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Friday, 23 April 2021

एक महिला जितना मजबूत कोई नही




एक महिला जितना मजबूत कोई नही


PIC BY GOOGLE


अभी दो महीने पहले हम एक कार्यक्रम में गये थे। जो कि एक एक संगठन राम सेना के द्वारा नारी सम्मान के रूप में आयोजित की गयी थी। उन्होंने उस कार्यक्रम का नाम "नारी तू ही नारायणी" रखा था . सचमुच में हमे यह नाम एकदम से अछा ही नहीं लगा, हमे लगा कि इससे भी अच्छा इस कार्यक्रम का कोई और नाम हो ही नहीं सकता था। इस धरती यानि इस जीव लोक की नारी ही तो नारायणी है। हम सभी को पता है बैकुंठ वासी भगवान विष्णु पूरी सृष्टि का पालन करते हैं। ठीक उसी तरह इस धरती लोक की नारायणी यानि एक महिला अपने कूल खानदान समाज का पालन पोषण करती है। यह सच है कि पुरुष बाहर से कमा कर लाता है तभी भी वह खर्च कर पाती है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि वह कम लाये या ज्यादा लाये उसे उतने में ही खर्च करने का जिम्मा भी वही उठाती है। कम रूपये या संसाधन घर में उपलब्ध न होने पर भी वह अपने दिमाग और परिवार सम्हालने के कौशल से पुरे परिवार को एहसास ही नहीं होने देती है कि इस बार रूपये या संसाधन बहुत ही कम थे. बस वह अपनी सूझ बुझ से आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी जीवन रूपी नईया को इस विश्वास में भॅवर से बचाती हुयी निकालती चली जाती है कि अगर नाव पर सवार सभी लोग किनारे पहुँच जाएंगे तो हमारा उत्थान होने से कोई नहीं रोक पायेगा। और यह विश्वास सबसे ज्यादा महिला में ही पाएगी। फिर भी लोग उसे कमजोर समझते हैं। अबला समझते हैं। सोचते हैं कि वह चार दीवारी में रहती है इसलिए उसका न तो बौद्धिक विकास हो पाता है और न ही सामाजिक विकास हो पाता है। वह अपने से ज्यादा कुछ सोच ही नहीं पाती है।  

प्राचीन काल से ही हजारो लाखों ऐसे उदाहरण मिलेंगे जहां पर महिलाये सिर्फ आगे ही नहीं आयी अपने आपको पुरुषों से अच्छा करने की इच्छा व अच्छा करके दिखलाया भी। समुन्द्र मंथन के समय क्षीर सागर से निकले अमृत कलश को राक्षसों से बचाने के लिए भगवान् विष्णु को एक महिला मोहनी का रूप धारण करना पड़ा था। क्योंकि उन्हें पता था कि एक महिला ही राक्षसों से अमृत कलश को अच्छे से बचा सकती थी। जबकि वह स्वयं वह कार्य उतने अच्छे अच्छे से भगवान् होने के बावजूद नहीं कर सकते हैं। राजा दशरथ सब लड़ाई हार रहे थे तब उनकी धर्म पत्नी ने आगे आकर उनके साथ मिलकर वह लड़ाई लड़ी ही नहीं उसे जितने में सबसे अहम योगदान भी भी दिया। रानी लक्ष्मी और रजिया सुलतान ने अपने पति और पिता के मौत के बाद सिर्फ राज काज ही नहीं सम्हाला।  अपने विरोधियों से अपने राज्य ,अपने सल्तनत को बचने के लिए दो दो हाथ भी किये। जीजा बाई ने अपने पुत्र शिवा को स्वराज्य का महत्त्व समझाया जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज बना। और अपने पिता के स्वराज्य के सपनो को पूरा किया। आज से १५० साल पहले जब महात्मा फुले समता का दीपक जला रहे थे। और इसी के द्वारा वे महिलाओं को भी पढ़ने का अधिकार दिलाने के लिए उन्हें पढ़ाना चाहते थे तब वे उस समय के समाज के ठेकेदारों के आगे असफल हो चुके थे। तब उनकी धर्म पत्नी सावित्रीबाई फुले ही थी जो हार रहे ज्योतिबा का सिर्फ हौसला ही नहीं बढ़ा रही थी जब जरूरत पड़ी तो आगे आकर महिलाओं को शिक्षित करने का उस समय का सबसे कठिन कार्य करने का बड़ा उठाया था. जिस कार्य में उनके पति पुरुष होते हुए भी सफल नहीं हो पा रहे थे। और तमाम प्रकार के उलाहनों के बिच से अपने आप को गुजारती हुयी उसमे सफलता भी पायी . साथ ही ज्योतिबा के समाज सुधार के कार्यक्रम को सफल ही नही उसे आगे बढ़ाने में मदत भी किया. और आज उन्ही की देन है कि बड़े से लेकर छोटे से घर की लड़कियां और महिलाएं पढ़ लिखकर आगे बढ़ रही हैं। 

