अनजान सा पंक्षी
अनजान सी राहों का, अनजान सा पंक्षी हूँ
उड़कर चला आया हूँ, आज तेरे घोसले में
भटक सा गया हूँ, अपनी मंजिल का रास्ता
हो गयी बहुत रात, दे, दे पनाह हमे,
अपने इस घरोंदे में
भोरे ही निकल पडूंगा, मंजिल के तलाश में
जिसका न कोई यहां, ओर है, न छोर
पता है मुझे अब, अब न रहा कोई
भरोसा करने लायक यात्री, बार बार कर्मों से
भरोसा जो तोड़ दिया
पता है मुझे अब, अब न रहा कोई
पनाह देने लायक सराय, परिस्थितियों की वजह से
घर ही जो नहीं रहे
फिर भी तू करले, मुझपर थोड़ा सा विश्वास
हम इतना ही कहेंगे
आज हम आप को इतना दिलाते हैं विश्वास,
अगर लेकर गया कुछ तो वो होगा यही,
प्यार, विश्वास, दयालुता,मदत
और लेकर नहीं गया, तो दे जाऊंगा यही
मदत,दयालुता,विश्वास प्यार,
बस एक बार हमपर, बस करले ऐतबार हमपे।
-अjay नायक 'वशिष्ठ'
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