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Sunday 25 October 2020

रावण का एक अनुसरण, किसी का सम्मान बचा दे

रावण का एक अनुसरण, किसी का सम्मान बचा दे

दशहरा पर्व कि सभी को हार्दिक बधाई। माँ भगवती आप सभी के घर को धन धान्य से भर दें।  ऐसी उनसे प्रार्थना करते हैं। 



हम सब मिलकर इस दशहरा में  प्रभु श्री राम के साथ साथ रावण कि भी कुछ खुभियों को आत्मसात करते हैं। जिसकी आज के वर्तमान काल में बहुत ही जरुरत आन पड़ी है।  वैसे, इनकी खूबियों को हमे, हमेशा आत्मसात करते रहना चाहिए।  लेकिन जिसप्रकार से हमारे समाज में और खासकर महिलाओं के प्रति हिंसा दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है वहां इनके खूबियों को आत्मसात करने की बहुत ही जरूरत पड़ गयी है। ऐसे समय में हमे प्रभु श्रीराम को आत्मसात करने के साथ साथ, रावण को  भी आत्मसात करना चाहिए। प्रभु श्रीराम तो हमेशा ही अनुसरणीय हैं ही लेकिन कहीं न कहीं दशानन भी अपने कुछ अच्छे कर्मो से प्रभु श्रीराम जितना ही अनुसरणीय हैं।  

जिसप्रकार से माता सीता का हरण करने के बाद भी रावण ने कभी उन्हें छुआ नहीं।  हरण करके ले जाने के बाद भी उन्हें अन्य लोगों कि तरह कहीं भी नहीं रखा। एक महिला होने कि वजह से माता सीता को अन्य कैदियों से अलग रखा। उनके लिए विशेष महिला पहरेदारों कि अलग से व्यवस्था किया।  वैसे किसी को भी उसके इच्छा के बिना हरण करना कोई अच्छी बात नहीं है। लेकिन हरण करने के बावजूद उसकी पवित्रता का ख्याल रखना यह एक तरह से बहुत ही योग्य और अच्छी बात कहलाएगी।  जिसकी आज के समय में भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व को इसकी जरूरत आन पड़ी है। 

एक तरफ हम उन्ही स्त्रियों की, माँ, बहन, पत्नी, के रूप में सम्मान देते हैं और तो और हम देवी के रूप में उनकी पूजा करते हैं। तो दुसरी तरफ हम किसी परायी औरत को अपने मर्दानगी भरे रौब से कुचलने के लिए भी तैयार रहते हैं। जिसकी वजह से आज समाज में खासकर महिलाओं में भय का माहौल बनते चला जा रहा है। और अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हममें और आदिकाल के इंसानों में जब शिक्षा थी ही और जंगलों में रहने वाले जानवरों में कोई फर्क नही रह जाएगा। 

आईये इस "बुराई के पर्व पर अच्छाई कि जीत" से प्रभु श्रीराम कि तरह वचन लेते हैं कि दूसरों कि माता बहनों और पत्नियों का भी उतना ही सम्मान करेंगे जितना हम अपने घर कि महिलाओं का करेंगे। और आपके यह वचन जिस दिन से पुरे होने लगेंगे उस दिन से सही मायनों में दशहरा पर्व मानाने का उदेश्य पूर्ण होगा।  नही तो ऐसे ही हर महीने कोई न कोई त्यौहार आता रहेगा।  और दूसरी तरफ किसी महिला का, किसी परिवार का सम्मान अख़बारों के पन्नों के माध्यम से तार तार होते हम देखते रह जायेंगे।  और तब तक इतनी देर हो जायेगी कि हाथ मसलकर रह जाना पडेगा। और आप कुछ नही कर पाएंगे। भले ही कितने बड़े आदमी या ताकतवर आदमी क्यों रहो। 



इसलिए अभी भी समय गया नहीं है। अपने बच्चों को अपने परिवार को और खासकर अपने समाज को हमारे बीच पनप रही अपराध के रूप में इस नासूर बिमारी के बारे में बतलाएं। उन्हें इससे लड़ने के लिए प्रभु श्रीराम और रावण के साथ साथ जो भी अच्छे उदाहरण हो जिससे हमारा समाज, आजकी पीढ़ी और हमारे आने वाली पीढ़ी जागृत हो सके। उनसे कहें कि राम बनना सबसे आसान है।  और अगर राम नहीं बन पा रहे हो तो रावण बनने के साथ साथ उसकी एक अच्छाई को भी आत्मसात कर लेना।  आप देखना सबकुछ गलत करके राम के जितना ही प्रिय बन जाओगे। और वह यह है कि खुद के घर की स्त्रियों के साथ साथ दूसरों के घर की महिलाओं का भी सम्मान करना। भले ही आप कितने ही बुरे क्यों न हो। इससे ख़त्म तो नहीं होगा लेकिन हम इसे इतना कम कर सकते  हैं कि इसका होना और न होना एकदम से बराबर हो जाएगा।  और अगर तब हम एक और प्रयास करेंगे तो शायद यह पूर्ण रूप से ख़त्म भी हो जाएगा। 

- ब्लॉगर अjay नायक 

www.nayaksblog.com

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