इतिहास से लेकर आज तक आपको रोज पता नहीं कितनी कहानियां उनसे सम्बन्धित मिल जायेगी। जहां वे अपने आप को पुरुषों से सरस साबित करते हुए दिखेंगी। फिर भी उन्हें वह मुकाम नहीं मिल पाता है जो पुरुषों को बिना कुछ किये ही मिल जाता है। आज भी हम देखेंगे की वह उसी रजिया सुलतान की तरह अपने सल्तनत को बचाने का प्रयास करती हुयी मिल जाएंगी जिसकी वह सही मायनो में हकदार हैं। पुत्र न होने के कारण अपने पिता की सम्पती का असली वारिश हैं। लेकिन लोग उसे उसका यह अधिकार उसे तब भी नहीं देना चाहते हैं और आज भी नहीं देना चाहते है। उसे तब भी अपना हक पाने के लिए अपने लोगों और अपने समाज से लड़ना पड़ता था और आज भी उसे अपने हक के लिए लड़ना पड़ता है। तभी तो " नारी तू नारायणी" के कार्यक्रम में एक रिक्शा चलने वाली ५० साल की औरत पुरुष्कृत होने के पर उनके आँख से आंसू आ जाते हैं। और अपनी दिनचर्या के बारे में बताते हुए कहती है कि लोगों की नजर आज भी अच्छी नहीं रहती है। अगर हम अपने आस पास ध्यान से देखें तो हमारे आस पास ही बहुत से वाकये ऐसे मिल जाएंगे। और बिना उसके बारे में कुछ जाने बहुत कुछ बोल जायेंगे। क्योकि वह स्वतन्त्र रूप से बाहर निकलती है। वह अपने सभी काम यानि रहने पहनने से लेकर खाने तक के सभी कार्य स्वतन्त्र तरीके से एक पुरुष की तरह करती है।  

