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Monday, 10 October 2022

 जिस खुद्दारी पर हमे बड़ा ही गुमान था

वही खुद्दारी आज बिक गया बाजार में 


समय की मार ऐसी पड़ी................

जिस शराब के ठेके को बंद करवाने के लिए

लगा दिये थे आग पुरे शहर में............

वही ठेका, सराय बन सम्हाल रहा है आज हमे 


बोलो तो सही, अब दोष दूं किसे

जब खुद की क़िस्मत ने ही दगा दे दिया 

आज उसी ने हमे अनसुना कर दिया 

जिसे कभी हमने ही सम्हाला था


कभी उनकी गलियों के राजा बन फिरते थे

आज उन्ही गलियों में, आवारा बन मारा मारा फिर रहे 

और तो और गाली सा बन गया हूं, उन सभी जुबांओ का

जिन जुबांओ से, कभी खुद की खिदमत में फूल बरसता था।

–अjay नायक ‘वशिष्ठ’

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