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Sunday 15 August 2021

क्या सचमुच में हम आजाद है ?


 क्या सचमुच में हम आजाद है ?




आज हम अपनी आजादी का ७५ वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। हमे आजाद हुए आज पुरे ७५ साल हो गए हैं।  फिर भी  कभी-कभी क्या, हर रोज अपने आस-पास, अलग-अलग तरह की हो रही घटनाओं को देख कर मन में यह प्रश्न जरूर एक बार कौंध जाता है कि, क्या सचमुच में हम आजाद हैं ? या आजादी सिर्फ किसी के द्वारा बनाये गए गुलाम से छुटकारा पाने को ही कहते हैं ? सही मायनो में आजादी किसे कहते हैं ? ऐसे बहुत से सवाल उस समय आते हैं जिसका जवाब होते हुए भी हम सोचने पर मजबूर रहते हैं कि क्या यह सही जवाब था या इससे अच्छा भी कोई जवाब हो सकता था। 

अभी कुछ दिन पहले हमने समाचार पत्र और सोशल मीडिया पर कुछ घटनाओं के बारे में पढ़ा भी और देखा भी। हमारे देश और बाहर के देश में कुछ इस तरह की घटी घटनाओं के बारे में पढ़ सुनकर  हमे  फिर से मजबूर कर दिया कि हमे आजादी सचमुच में किससे मिलनी चाहिए? किसी राष्ट्र से, जिसने जबरदस्ती या धोके में रखकर दूसरे राष्ट्र पर कब्जा करके वहां के लोगों को जबरन गुलाम बनाकर उनका शोषण करना और खुद के लोगों को दूसरे के हक को देकर उन्हें पोषित करना! या हम खुद ही अपने खुद के फैसलों के द्वारा अपने लोगों पर ही जबरदस्ती लादकर उनका शोषण करना!  



महाराष्ट्र के नवी मुंबई में अभी कुछ दिन पहले एक ह्यदय विकारक घटना घटी। जिसके बारे में सुनकर हमारा दिल बैठ गया कि कैसे एक लड़की अपनी ही माँ का एक कड़क पट्टे से गला दबाकर मार डालती है क्योंकि उसकी माँ डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए मजबूर कर रही थी और उसका मन बिलकुल ही नहीं था। दूसरी घटना बाहर के देश ब्राजील से है जहां एक माँ अपनी महिला साथी के साथ बिना रोक टोक के रहने के लिए अपने ७ साल के ही बेटे को मार डालती है। तीसरी घटना भी दिल को झकझोर देने वाली है। कुछ दिन पहले सोशल मिडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमे एक माँ अपने बच्चे को किसी बात पर गुस्सा हो कर उसे खाना नहीं देती है और वह बालक विंनती करता रहता है कि अब ऐसी गलती नहीं होगी। फिर भी वह माँ नहीं मानती है। और उसे भूखा तो  रखती ही है साथ में उसका विनंती करते हुए वीडियो भी बनाती है। इन सब चीजों में दो चीजे कॉमन है।  सभी घटनाओं में माँ है और दुसरा पक्ष उनका बेटा या बेटी ही है।  तीसरी चीज जो दिखती है वह है आजादी! आजादी! जो सभी को चाहिए !



यह सब घटनाये कुछ दिन पहले की है।  इन तीन घटनाओ में से दो घटनाएं खुद हमारे देश की है जो आज अपने आजादी का ७५ वां वर्षगाठ मना रहा है। और हमे सोचने पर मजबूर भी कर रहा है कि क्या सचमुच आजादी सिर्फ किसी राष्ट्र से मिलनी चाहिए ? जिसने हमे जबरन गुलाम बनाये  रखा हो!  हमारा दोहन करता हो या इस तरह की मानसिकता वालों से भी आजादी मिलनी चाहिए जो अपने फायदे या अपने किसी हेतु/उद्देश्य के लिए किसी का मानसिक शारीरिक दोहन करते हो। वह तब और मायने रखता हो कि जब हम कहते हैं बड़े ही गर्व से  कि हम २१वीं शताब्दी में जी रहे हैं। जो शताब्दी हमारी है। जिसे हमने अपने दिमाग से अपने अनुरूप बनाया हो!




पहली घटना में लड़की की उम्र १५ साल है तो उसने क्रिया का प्रतिक्रिया करने में थोड़ी भी देरी नहीं की। जिसका परिणाम यह निकला कि, उसकी माँ का उसके ही हाथों हत्या का हो जाना।  लेकिन दो अन्य घटनाओं में शोषित हो रहे दोनों बालक कम उम्र के होने की वजह से किसी भी प्रकार की क्रिया पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। कारण है उनका अबोध होना और शारीरिक रूप से भी अपने शोषण करने वाले से कम का होंना।  अगर वे भी उस लड़की की तरह ही होते तो जरूर कुछ न कुछ क्रिया-प्रतिक्रिया अपनी तरफ से करते ही। बस प्रतिक्रिया का रूप कुछ भी हो सकता था। उस लड़की की तरह अपने शोषण करने वालों का जान ले सकता था या कुछ और ही। लेकिन अगर प्रतिक्रिया होती तो वह किसी भी रूप में किसी के लिए भी अच्छा न होता। हमारे समाज के लिए तो बिल्कु ही नहीं! और अब अपने आस पास हो रही इस तरह की घटनाओं को ध्यान में रखकर खुद समाज को ही सबसे आगे आना चाहिए ! 




