Breaking

Recent Posts: Label / Tag Ex:

Friday 14 May 2021

विश्वास



विश्वास 



          भगवान तो अपने भक्त की मदत तो करते ही हैं, साथ में अपने भक्त के दुश्मन की भी करते हैं। क्योंकि वह दुश्मन उनके भक्त का साथ जो पकड़े रहता है। यही तो भगवान की लीला है। साथ में, हमे सकारात्मक विचार और विश्वास को ना खोने की प्रेरणा भी देते हैं। परिस्थितियां कैसी भी हो हमे अपने अंदर इन दो चीजों को बनाये रखनी चाहिए। आज नही तो कल जीत हमारी ही होगी। और अगर हार भी गए तो भी अपने हारने का गम नही होगा।

    गजराज(हाथी) एक बार अपने पूरे परिवार के साथ एक सरोवर में जल क्रीड़ा कर रहे थे। तभी एक ग्रास (मगरमच्छ) आकर उनका पैर पकड़ लेता है। गजराज खूब जोर लगाते हैं उस ग्रास से अपना पैर छुड़ाने के लिए ।लेकिन ग्रास ने गजराज का पैर बहुत ही जोर से पकड़ा हुआ था । और धीरे धीरे उन्हें सरोवर के अंदर खिंच रहा था। और गजराज अपने पैर को बाहर की तरफ खिंच रहे थे।

     अब तो गजराज को लग गया कि हम तो नही बचेंगे। गजराज भगवान् विष्णु के भक्त थे। तब उन्होंने सोचा क्यों ना आज अपने ईष्ट देव को याद कर लिया जाय। इस मुश्किल समय से एक वहीँ हैं जो निकाल सकते हैं। उसी सरोवर में कमल के फूल भी थे। तुरंत गजराज ने उन फूलों को तोड़कर अपने ईष्ट देव को समर्पित करते हुए प्रार्थना करता है कि अब भगवान आप ही का सहारा है। रक्षा करिए, इस ग्रास से। आज आपके भक्त की इज्जत के साथ साथ आपके सम्मान की भी बात है। बचाइए अपने इस भक्त को दुष्ट ग्रास से। वो कहते हैं ना कि सच्चे दिल से और सच्चे मन से कोई भी प्रार्थना करो तो वह कभी खाली नहीं जाती है। वैसे ही गजराज की प्रार्थना भी खाली नहीं गयी। तुरंत प्रभु अपने भक्त की मदत करने के लिए दौड़े दौड़े चले आये। उन्होंने अपना चक्र निकाला और ग्रास का धड़ उसके सिर से अलग कर दिया। जिससे गजराज के प्राण बच गए। और फिर गजराज भगवान की स्तुति करने लगते हैं। उनकी जय जय जयकार करने लगते हैं। लेकिन उनके मन मे एक शंका रह जाती है। जिसे वह भगवान से पूछने के लिए घबराते हैं। लेकिन भगवान तो ठहरे भगवान । वे तुरंत अपने भक्त की शंका को जान लेते हैं। और फिर पूछते हैं भक्त मन मे कोई शंका हो तो बिना संकोच किये पूछ लो। इसमें डरने या संकोच करने की कोई बात नही है। 

    गजराज पूछते हैं कि बुलाया हमने तो उद्धार तो हमारा करना चाहिए था। लेकिन आपने तो उस ग्रास का उद्धार कर दिया जो आज आपके भक्त के प्राण ले रहा था। इसपर भगवान बोलते हैं कि यह सच है कि हमे सबसे पहले आपका उद्धार करना चाहिए था। क्योंकि भगवान के लिए इस संसार मे सबसे बड़ा उनका भक्त ही होता है। बिना भक्त के भगवान की कल्पना अधूरी रहती है। फिर सोचो भक्त के पैर पकड़ने वाला कितना बड़ा हुआ? जिसने भगवान के भक्त का ही पैर पकड़ लिया हो। गजराज समझ जाते हैं और भगवान के चरणों में अपना सीस नवा देते हैं। 

    इसलिए भगवान तो अपने भक्तों की तो मदत करते ही हैं, साथ में भक्त के दुश्मन या दोस्त जो भी हो उनकी भी मदत या उनका उद्धार करते हैं। क्योकि वे भले अपने कर्मों से  अच्छे या बुरे होते हैं लेकिन उनका जुड़ाव उनके सबसे प्रिय चीज के साथ होने की वजह से उनका भी उद्धार उनके भक्त से पहले ही हो जाता है। अगर कोई हमारा अहित कर रहा है तो समझिये वह अपनी मर्जी से नहीं कर रहा है।  वह सब उस प्रभु परमपिता परमात्मा की इच्छा से कर रहा है। भगवान हमारे साथ या हमे जरिया बनाकर उसका भी उद्धार करना चाहते हैं। इसलिए हमे अपने अहित करने वाले पर भी दया का भाव रखना चाहिए। क्योंकि हमारी वजह से वह भी या हमसे जुड़े होने की वजह से वह भी उस परमपिता परमेश्वर भगवान विष्णु का भक्त है। बस हमारी भक्ति दिखती है और उसकी  दिखती नहीं है। फिर भी वह भी हमारे साथ परमेश्वर का नाम जाने अनजाने में लेते रहता है। 

     इस कहानी से हमें यह भी प्रेरणा मिलती है कि हमे अंतिम समय तक कभी हार नहीं माननी चाहिए। अपने अंदर विश्वास और सकारत्मक का दिया हमेशा जलाये रखना चाहिए। ठीक उसी प्रकार एक विश्वास और सकारत्मक उस परमपिता परमेश्वर विष्णु पर भी बनाये रखना चाहिए। लेकिन सबसे जरुरी  है खुद पर विश्वास बनाये रखना ताकि किसी भी मुश्किल समय से निकलने में वह हमारी मदत करता रहे। हमारे हौशले और जज्बे को बनाये रखे। उसे किसी भी हालत में टूटने न दे। थोड़ा समय लगेगा। लेकिन हम इस या किसी भी मुसीबत से छुटकारा पा जाएंगे। जरूरत है अपने ऊपर और अपने ईष्ट देव पर भरोसा रखने की। एक सकारात्मक सोच की जो हमारे शरीर में एक नई ऊर्जा, चेतना का निर्माण कर सके। जिससे हम बड़ी से बड़ी समस्या और मुसीबतों को हरा सके। 

      सकारात्मक सोच रखने से जरूरी नहीं कि आप कोई भी लड़ाई जीत जाओगे। आपकी हार भी हो सकती है। लेकिन आपकी यही सकारात्मक सोच आपके जीत के समय नही आपके हार के समय सबसे ज्यादा काम आती है। कि हम हारे जरूर हैं लेकिन मौके नही गवाएं हैं। हम फिर खड़े होंगे फिर लड़ेंगे। जबतक हमारे शरीर मे लहू दौड़ता रहेगा। सकारात्मकता यह सोच और विचार तैयार करती है। जो हमे आगे बढ़ने के लिए एक नए रास्ते की खोज में मदत करती है। हमारे विश्वास को सुदृढ़ करती रहती है। हमारी ऊर्जा को समय समय पर या जब भी जरूरत पड़ती है उसे फिर से तरो ताजा करती रहती है। 

चले थे अकेले पथ पर,
कोई मिला कोई नही मिला।
मन में एक ही बात रखे थे 
जब अकेले ही चले थे 
इसलिए किसी के मिलने या 
ना मिलने का गम भी नही था।
BE POSITIVE
www.nayaksblog.com

4 comments: