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Friday 18 March 2022

होली- नाच रहे हैं सारे

  

 

होली- नाच रहे हैं सारे 





आज नाच रहे हैं मोर
मोरी बगिया मे, जोर शोर से  
मानो बरसने वाले हों मेघ
आज जोर - शोर से 

उसकी एक नाच पे,
ता ता थईया करके 
लोग ऐसे झूम गए 
जैसे बसंत की, बह रही हो बयार

कोयल भी, है आ चुकी
हमे सुनाने, गीत संगीत
उसकी एक सुरीली गीत पर
नाच रहा है हमारा आँगन गाँव




उड़ा आज ऐसा धूल ग़ुलाल
की हो गए सब रंग-बिरंगे
ना कोई अपना रहा
ना रहा, कोई पराया

क्या बुढ़ा क्या नौ जवान, 
अरे! बच्चे, क्या महिलाएं
सबपे चढ़ा, ऐसा रंग का बुखार 
कि सब हो गए आज एक समान




भूलकर अपनी अपनी रंजो रंजिश 
घुल गए एक ठंडई की गिलास मे 
ये, है ही, ऐसा त्योहार
जहाँ एक दूसरे के गालों पे 
सबकुछ भूलकर पहुँच जाते हैं, रंग लगाने 

अबीर की भी हैं, अपनी अलग दाँस्ता
लगते ही एक दूसरे के गाल पे 
मिटा देता है, धीरे धीरे एक दूसरे का भेदभाव




ऐसा न कोई, है जग में त्यौहार
जहाँ काला हो जाता है, और काला
और अपना प्यारा गोरा हो जाता है,
रंग लगाकर घमंड से कोषों दूर। 
-अjay नायक 'वशिष्ठ'





    

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