी लड़ाईयां सामने आती रहती है। जो कभी कभी भीषण आग का रूप भी ले लेती है।
हमे अभी इस पर बहुत ही बारीकी से गौर करना चाहिए। नहीं तो यह चिंगारी हमारे देश को फिर से उसी गर्त धकेल देगी जिससे हम 150 वर्ष लड़कर आज से 74 वर्ष पहले आजाद हुए। वो भी पूरी तरह से खोखले होकर। जिस देश को सोने की चिड़िया कहकर लुटेरे जब चाहते तब आकर इस सोने की चिड़िया की धरती को लूटकर चले जाते थे। वे अब भी जिन्दा हैं और बची खुची भारत भूमि को लूटने को तैयार हैं।
कुछ वर्षों में की भीड़ बेकाबू होती जा रही है। उतनी पहले कभी नहीं हुयी है। रामजन्मभूमि के आंदोलन की घटना, गोधरा काण्ड, पूर्वोत्तर भारत की आग का असर मुंबई में तोड़फोड़, भीमा कोरे गाँव की घटना, अभी दिसंबर फरवरी में दिल्ली और एकदम ताजा में बेंगलुरु की घटना। हर जगह भीड़ बेकाबू होती चली जा रही है। भीड़ किसी एक के बहकावे में पड़कर पुरे शहर को जलाने के लिए उन्माद हो जाती है। भले ही उस आग की लपटे उसके घर तक पहुँच कर उसके ही घर को ही क्यों जला दे।
बेंगलुरु में क्या कांग्रेस विधायक के बेटे ने fb पर धर्म विशेष के बारे कुछ ऊलजलूल बातें लिखी। फिर क्या उसके खिलाफ धार्मिक भावनाये भड़काने के लिए पुलिस में रपट लिखवाने की जगह कांग्रेस विधायक का घर फूँक दिया। जहाँ जहां गए वहां वहां कड़ी गाड़ियों को आग लगा दिए। इतना भी काफी नहीं हुआ तो पुलिस थाने को ही घेर कर उसे आग के हवाले करने पर उन्मदा हो गए थे। अब वह नहीं कर पाए तो उसके आस पास खड़ी गाड़ियों को ही आग के हवाले और तोड़फोड़ शुरू कर दिए।
ठीक ऐसे ही अमेरिका में भी हुआ था। बीएस फर्क इतना था कि वहां धार्मिक की जगह रंग वजह बना था। जो भी हो दोनों भीड़ एक समान ही थी। सिर्फ उसने पुरे अमेरिका को चपेट में ले लिया था। यह सिर्फ दिल्ली और बेंगलुरु तक ही सिमित होकर रह गया था। सोचिये अगर अमेरिका की तरह यह आग भी पुरे भारत में फ़ैल गया होता तो क्या होता। कितना हमार नुक्सान इस करोना जैसी महामारी में होता। क्या हम सम्हाल पाते ? अगर सम्हाल भी पाते तो क्या उससे जल्दी से उबर पाते। जहां दो धर्म एक दम तलवार की नोक पर बैठे हों। साथ में उस तलवार को हिलाने वाले मौके तलाश में एक दम से तैयार बैठे हो।
हमारे यहां सभी भीड़ वाली दंगो के बाद देखा गया है कि किसी एक दो लोग या संगठन के बहकावे में पडकर लोंगो को भीड़ के रूप में बनते हुए। यहां तक कि यह बाते भी आती है की लोंगो को भीड़ के रूप में बनाने के लिए पैसे की भी व्यवस्था भी की जाती रही है और आज भी की जाती है। इसका उदाहरण भीमा कोरे गाँव और दिल्ली के दंगे हैं। भीमा कोरे गाँव की घटना में बड़े बड़े साहित्यकारों के नाम भी आये जो अभी जेल में भी हैं। पुलिस के अनुसार भीमा कोरे गाँव में भीड़ के द्वारा जो कुछ भी किया गया वह सब सुनियोजित था। उसकी परिकथा पहले से ही तैयार कर ली गयी थी। बस धीरे धुंए को आग के रूप में बनने के लिए हवा दी जा रही थी। कुछ ऐसा ही दिल्ली के दंगो में भी देखने को मिला। और अब वही बात बेंगलुरु में एक भीड़ के द्वारा की गयी तोड़ फोड़ में भी सामने आ रही है। बात तो यहां तक की आ रही है कि विदेशी फंडिंग भी हो रही है हवाला के माध्यम से।
केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकारों को इसे सिर्फ एक धार्मिक जातीय या रंग भेद का मामला समझकर छोड़ने की बहुत ही भारी गलती नहीं करनी चाहिए। सोचने की बात है कि एक छोटी सी छोटी बात इतनी बड़ी चिंगारी का रूप कैसे ले ले रही है। कौन कौन लोग उस आग को भड़काने में लगे हैं उनकी पहचान करके तुरंत समाज के सामने लाना चाहिए ताकि समाज, देश को ऐसे लोंगो के बारे में पता चल सकें और भविष्य में ऐसे लोंगो से होशियार रह सके। साथ में इनके खिलाफ सख्त से सख्त क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।
अभी उत्तरप्रदेश की सरकार ने वहां फिलहाल में राज्य में हुए दंगे में दंगे करने वालों को दोषी घोषित करके उनके पोस्टर चौक-चौराहों पर लगा दिए थे। साथ में भीड़ के द्वारा की गयी तोड़फोड़ का हर्जाना भी उनसे ही वसूला गया। जो हर्जाना नहीं भर पाए उनके घरों के कुर्की का भी आदेश जारी कर दिया। कुछ तो उनके बचाव में कोर्ट भी चले गए। कोर्ट ने पोस्टर हटवाने का आदेश भी दे दिया। लेकिन राज्य सरकार ने अध्यादेश लाकर कोर्ट के आदेश को भी निरस्त कर दिया। और तब पता चला की कितनों के पास तो हर्जाना भरने के पैसे छोड़िये उनके पास तो खाने के पैसे भी नहीं है। लेकिन धर्म के नाम पर भीड़ का शक्ल बनाकर भीड़ में शामिल हो गए। ऐसों पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही सभी सरकारों को करनी होगी। लोंगो को भीड़ का शक्ल देने वाले ऐसे ही लोगो का फायदा उठाते हैं। और उन्हें कुछ रुपयों का लालच देकर कुछ समय के लिए खरीद लेते हैं। अच्छा खरीदते तो उनकी गरीबी आधार बनाकर नहीं उनकी धार्मिक कट्टरता, उनकी जाती कट्टरता को आधार बनाकर। और ये बिकने वाले जाती के आधार पर इक्क्ठे होकर धीरे से दूसरे हाथ से कुछ पैसों के लिए अपना जमीर ही एकदम आसानी से बेंच देते हैं।
-BLOGGER अjay नायक
nice beta
ReplyDeleteThanks पापा
DeleteNice sir
ReplyDeleteTHANKS
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