हमारे जीवन, विकास का आधार हमारी नदियाँ विलुप्त की कागार पर
इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्णया
असिक्न्या मरूद्ष्टधे वितस्तयाSSर्जिकीये शणुह्या सुषोमाया।।
तृष्टामया प्रथमं यातवे सजूः सुसर्त्वा रसया प्रवेत्या त्या।
त्वं सिन्धो कुमया गोमतीं क्रुमुं मेहल्वा सरथं यामिरीयसे।।
ऋग्वेद के 10/75/6 में हमारे देश में उस समय कि प्नमुख नदियों का उल्लेख आता है। ऋग्वेद और अर्थववेद में इसबात का भी उल्लेख मिलता है कि उस समय सैकड़ों नदियाँ हमारे देश में बहती थी। जिसमे प्रमुख रूप से गंगा सिन्धु गोमती यमुना, कावेरी जैसी नदियाँ थी। जो आज भी अविरल रूप से बहती चली जा रही है।
हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारे जीवन का आधार, हमारी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत बनाने वाली ये हमारी नदियाँ ही हैं। आज पूरे विश्व में हमारा जो भी मान सम्मान है या हम पूरे विश्व को जो भी दे रहे हैं उसमें इनका सबसे ज्यादा योगदान रहा है। यह जिस भी क्षेत्र से होकर बही उस क्षेत्र कि मिट्टी को सोना बनाते हुए गयी। और वहां पर मानव जीवन और सभ्यता के विकास का बीजारोपण हुआ।
अपितु भारत ही नहीं विश्व की जितनी भी पुरानी सभ्यतायताएँ थी, उन सब का उदय व विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। भारत की तो एक तरह से पहचान ही नदियां हैं। आज भी आप भारत के जितने प्राचीन शहर पाएंगे वह सब किसी न किसी नदी के किनारे ही पाएंगे। जीवन को जल चाहिए और जहाँ जल रहेगा वहीं जीवन रहेगा। एक तरह से हम बोल सकते हैं की जल ही जीवन का आधार है। इसलिए समुन्द्र का पानी खारा होने कि वजह से भारत ही नही पुरे विश्व में नदियों के किनारे ही मानव बस्तियों का निर्माण बहुत ही तेजी से हुआ।
हमारे देश में छोटी बड़ी कुल मिलाकर 20 हजार के लगभग नदियाँ बहती है। और यह नदियाँ पुरे भारत में लगभग 43 लाख किलोमीटर का सफर तय करतीं हैं। जिनके तटीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार कि फसलों का पैदावार होता है। विभिन्न प्रकार कि मछलियाँ पायी जाती है जो करोड़ों लोंगो कि जीविका और रोजगार का साधन भी है। भारत के बड़े शहरों के साथ साथ सभी बड़े तीर्थस्थल भी इन्ही नदियों के किनारे बसे हुए हैं। जिसकी वजह से धार्मिक मह्त्व्व के साथ साथ रोजगार का भी बड़ा क्षेत्र भी इन्ही नदियों के किनारे प्राचिन काल से उपलब्ध है।
लेकिन आज यह हमारे स्वार्थी स्वभाव की वजह से हमारी नदियाँ मर रही हैं। एक सरकारी आकडे के आनुसार 323 नदियां लगभग 450 स्थानों पर एकदम से प्रदूषित पायी गयी है।यहीं नहीं हमारी आर्थिक राजधानी मुंबई की एक मात्र नदी मीठी नदी पूर्ण रूप से नाले का रूप ले ली है। करोडो खर्च करके वह जैसी की तैसी ही है। हमारी और सरकारों की छोटी छोटी गलतियों की वजह से हमारी जीवनदायनी नदियां अब अपने अंत समय की ओर अपने कदमो को बढ़ाते हुए चली जा रही है। फिर भी अपने कर्तव्यों को नही भूली हुई हैं। हम इन्हें चाहे जितना ही सम्पूर्ण समाप्ति की ओर ढकेल क्यों न रहे हो । वो हमे समय समय पर आज भी एहसास दिला रही है कि हे पुत्र हमे बचा लो । तुम्हारी हस्ती सिर्फ सिर्फ मेरी वजह से ही है। लेकिन हम अपने विकास के मद में इतने चूर हो गए हैं कि अब हमें ये भी नही दिख रहा है कि जिस पेड़ पर बैठे हुए हैं उसी को धीरे धीरे ही सही काट रहे हैं।
हे मानव मित्रों हे भारत माँ के पुत्रों अभी भी समय है अपनी इस धरा की अमूल्य धरोहर को बचा लो। दुनिया आज विकास का मजा चख रही है लेकिन अपने इतिहास को देखो । हम आज से हजारों साल पहले ही विकसित हो चुके थे। जो पूरी दुनिया के पास नही था वह सबकुछ हमारे पास था। सबकुछ प्रकृति के अनुकूल। जिससे प्रकृति को कभी नुकसान नहीं पहुंचा था । क्योंकि हमारे पूर्वजों ने विकास को प्रकृति को ध्यान में रखकर ही गढ़ा था। जिसकी वजह से हम दुनिया के सबसे विकसित संस्कृति थे।
-BLOGGER अjay नायक
www.nayaksblog.com
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