हमारी प्यारी हिंदी भाषा
दो दिलों को मिला जाती है
दो मनो को समझा जाती है
ऐसी कुछ मेरी प्यारी भाषा है
जो दो ध्रुवों को जोड़ जाती है
नाम है उसका हिंदी
जो माथे पर सजती है बन बिंदी
हटा दो तो माथा हो जाता है सुना
लगा दो तो चमक उठता है माथा
आज भाषा का पुल बनकर
जोड़ रही है लोगों को
एक स्थान से दुसरे स्थान तक
पहुंचा रही है लोगों को
अभी तक जो काम, कर न पाया किसी ने
वो अकेले ही, काम कर रही है हमारी भाषा
मैं अच्छा, तू खराब के इस समय में
दिन प्रति दिन देश दुनिया में करिश्में कर रही है हज़ार
चौक चौराहे से लेकर, गली गली तक
बज रहा है, सिर्फ़ उसका ही डंका
बजे क्यों न उसका डंका
शब्द कोई भी हो, भाषा कोई भी हो
उसे आत्मसात करने में,
कभी जो नहीं झिझकती हमारी प्यारी हिंदी भाषा।
–अjay नायक ‘वशिष्ठ’
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