आज ही नहीं अनादि काल से ही उन्हें हर समय हर मोड़ पर परीक्षा देते ही आना पर रहा है।  माता सीता अग्नि से पवित्र होकर निकली और स्वयं भगवान् श्री राम की पत्नी व लक्ष्मी का रूप होने के बावजूद समाज ने उन्हें नहीं बक्शा। और फिर गर्भवती हालत में उन्हें वन जाना पड़ा। और तमाम प्रकार के पीड़ा को सहना पड़ा। जबकि वह उस पीड़ा को सहने की बिलकुल ही अधिकारी नहीं थी। क्योंकि उनके पति को १४ साल का वनवास मिला था लेकिन पत्नी होने की वजह से वो भी पति के साथ वनवास जाना उचित समझा था। जैसे ही एहसास होता है रावण ही नही अपने प्रिय पति श्री राम को भी अपने से दूर करने से नही झिझकती है. लेकिन यहाँ पर सीता जी यह बात भी बताती हैं कि वे शक्ति स्वरूपा होकर भी सिर्फ इसलिए खुद को खुद कि ताकत से इसलिए दूर रखती हैं कि जिससे बनता हुआ परिवार कभी बिगड़ न पाए .क्योंकि उन्हें पता है कैकयी और सुर्प्नुखा ने कैसी अपनी ताकत को पहचान कर उसके बस में आसानी से फसकर अपने अपने परिवार के लिए सर्वनाश का कारण बनी। वो तो सीता जैसी विभूति ही थी कि उन्होंने अपनी ताकत को जब पहचाना था तभी पहचाना जिसकी वजह से एक का परिवार जग विख्यात होकर पुरे विश्व के लिए पूजनीय हो गया।  और दुसरा परिवार समाज के लिए आयना बना कि आपका घमंड अहंकार एक अच्छे परिवार के सर्वनाश का कारण बना। इसलिए इसका भी ध्यान रखना बहुत जरुरी है। क्योंकि रामायण के अंत तक महिलाओं के किरदारों से आसानी से मुहं नहीं मोड़ा जा सकता है। 
यही समाज तब उनका गुणगान कर रहा था। लेकिन रावण के हारने के बाद मुक्त होने पर भी पहले अग्नि परीक्षा और फिर बाद में समाज के उल्लाहनो के कारण गर्भवती अवस्था में वन को जाना। यह बयां करता है कि अनादि काल से ही महिलाओं को अपने हक़ के लिए लड़ना पर रहा है।  जो आज आधुनिक काल में जब दोनों वर्ग एक दूसरे को हर एक मामलों में टक्कर दे रहा हो तभी वह मुकाम उन्हें नहीं मिला है जो एक पुरुष को मिला है। आज भी शादियां टूटने पर लड़की को ही दोषी बनाया जाता है। और यह काम दूसरों के साथ साथ उसके खुद के घर वाले भी करते हैं। और पूरा ठीकरा उसके ऊपर फोड़ दिया जाता है। 
 
इसका एक बहुत ही आसान कारण समझ आता है कि कभी कभी हमे ही नहीं खुद महिलाओं को भी लगता है कि वे बहुत ही कमजोर है। और इसका असली वजह यह है कि हम उनकी ताकत को देखना नहीं चाहते हैं या तो देखकर अनसुना करना चाहते हैं क्योंकि हमे उनकी ताकत का अंदाजा है कि वे हमसे कितनी ज्यादा मजबूत है। एक तरह से बोल सकते हैं कि हम उनके आगे कुछ भी नही है। और वे अपने आप को इसलिए कमजोर समझती हैं क्योंकि वे अपनी ताकत को सही से मासूस नहीं कर पाती है। उसका आकलन सही से नहीं कर पाती हैं। अपनी ताकत के बारे में सही समय पर पहचान नहीं पाती हैं।  और जबतक जान पाती हैं तबतलक तो बहुत देर हो जाता है। और आसानी से रावण जैसे कपटी के बहकावे में आ जाती लेकिन जब एहसास होता है तो रावण जैसा बलसाली पराक्रमी राजा भी उन्हें छू भी नही पाता है।
अब समय आ गया है की वे अपनी ताकत को सही समय पर जाने। और जाने ही नहीं उसका इस्तमाल करना भी सीखे। जो की आज की बहुत सी महिलाएं कर रही हैं।  फिर भी उनकी संख्या इतनी काम है की हम उन्हें आसानी से गिन सकते हैं। जो की उन्हें पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चलने में नाकाफी है। इसके लिए जरुरी है की उनके बिच के ही लोग निकले और महिलाओं बराबरी पाने के अलख को जलाएं। जैसे रानी लक्ष्मी बाई , रजिया सुल्ताना और सावित्री बाई ने खुद महिलाओं को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था। उन्हें लगा था की महिलायें या लड़कियां उनके आगे आने से आपने आप को आगे लाने में किसी प्रकार की कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएंगी।  

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