यहाँ उस लड़की ने जो भी किया, जिस हालत में भी किया, उसके द्वारा उठाये गए इस तरह के कदम को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन एक बात यह भी ध्यान देने वाली है कि उसने अपनी माँ के खिलाफ पुलिस कम्प्लेन की थी।  जिसमे पुलिस घर पर आकर पुरे परिवार को बैठाकर समझाया था। फिर भी अगर ऐसी घटना उस घर में घटती है तो सोचने वाली बात है। क्योंकि पूरी घटना से  निकलकर एक ही बात बाहर आती है और वह है उस लड़की से उसकी आजादी को छीना जाना! जो कि उसका एक हक है। वह एक उम्र के बाद आजाद है कि क्या करे क्या न करे। 




आजादी क्या चीज है ? क्या सचमुच में आज भी हम आजाद हैं ? या हमपर निर्भर रहने वाला आजाद है ? हम अगर आज इन बातों को छोड़कर ७५ साल पहले की बात करते हैं, क्योंकि हमे अपने इतिहास को हमेशा देखना चाहिए। लेकिन पूर्ण रूप से आजादी के दिन या और दिन सिर्फ इतिहास को देखते रहना भी ठीक है? या समय के अनुसार बदल रही परिस्थितियों को भी इतिहास के साथ साथ देखते रहना भी जरुरी हैं। क्योंकि समय के अनुसार आजादी की परिभाषा भी बदलती हैं। वह इसलिए कि अब कोई और आप पर बाहर से आकर राज नहीं कर रहा है। अब अपने ही हम पर राज या हमारी देखभाल कर रहे हैं। तो अगर आज के समय में इतिहास के साथ-साथ हम आज को  भी  ध्यान से देखेंगे तो समझ में आएगा कि कहीं हम दूसरी तरह से गुलाम तो बनते नहीं जा रहे हैं! जैसे वह माँ अपनी इच्छा पूरी करने के लिए लगातार अपनी १५ साल की लड़की पर दबाव दाल रही थी। यह हम सब को पता है कि अगर माँ है तो उसका पूरा देखभाल भी वही करती होगी। यानि वह अपने सपने पुरे न होते देख कभी भी लड़की के अहित में फैसला ले सकती थी। अब लड़की अगर दब गयी तो गुलाम बनकर अपनी इच्छा के बगैर उसकी खुद की इच्छा का तिलांजलि देकर माँ की या परिवार की इच्छा पूरी करती या उस लड़की की तरह हुयी तो आपको पता ही है कि अंत में परिणाम क्या हो सकता है। 



हम अपने इतिहास को जरूर देखें लेकिन आज यह भी जरुरी है कि हम पीछे न देखकर आज के समय की आजादी के बारे में बात करें। क्योंकि हम देख रहे हैं कि इस तरह की आजाद भारत में किसी न किसी रूप में, इस तरह की घटनाओ में इजाफा होते चला जा रहा है। वो भी तब जब हम हर क्षेत्र में १९४७ से आज की तारीख में बहुत ही आगे निकल चुके हों।  फिर भी हमारे देश में या बाहर के किसी भी देश में इस तरह की घटनाये अगर घटती हैं तो सचमुच में एक बार फिर से दो कदम पीछे हटकर सही आजादी के बारे में सोचना चाहिए। कि आजादी  क्या चीज है और कब कब किससे किससे मिलना चाहिए ? 




सिर्फ देश ही आजाद हुआ है ऐसा नहीं दिखना चाहिए। यहां के लोग भी मानसिक शारीरिक रूप से या जिस रूप में भी उन्हें आजाद होना  है वे उस रूप में आजाद हो चुके हैं। तभी सही मायनो में हमारे देश को ही नहीं पुरे विश्व को आजादी मिलेगी। नहीं तो इस तरह की घटनाये घटती रहेंगी। और अगर इस तरह की घटनाएं अगर किसी भी देश में एक भी होतो रहेगी तो  उसका लोकतंत्र कितना भी क्यों न मजबूत हो, उसके लोकतंत्र की कुर्सी का एक पैर टूटा ही नजर आएगा मजबूती से जुड़े होने के बावजूद! अच्छा यह लोकतंत्र  नहीं हमारे समाज के लिए भी अच्छी बात नहीं है। इसलिए उन्हें तो देश से पहले आगे आकर आजादी के बारे में अपने अपने  बात करते रहना चाहिए। अगर उनके अंदर का आजादी मजबूत या अच्छे से फलेगा फूलेगा तो  वह संमाज भी अच्छे से फलेगा फूलेगा। उसके साथ देश और उसका लोकतंत्र मजबूत होगा ! 
BLOGGER  अjay नायक 
www.nayaksblog.com 









































4 comments:

  1. सही आकलन किया है अपने,हम विकास नही, विनाश की और बढ रहे है

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